वक्त की शाखा से सोलह का पत्ता टूट कर गिर गया है। कलेवर बदलेगा या नहीं क्या पता मगर कैलेंडर तो बदल चुका है। दो हजार सोलह के पहले सूरज को देखकर किसने सोचा होगा कि वक्त इतना बेरहम होगा कि देश में नोटबंदी को लेकर सौ से ज्यादा लोगों को अपनी जान गवानी पडेगी। किसने सोचा होगा की अखिलेश को उनके ही पिता पार्टी से बेदखल कर देंगे। समाजवादी कुनबा में दंगल होगा। एक आतंकवादी के मारे जाने पर पूरा घाटी आग में जलने लगेगा। सेना के कैंपो पर आतंकी हमला जैसे कई छोटे-बड़े मुद्दे को लेकर लोग घाव गिनते रह जाएंगे। काल का गाल बड़ा विकराल है और समय की अपनी एक निपट अबूझ, अप्रत्याशित और शाश्वत गति है। इसलिए तारीख बदलने से अतीत कभी नहीं मरता। वह तो वर्तमान के तलवे में कांटे की तरह धंसा है। सोलह की चोटों से सतरह जरुर लंगड़ायेगा। मगर हमें भरोसा रखना चाहिए, यही वक्त उन चोटों पर मरहम भी लगायेगा।
सोलह की शुरूआत ही आंतक के साये में हुई। जब आतंकवादियों ने पठान कोट पर हमला किया और हर बार की तरह इस बार भी हमले की साजिश हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में रची गई। इस पूरे घटनाक्रम में पंजाब पुलिस की लापरवाही खुलकर सामने आई। तो वहीं आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद पूरी घाटी आग में जलते हुए दिखी। इस साल ही सितम्बर में जम्मू-कश्मीर के उरी में आर्मी हेडक्वॉर्टर पर आतंकी हमले में बीस जवान शहिद हो गए और इस बार भी हमले की साजिश पाक में ही रची गई। जिसके बाद आम लोगों में पाकिस्तान के खिलाफ बदले की भावना आग की भांती जलने लगी और भारी जन-दवाब के बाद हमारे सैनिको ने वह कर दिखाया जो आजाद भारत में पहले कभी नहीं हुआ। हमारे सैनिकों ने इस हमले का बदला लेते हुए पाक अधिकृत कश्मीर में घुस कर सात आतंकी शिविर को तहस-नहस कर दिया जिसमें कम से कम 50 आतंकी मारे गए। तो वही इस साल देश के अंदर राष्ट्रविरोधी नारे भी सुनने को मिले जब देश की सबसे प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देश के खिलाफ नारे लगे। तो इसी साल पूर्व वायुसेना प्रमुख केसी त्यागी को जेल जाना पड़ा।
तो वहीं दूसरी घटना बुलंदशहर में घटित हुई जब एक मां-बाप के सामने बच्ची के साथ गैंग रेप की किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काले धन और आतंक पर लगाम लगाने के लिए पांच सौ औऱ हजार के नोटों को बंद कर दिया औऱ आजाद भारत में पहली बार लोग काम-काज छोड़ बैंकों के सामने लाइन में लगे मिले। इस नोटबंदी में सौ से ज्यादा लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी। तो वहीं इस साल समाजवादी कुनबे में मची कलह भी देश के लोगों ने देखी। जहां पिता भाई के मोह में अपने ही बेटे और यूपी के सीएम को पार्टी से निकाल देते है। तो वहीं अम्मा (जयललिता) हमारे बीच नहीं रही उनकी मौत की खबर ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली ये कुछ घाव है जो हमें सोलह दे कर जा रहा है लोग इन घाव को गिनते रह जाएंगे। ताऱिख जरूर बदल रही है पर अतीत कभी मरता नहीं वह तो वर्तमान के तलवे में कांटे की तरह धंसा है। सोलह की चोटों से सतरह जरुर लंगड़ायेगा। मगर हमें भरोसा रखना चाहिए, यही वक्त उन चोटों पर मरहम भी लगायेगा।
सोलह की शुरूआत ही आंतक के साये में हुई। जब आतंकवादियों ने पठान कोट पर हमला किया और हर बार की तरह इस बार भी हमले की साजिश हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में रची गई। इस पूरे घटनाक्रम में पंजाब पुलिस की लापरवाही खुलकर सामने आई। तो वहीं आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद पूरी घाटी आग में जलते हुए दिखी। इस साल ही सितम्बर में जम्मू-कश्मीर के उरी में आर्मी हेडक्वॉर्टर पर आतंकी हमले में बीस जवान शहिद हो गए और इस बार भी हमले की साजिश पाक में ही रची गई। जिसके बाद आम लोगों में पाकिस्तान के खिलाफ बदले की भावना आग की भांती जलने लगी और भारी जन-दवाब के बाद हमारे सैनिको ने वह कर दिखाया जो आजाद भारत में पहले कभी नहीं हुआ। हमारे सैनिकों ने इस हमले का बदला लेते हुए पाक अधिकृत कश्मीर में घुस कर सात आतंकी शिविर को तहस-नहस कर दिया जिसमें कम से कम 50 आतंकी मारे गए। तो वही इस साल देश के अंदर राष्ट्रविरोधी नारे भी सुनने को मिले जब देश की सबसे प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देश के खिलाफ नारे लगे। तो इसी साल पूर्व वायुसेना प्रमुख केसी त्यागी को जेल जाना पड़ा।
तो वहीं दूसरी घटना बुलंदशहर में घटित हुई जब एक मां-बाप के सामने बच्ची के साथ गैंग रेप की किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काले धन और आतंक पर लगाम लगाने के लिए पांच सौ औऱ हजार के नोटों को बंद कर दिया औऱ आजाद भारत में पहली बार लोग काम-काज छोड़ बैंकों के सामने लाइन में लगे मिले। इस नोटबंदी में सौ से ज्यादा लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी। तो वहीं इस साल समाजवादी कुनबे में मची कलह भी देश के लोगों ने देखी। जहां पिता भाई के मोह में अपने ही बेटे और यूपी के सीएम को पार्टी से निकाल देते है। तो वहीं अम्मा (जयललिता) हमारे बीच नहीं रही उनकी मौत की खबर ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली ये कुछ घाव है जो हमें सोलह दे कर जा रहा है लोग इन घाव को गिनते रह जाएंगे। ताऱिख जरूर बदल रही है पर अतीत कभी मरता नहीं वह तो वर्तमान के तलवे में कांटे की तरह धंसा है। सोलह की चोटों से सतरह जरुर लंगड़ायेगा। मगर हमें भरोसा रखना चाहिए, यही वक्त उन चोटों पर मरहम भी लगायेगा।