Tuesday 16 July 2013

Posted by Gautam singh Posted on 03:41 | No comments

प्रभाष जोशी की याद

       


                                   

             

स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय में मीडिया  छात्रों के ' संवेदना'  के बैनर तले हिन्दी पत्रकारिता के श्लाका पुरुष  प्रभाष जोशी की जयंती पर उन्हें याद किया । प्रभाष जी को याद करते हुए मीडिया छात्रों ने उनके विचारों और जीवन पर प्रकाश डाला ।  खरी-खरी कहने और बोलने वाले प्रभाष जोशी को आज की जरूरत बताया गया ।
        
संस्थान के निदेशक नीरज शर्मा ने कहा कि प्रभाष जोशी हिन्दी पत्रकारिता के श्लाका पुरूष थे उन्होंने एक साहसी सरोकारी पत्रकार और सम्पादक के रूप में हिन्दी पत्रकारिता को अमूल्य योगदान दिया।  वरिष्ठ पत्रकार सुनील छइयां ने कहा कि प्रभाष जोशी ऐसे सम्पादक और पत्रकार थे जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को आम आदमी तक पहुँचाने  का काम किया। प्रभाष जोशी ने हर क्षेत्र के समाचारों को नये आयाम दिये। क्रिकेट के खेल पर उनके आलेख आज भी चर्चाओं में रहते हैं।  संकाय के एचओडी एवं एसोसिएट प्रो. पीके पाण्डेय ने कहा कि उनकी निर्भयता, जनपक्षधरता और सरोकारों को जिन्दा रखा जाए। प्रभाष जी की जयंती पर याद करने का यह बडा अर्थ है । उन्होंने  हमें सिखाया कि खबर देना ही नहीं , खबर लेना भी पत्रकारिता का काम हैं। इस मौके पर शिक्षकगण सुमन मिश्रा, शिखा धामा, दीपा पारछा, शिप्रा त्रिपाठी, शशांक शर्मा के साथ संकाय के  छात्र-छात्राओं गौतम,  अमित, विपिन, निष्टी, श्मिता, अबरार, राहुल ने भी अपने विचार रखें और उनके जीवन और सन्देश को प्रकाश स्तम्भ बताया ।                                                
                                       



                                                                 
   

                                                                                                       
Posted by Gautam singh Posted on 02:34 | No comments

क्या थी मेरी खता

          
एक बच्ची जिसने अभी ठीक से चलना भी नहीं सीखा था, जो बिल्कुल अबोध थी, जिसने अभी ठीक से दुनिया भी नही देखी थी, जिसकी उम्र लगभग डेढ माह की हुयी थी। तब मां ने उसको नहर में डाल दिया। तब लडकी के मन में ये सवाल तो जरूर आयें होंगे कि मां तुम तो मेरी जननी हो, तुमने मुझे दुनिया में उतारा हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया जो तुम मुझे मिटाना चाहती हो। मां मुझे मत मारो, मैं तुम्हारा सहारा बनूगीं, मैं कभी भी किसी चीज के लिए जिद नही करूगी,जो तू मुझे देगी में वो ही खा लूंगी, मां मुझे मत मार, मुझे जीने दे। मां आखिर मेरा गुनाह क्या है ? क्या मेरा गुनाह यह है कि मैं बेटी हूॅ। इसलिए तुम मुझे जिन्दगी के बदले मौत देना चाहती हो।



 माता तुम तो ममता की मूर्त हो, फिर तुम दिल पर क्यों पत्थर रख रही हो। आपके सामने ऐसी क्या परेशानी आ गयी जो तुम मुझे खत्म करना चाहती हो। दूध पिलाने की उम्र में तुम मुझे नहर का पानी पिलाकर मौत के मुंह में धकेल रही हो। मां मैं आधी रोटी खा लूंगी, कपडे भी दीदी के पहन लूंगी, मुझे मत फैको। जिस मॉ ने उसको सीने से लगाकर रखा। मां ने जब उसे अपने से अलग किया होगा क्या तब उसके दिल से कोइ आवाज नही आयी। आखिर क्यों उसने अपने कलेजे के टुकडे को, अपने अंश को ही खुद से अलग कर दिया। कैसी मां थी वो ? परेशानी कुछ भी हो लेकिन मां के इस कृत्य ने ममता को कलंकित तो कर दिया। जिस मां ने 9 महीने तक बच्चें को पेट में रखा, पैदा होते ही ऐसी क्या परेशानी आ गयी कि उसे खत्म करने की ठान ली। क्या वह परेशानी बेटी तो नही ?