Saturday 3 August 2019

सुनो 
तुम चाय की कप भी ऐसे पकड़ते हो जैसे जाम हो और वो भी आखिरी ऐसा लगता है कि इसके बाद और नसीब नहीं होने वाला तुम्हे...

हां ये आखिरी वाली बात तो सही है और तुम तो जानती हो मैं चाय के साथ मुहब्बत में हूं और मैंने जिससे भी प्रेम किया आखिरी मान कर ही किया और चाय को भी आखरी मान कर रहा हूं, ये जानते हुए भी कि यह आखिरी नहीं है। कहने से आखिरी नहीं होता। सबके साथ पुराना साथ रहता है, चलता साथ है। पुराना कुछ भी मरता नहीं, वो आखिरी को आखरी होने नहीं देता। और तुम तो जानती हो मैं जाम को छूता तक नहीं इसलिये चाय को जाम कि तरह पकड़ता हूं और हां यह चाय का प्याला मेरे लिए आखिरी जाम से कम नहीं, जो कुछ वक्त के बाद पुराना होने वाला है। 

कभी कसी बात का जवाब सीधे भी तो दे सकेत हो...तुमसे बात करने पर ऐसा लगता है बात नहीं कर रही बल्कि किताब पढ़ रही हूं...

तो किताब पढ़ना कौन सा बुरा काम है..

हां इतने दिनों से तुम्हे पढ़ ही तो रही हूं...प्रेम थोड़ी न कर रही हूं और ताउम्र तुमको पढ़ते जाने की तमन्ना भी है...और वैसे भी तुम मुझसे प्यार करते हो या चाय से...

शायद चाय से जिसे तुम बनाती हो, आखिरी कह कर...