Sunday 14 May 2017

'मदर्स डे' यानी एक खास दिन मां के नाम यू तो हर दिन मां का होता है। इसे हम किसी एक दिन में समेटकर नहीं रख सकते, लेकिन फिर भी अगर ऐसा एक दिन मिलता है तो इसे क्यों न मनाया जाए? आज मदर्स डे है। संडे भी है और कुछ दोस्त भी साथ है तो हम लोगों ने सोचा आज क्यों न मां के लिए एक खत लिखा जाए? वैसे अब खत तो लिखा नहीं जाता पर हम लोग खत लिख रहें संडे वाली खत। अपने मां के नाम, मां के बिना हम जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

यह रिश्ता बिल्कुल खास है। इसमें एक ऐसा अहसास, अपनापन और मिठास है, जो इसे औरों से अलग करता है। क्योंकि दूनिया की सारी मां एक सी होती हैं। प्यार करने वाली दुलार करने वाली छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखने वाली मां। हर छोटी-छोटी गलती पर पापा से मार से बचाने वाली। बीमार पड़ने पर सारी रात खुद जगकर हमें अपनी आंचल तले सुलाने वाली।

डीयर मम्मी 

कुछ दिन पहले आपकी चिट्टी मिली। मैंने आपकी चिट्टी को कई बार पढ़ा, लेकिन मैं उसे जितना बार पढ़ता हूं उतना ही गहरे ख्यालात में उतर जाता हूं। ख्यालात बचपन के, ख्य़ाल आपके प्यार के, आपके दुलार के, आपके आंचल में छिपकर सपने सजाने वाली अहसार के, जमीर को सुकून देने वाली आपकी उस स्पर्श के, चिलचिलाती धूप में आपके हाथों की ठंडक के, आपको छूकर आती शीतल हवा के, कड़कती धूप में चैन के।

आपके हाथों से खाने का निवाला खाना, आपकी ममता भरी डांट के बाद ढेर सारा दुलार... रात की गहराई में आपकी ममता की रोशनी...दर्द में भी चांद की चांदनी सी आपकी मुस्कुराहट और भी बहुत कुछ याद आ जाती है मां। आपने जैसे कई बातें पहली बार खत में मुझे बताई, ऐसी ही एक बात मैं आपको बताना चाहता हूं। छोटेसा जब मैं आप लोगों से दूर हॉस्टल में रहता था। जब आप मुझसे मिलने आया करती थी, या मुझे घर से हॉस्टल छोड़ने जाती, जब आप छोड़ कर वापस आती थी। तो उस दिन मुझे रोना आता था। क्यूं आता था इसका कोई जवाब नहीं है। न मुझे तब समझ आया था न अब समझ में आ रहा है जब मैं ये खत आपको लिख रहा हूं।


जब मैं घर से हॉस्टल के लिए जा रहा था तब मैं जितना घर, मोहल्ला, खेल के मैदान, दीदी, भाई के लिए रोया था उतना ही आपके लिए भी रोया था। मुझे याद है, जब आपका फोन आता है तो सबसे पहले यही पुछती हो कि तुम ठीक हो, यहां सब ठीक है। तबीयत तो ठीक है न कोई दिक्कत तो नहीं कुल इतनी सी बातचीत से लगता है कि दुनिया में सब ठीक है और मैं आराम से सो सकता हूं। जब मैं परेशान होता हूं तो आपका बस इतना कहना कि सब अच्छे के लिए होता है। यह बात सूनकर ही मैं सारी परेशानियों को भूल जाता हूं।

आपको एक बात बताउं मैं जब भी घर से आता हूं तो आप हिदायत देती है नहाकर पूजा कर लेना फिर कुछ और करना। शुरू में तो बुरा लगता था, लेकिन अब भी मैं पूजा-वूजा नहीं करता पर हां नहा जरूर लेता हूं कुछ भी करने से पहले आपको पता है जब भी मैं छुट्टी पर घर आता हूं तो मैं नहाता भी नहीं, लगता है कि आपको घऱ पर रहते हुए नहाने की क्या जरूरत है। इस बार जब घर आऊंगा तो तबीयत से लगाइयेगा दो-चार थप्पड़ क्योंकि मैं आपकी बातों नहीं मानता अगर आपके मार से रोना आ जाए तो चुप मत करना बस थोड़ी देर तक चैन से रो लेने देना बहुत दिन के आंसू हैं बहुत देर तक निकले शायद।

Tuesday 9 May 2017

महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे। सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे, जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे। अकबर और महाराणा प्रताप में किसे महान कहना चाहिए। यह सवाल लोगों को सैकड़ो सालों से परेशान करते रहा है। बुद्धि जीवियों और इतिहासकारों में इस सवाल को लेकर अलग-अलग राय है। दोनों अपनी जगह महान थे। दोनों से हम आज बहुत कुछ सीख सकते हैं, बशर्ते हमें मालूम हो कि हुआ क्या था।

कहा जाता है कि राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित हल्दीघाटी युद्ध मुगल शासक अकबर ने नहीं बल्कि महाराणा प्रताप ने जीता था। हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था। अकबर और राणा के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था। साल 1576 में हुए इस भीषण युद्ध में अकबर को नाको चने चबाने पड़े और आखिर जीत महाराणा प्रताप की हुई। यह दावा राजस्थान सरकार की ओर से किया गया है।

महाराणा प्रताप सिंह (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदानुसार- 9 मई, 1540 ई. से 29 जनवरी, 1597 ई तक) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर हुआ था।


कहा जाता है कि अकबर हमलावर था। मेवाड़ पर हमला करके उस पर अधिकार जमाना चाह रहा था। राणा प्रताप मेवाड़ के लोकप्रिय शासक थे। यह उन दिनों की बात है जब अकबर भारत पर अपना शासन फैलाने में लगा हुआ था। वह अपने बाप-दादा के समय की परंपरा को तोड़कर अपने आप को बादशाह घोषित कर दिया था। जहां बाबार और हुमायूं सुल्तान थे, तो वहीं अकबर बादशाह था। बादशाह यानि सर्वोपरि एक ऐसा राजा जो किसी खलीफा के अधिन नहीं।

अकबर पश्चिम एशिया से अपना संबंध खत्म कर भारत में अपनी जड़े जमा ली थी और वह पूरे भारत पर साशन करना चाहता था पर मेवाड़ के राणा, प्रताप सिंह को अकबर की अधीनता स्वीकार न थी। प्रताप के पहले भी कभी मेवाड़ के किसी शासक ने किसी का आधिपत्य नहीं माना था को महाराणा कैसे मान लेते।

पर अकबर की निगाहें मेवाड़ पर था। अकबर ने कई बार दूत भेजकर मेवाड़ को अपने खेमे में मिलाने की कोशिश की। लेकिन महाराणा को ऐसी दोस्ती जरा भी पसंद नहीं था जिसमें अकबर को बादशाह मानना पड़े, यह प्रताप को नागवार था। सो हर बार मुग़ल दूत अपना सा मुंह लेकर वापस लौटा। अंतत: अकबर ने आमेर के राजा मानसिंह के नेतृत्व में फ़ौज भेजकर मेवाड़ पर कब्ज़ा करने की ठानी। 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में 20,000 राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80,000 की सेना का सामना किया।

हमारे इतिहास में जितनी महाराणा प्रताप की बहादुरी की चर्चे होते है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े चेतक को भी मिली। कहा जाता है कि चेतक कई फीट उंचे हाथी के मस्तक तक उछल सकता था। हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक, अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक की ऊंचाई तक बाज की तरह उछल गया था। फिर महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर वार किया। जब मुग़ल सेना महाराणा के पीछे लगी थी, तब चेतक उन्हें अपनी पीठ पर लादकर 26 फीट लंबे नाले को लांघ गया, जिसे मुग़ल फौज का कोई घुड़सवार पार न कर सका। प्रताप के साथ युद्ध में घायल चेतक को वीरगति मिली थी।

कहा जाता है कि अगर आप भारत को एक सूत्र में बांधने के काम को महान मानते हैं तो अकबर ने इसके लिए काफ़ी कोशिश की। अगर आप वीरता से आक्रमणकारी को पीछे धकेलने को महान काम मानते हैं तो प्रताप का कोई सानी न था।

Monday 1 May 2017

Posted by Gautam singh Posted on 04:40 | No comments

अरे हम शर्मिंदा है



कश्मिर के पुलवामा के सरकारी डिग्री कॉलेज में आईएसआईएस का झंडा फहराया गया और हमारी सरकार चुपचाप देखती रही। हम क्यों नहीं पाकिस्तान से सिखे आतंकी देश है वह लेकिन फिर भी वहां के लोग वही का जयकारा लगाते है भले ही वह बॉलीवुड से कमाते हो लेकिन गुण पाकिस्तान का ही गाते है अरे बेशर्मो अगर पाकिस्तान से कुछ सिखना है तो यह सिखों की वह अपने देश के प्रति कितना इमानदार है। एक गद्दार वतन के लोग अपने वतन के लिए। यह विडंबना है अपने देश का स्कॉलरशिप भारत का चाहिए, आरक्षण भारत का चाहिए रोटी भारत का चाहिए लेकिन झंडा पाकिस्तान और आईएसआईएस का लहरायेंगे। बाकी जो थोड़ा बहुत कमी रह जाता है तो वह पूरा कर देते है हमारे यहां के धर्म गुरु अगर भगवान ने धर्म दिया है तो अक्ल भी दी है खुद पढ़ों किसी धर्म गुरु के पास जाने की जरूरत नहीं है। वह कोई भगवान नहीं वह भी हमारे तरह इंसान ही है। हमसे और आपसे ज्यादा विवेकशिल नहीं है। वहां हमारे सैनिक सहीद हो जाते है और हमारे देश के गृहमंत्रि कह देते है हम कड़े शब्दों में निंदा करते है।

अरे अगर निंदा ही करना है तो फिर मनमोहन सिंह में क्या बूराई था। अरे हम शर्मिंदा है की आप हमारे गृहमंत्री है कोई हमारे घर में घुसकर हमारे सैनिको को मार कर चला जाता है और आप बस इतना कहते है कि हम कड़े शब्दों में निंदा करते है। आपलोग कुछ करेंगे भी नहीं, क्योंकि आपलोगों की तो रोटियां इसी से चलती है। कभी कांग्रेस, कभी बीजेपी कभी आप सभी बारी-बारी से अपनी रोटियां सेकते रहिये। हमारे प्रधानसेवक कहते है हम प्राउड फिल करते है अपने सैनिको पर तो प्राउड का क्या हम पुंगी बजाए। वक्त बदल रहा है प्रधानसेवक महोदय यह बड़ी-बड़ी बाते करने से कुछ नहीं होगा अब करके दिखाइये। अब अगर नहीं किया ना प्रधानसेवक महोदय तो आपको भी लोग उतार फेकेंगे।

आज के युवा पढ़ा लिखा है वह अब फ्री पानी और रोटी के नाम पर खुस नहीं होने वाले है। सब बदल कर रख देगा आपका। चाहे वह कोई भी पार्टी हो क्या फर्क पड़ता है वह कांग्रेस है या बीजेपी है। कांग्रेस के लोग बीजेपी में चले जाते है तो वह शुद्ध हो जाते है क्या बीजेपी में गंगा जल रखा हुआ जो कांग्रेस छोड़ते ही वह शुद्ध हो जाते है। लोग तो वही है चेहरे तो वही है बस पार्टी बदल जाती है। कहां से विकास होगा इस देश का करोड़ों के थाली में जिसको रुपये जाहिए कहां से विकास होगा देश का। वैसे भी आपसे किसीने ने विकास की उम्मीद की भी नहीं थी बस आप सत्ता में इसलिए आये की लोग आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के साथ-साथ भष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में मजबूती चाहते थे। यह तो तय है की पांच साल में विकसित करने के लिए आपको कम से कम ब्रह्मा होना पड़ेगा। वो आपसे बस का है नहीं।