Tuesday 14 November 2017

नई दिल्ली : लगातार दो सफल मीटअप करने के बाद, वेबफेअर, दिल्ली के ओखला इंडस्ट्रियल एरिया के फेस दो स्थित 91 स्प्रिंगबोर्ड सभागार में रविवार को अपने तीसरे संस्करण 'वेबफेअर 3.0' का आयोजन करने जा रहा है।

चलन के विपरीत, हिंदी भाषा में होने जा रही यह संगोष्ठी वेब इंडस्ट्री के छोटे-बड़े उद्यमियों, शोधकर्मियों और विद्यार्थियों के लिए बेहद लाभप्रद रहेगी।

गोष्ठी के दौरान ब्लॉगिंग, वेब कंटेंट, इंटरनेट मार्केटिंग, ओपन सोर्स प्लेटफॉर्म, वेब सिक्योरिटी व दूसरे अन्य अनुप्रयोगों के बारे में चर्चाएं होंगी। सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के अग्रणी विशेषज्ञ और वक्ता अपने विचारों और अनुभवों से उपस्थित लोगों को रू-ब-रू कराएंगे।

मीडियाभारती.कॉम के संपादक धर्मेंद्र कुमार, सस्ताहोस्ट के संस्थापक पंकज चौपड़ा, पर्सनलाइव आईटी सॉल्युशन की संस्थापक स्वप्निका जैन तथा प्रेरक वक्ता सूरज सुनील सिंह नगरकोटी इस मौके पर अपने संबोधन करेंगे। साथ ही, सभी वक्ता भाग लेने वाले अन्य आगतुंकों के साथ प्रश्नोत्तर सत्र में हिस्सा लेंगे। गोष्ठी के लिए पंजीकरण शनिवार तक खुले हैं।

एबी ग्रुप, सस्ताहोस्ट, 91स्प्रिंगबोर्ड और थीमियम इस गोष्ठी के प्रायोजक हैं तथा मीडियाभारती.कॉम, जीइंडियान्यूज.कॉम, द इमर्जिंग वर्ल्ड और समाचारएक्सप्रेस.कॉम इस आयोजन के दौरान मीडिया पार्टनर रहेंगे।

Monday 6 November 2017

सुनो प्रिय आज मैं तुम्हे कुछ बताना चाहता हूं हो सकता है मेरी यह बाते तुम्हे शायद बुरा लगे या जरूरत न हो जानने की फिर भी मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ,,, तुम तो जानती हो न प्रिय हर सिक्के के दो पहलू होते है ठीक वैसे ही मेरे भी दो पहलू है,,, एक जो तुम्हारे सामने हंसते बोलते लड़ते-झगड़ते बड़ी-बड़ी आँखे दिखा कर छोटी-छोटी बातो पर बहस करते, तुमसे दूर जाने की सोच से ही डरते तुम्हारे बिन खुद की कल्पना करने मात्र से सिहर उठते,, मैं वह सब कुछ करता जो एक लड़का प्यार में करता है पर एक दूसरा पहलू ठीक इसके विपरीत है जब मैं खुद में रहता हूँ तो एकदम शांत गुमसुम किसी दुनियां दारी से कोई मतलब नहीं होता। तुम जानती हो प्रिय मैं कई-कई दिनों तक अपने कमरे से बाहर भी नहीं निकता मेरे लिए वह कमरा ही सब कुछ है उस कमरे में पड़ी कुछ किताबें और उन किताबों के बीच मैं मेरे अंदर तुम्हारी यादे।

सच कहुँ तो मैं उस यादों में ही रहना चाहता हूं। किसी के होने या न होने का कोई मलाल नहीं होता। जो देखने में बिल्कुल शांत नदीं की मादिक पर जिस तरह नदियां अपने आप में अशंख्य भवर खुद में सम्माहित किये होती है बिल्कुल वैसे ही मैं भी न जाने कितने भवर ले कर जीता हूँ,, बहना चाहता तो बह जाता इस छोर से कहीं दूर पर वेदनाओं के वेग बहुत तेज होते है न प्रिय न जाने कितना कुछ बहा ले जाये इसलिए शांत हूँ। ठीक वैसे ही जैसे महादेव ने गंगा को समेट रखा है अपने जटाओं में...अगर तुम  सम्भाल लो मुझे खुद में कहीं, तो मैं सभी बांधे तोड़ तुम तक आ जाऊँ पर शायद ये सम्भव नहीं है। तुमने कभी देखा है नदियों में उफान उठते हुए हाँ बिल्कुल वैसे ही मुझमें भी एक उफान उठता है जो सिर्फ मुझको ही तबाह करता है....

प्रिय तुमने कभी सुना है रात में नदियों की कलकलाहट,, रात के पहर बहुत कुछ कहना चाहती है ये नदियां पर उस वक़्त सब उसे छोड़ कर जा चुके होते है,, हाँ तुम आती हो कभी-कभी किनारे तक मुझे जानने के लिए... पर तुमने कभी कोशिश नहीं किया मेरे गहरायी तक आने की... न कभी मैंने कोशिश की तुम्हे खुद में सम्माहित करने की... खैर तुम्हारे जाने के बाद कुछ किस्से इस चाँद को भी सुनाता पर वो भी न ठहरता बादलों में छुप जाता और सोचता एक दाग ले कर वो निरन्तर एक समान न रहता फिर ये नदी सबके पापों को ले कर कैसे बहती एक समान,, सच बताऊँ प्रिय जिम्मेदारियों और विश्वासघात के हवनकुंड में जल कर मेरी इच्छायें भी सती हो गयी है मैं भी चाहता तो महादेव की तरह समाधि ले लेता पर कुछ शेष है जो जला नहीं अभी जो रोके हुए है मुझे,, और ये शेष तब जागृत हुआ जब तुम आये,,, कभी उतर आओ इस नदीं में और देखो मेरे हृदय पर लगे आघात को या फिर जाने दो मुझे भी उस समाधि की और जहाँ कोई मोह न हो यकीन मानो मैं वहाँ भी जी सकता हूँ पर एक दर्द के साथ जो जब तक जीवन रहे तब तक रहे, अब तुम पर है तुम चाहो तो रोक लो या मिट जाने दो मुझे !!