Sunday 9 August 2015

आज से ठीक 70 साल पहले उस दिन कैलेण्डर पर तारिख थी छह अगस्त 1945 जापान के हिरोशिमा का आसमान साफ था। वहां के लोगों के लिए उस दिन की सुबह भी वैसे ही थी। जैसे रोज हुआ करता था। लोग अपने रोजमर्रा के कामों को निपटाने में लगे हुए थे किसी को इस बात की भनक तक न थी कि वो बस चंद पलों के ही मेहमान हैं, यह उनकी आखरी सुबह है। पर अभी इतिहास लिखा जाना बाकी था। ऐसा इतिहास जिसकी विभीषिका सुन कर लोगों के सालों-साल तक रोंगटे खड़े कर देने वाली हो। इसकी इबारत तो तैयार थी पर किसी को कानो-कान पता न था। अभी लोखों जान जानी बाकी थी अभी बाकी थी आग की लपटे, धुआं का बादल, गिरते-पड़ते बच्चे, बुड़े, अभी बाकी था मौत का भीशन तांडव, चिखते-चिल्लाते लोग, लाशों का ढ़ेर, खुन की नदीयां और शरीर के चित्थड़े जिसे देख कर उस भगवान की भी रुह कांप जाए जिसने हमें बनाया। जिसकी तैयारी अमेरिका के राष्ट्रपति ने बहुत ही गोपनिय अभियान के तहत किया। जापान पर परमाणु बम गिराए जाने की।

कैसे कोई भुल सकता है उस काले दिन को। उस विभीषिका को। वह दिन, वो महीना, वह साल इसके बाद ही तो हीरोशिमा विश्व के मान चित्र पर आया था। अगस्त का महिना अभी शुरू ही तो हुआ था। महीने की छटी रात कहलें या सुबह 2 बजकर 45 मिनट जब अमेरीकी वायुसेना के बमवर्षक बी-29 'एनोला गे' ने उड़ान भरी और दिशा थी पश्चिम की ओर, लक्ष्य था जापान के हिरोशिमा... बम का नाम था 'लिटिल बॉय' ठीक सुबह के सवा आठ बजे थे। जब 20 हज़ार टन टीएनटी क्षमता का 'एनोल गे' ने लिटिल बॉय को आसमान से गिराया बस चंद मिनटों में ही धुएं के बादल और फैलती हुई आग ने पुरे शहर को अपने चपेट में लिया, और हिरोशिमा में सब कुछ निर्जन और उजाड़-वीरान बना दिया। लोखों लोग उस दिन मारे गए और न जाने कितने उसके बाद भी कैंसर जैसे बिमारी के कारण तिल-तिल जान गवांते रहे। कई इस हाल में रहे जिसकी सांसे तो चल रही हैं लेकिन वे जीवित नहीं थे।

कैलेण्डर मैं एक बार फिर तारीख और लक्ष्य बदल महीना और साल वही था। इस बार तारीख थी 9 अगस्त लक्ष्य था नागासाकी आठ अगस्त की रात बीत चुकी थी, अमीरका के बमवर्षक बी-29 सुपरफोर्ट्रेस बॉक्स पर बम लद चुका था। भीमकाय बम का वजन था 4050 किलो। बम का नाम विंस्टन चर्चिल के संदर्भ में 'फैट मैन' रखा गया। घड़ी में समय था 11 बजकर 2 मिनट जब फैट मैन को नागासाकी पर गिराया गया। बम के गिरते ही आग की भीमकाय गोला तेजी से सारे शहर को निगल गया। आस पास के दायरे में मौजूद कोई भी व्यक्ति यह जान ही नहीं पाया कि आखिर हुआ क्या है क्योंकि वो इसका आभास होने से पहले ही मर चुके थे। देखते ही देखते जापान का दूसरा शहर भी तबाह हो चुका था। लाशों के ढ़ेर लग चुके थे जो लोग बच गए थे वो जान बचाने के लिए बदहवास लोशों के ऊपर से भाग रहे थे। यू तो इस हादसे को 70 बरस बीत गए, लेकिन 70 साल बीत जाने के बाद भी उस परमाणु हमले की विभीषिका आज भी रोंगटे खड़े कर देने वाली है।
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