Tuesday 18 July 2017

Posted by Gautam singh Posted on 00:00 | No comments

आनंद मरा नहीं करते!

बाबू मोशाय! जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं।

"अरे ओ बाबू मोशाय! हम तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिसकी डोर उस ऊपर वाले के हाथों में हैं, कब, कौन, कहां उठेगा ये कोई नहीं जनता।"

आनंद मरा नहीं, आनंद कभी मरते नहीं। ये संवाद दरअसल दर्शन है जीवन का। एवरग्रीन एक्टर 'राजेश खन्ना' यानी काका उनका जीवन रंगमंच जैसा ही तो रहा। सितारों की ज़िन्दगी में जब तक तालियों की गढ़गढ़ाहट शामिल होती है तब तक उन्हें कुछ नहीं सूझता, लेकिन जब ये तालियों का शोर धीमा पड़ने लगता है तो मानो उनके जीवन के रंग भी फीके पड़ जाते हैं। उनका यह डॉयलोक उनके उस दर्द को दर्शाते है। "इज्जते, शोहरते, उल्फते, चाहते सबकुछ इस दुनिया में रहता नहीं आज मैं हूं जहां कल कोई औऱ था। ये भी एक दौर है वह भा एक दौर था।" जब तक स्टेज सजा था तब तक लोगों की भीड़ भी लगी हुई थी, जैसे ही मज़मा ख़त्म हुआ, काका अकेले रह गए। काका ही सिर्फ ऐसे अदाकार थे जिन्हें 'सुपरस्टार' का ख़िताब मिला।

काका अपने मासूम और सुंदर अभिनय में प्रेम रचते। उस दौर में राजेश खन्ना ने जो लोकप्रियता हासिल की, आज के जमाने में उसके आसपास भी कोई नहीं पहुंच सकता। तब के युवा खासतौर पर उनके जैसे कपड़े बनवाया करते उनके जैसे बाल रखते, उनके ऊपर फिल्माये गानों को गुनगुनाते। लड़कियों में उनको लेकर ऐसी दीवानगी थी कि उनकी एक झलक पाने लिए घंटों इंतजार करतीं। उस दौर में लड़कियां उन्हें खून से खत लिखा करती और उनकी फोटो से शादी तक कर लिया करती। काका की सफेद रंग की कार जहां रुकती थी, लड़कियां उस कार को ही चूमा करती। लिपिस्टिक के निशान से सफेद रंग की कार गुलाबी हो जाया करती थी। आज काका हमारे बीच नहीं है, उनके 'फैन्स' उनसे जुदा नहीं हो सकते! उनके फैन्स उनके ही रहेंगे यही तो काका ने पंखे वाले विज्ञापन में कहा था। काका भले ही ना हो लेकिन फ़िल्मों में निभाए गए अपने किरदारों से वह हमेशा अपने चाहने वालों के बीच बने रहेंगे। वैसे भी ‘आनंद’ मरा नहीं करते! वह तो उदासी में जीवन को अर्थ देते हैं।
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