Monday 2 December 2013

Posted by Gautam singh Posted on 04:55 | No comments

ख्वाहिशें... छोटू की

होठों की ये मासूम मुसकराहट आंखों मे भरे हजारों सपने, दिल में छुपी हजारों ख्वाहिशें, यह बच्चे भी दुसरे बच्चों की तरह जीना चाहते है। यह भी आसमान में उड़ान भरना चाहते है लेकिन हर बच्चा इतना खुशनसीब नहीं होता। पापी पेट की आग और मजबूरीयों के चलते ये बाल मजदूर, मजदूरी करने पर मजबूर है। अपने सपनों को धुमिल होते ये खुद देख रहे है, इनके पैर मजदूरी की दलदल में इतने धंस चुके है, साथ ही छोटे-2 कंधों  पर जिम्मेदारियों का बोझ भी इस कदर बढ़ चुका है की उनकी ये उडान .......... मानों अब कभी संभव ही न हो। गलती इनकी नहीं, गलती तो इनकी किसमत की है जो इन मासूमों से रुठी है अगर भगवान ने थोडी दया दिखाई होती तो शायद आज ये भी औरों की तरह किसी बडे घर में मां बाप से अपनी फरमाइशें पूरी करा रहे होते पर इनकी किस्मत में तो भगवान ने मालिक की फटकार, लोगों की दुत्तकार, और समाज की हिकारत ही लिखी है प्यार और दुलार तो शायद भगवान लिखना ही भूल गए।

शिक्षा, स्वास्थ और बेहतर भविष्य हर बच्चे का मौलिक अधिकार है। लेकिन हमारे देश के ज्यादातर बच्चे बाल मजदूरी करने पर विवश है। बच्चे भगवान का रुप होते है। देश का भविष्य भी यही है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री प. नेहरु जी को बच्चे बहुत ही प्यारे थे और पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब भी अच्चों में देश का उन्नती देखते हैं, पर ऐसे भविष्य की हम उज्जवल कामना कैसे कर सकते हैं, जिसका वर्तमान ही निश्चित नहीं है। हमारे देश का भविष्य कहीं ईंटें ढोते नजर आता है तो कहीं कूडे के ठेर में अपनी किस्मत तलासता...... कुछ का बचपन भट्टी की ताप में झुलसकर खुद का वजूद खो रहा है। चाह तो इनके दिल में भी होगी की अपने बचपन को खुल कर जियें दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जांए। पर इन नाजुक कंधो पर जिम्मेदारीयां इतनी हैं की किसी के सामने अपनी इच्छा तक जाहिर नहीं करते ।

बाल मजदूरी किसी से छुपी नहीं है, ये कुकृत्य हमारे समाज में खुले आम हो रहा है। हालात तो ये है कि प्राईवेट के साथ-साथ सरकारी जगहों पर पर भी बच्चों से काम कराया जा रहा है। बच्चों की इस बदतर हालत का ज्ञान सभी को है, लेकिन करता कोई कुछ भी नहीं, वैसे आज कल की भागती दौड़ती जिन्दगी में किसी के पास इतना वक्त ही कहां है की वो किसी खुशी से महरुम बच्चे पर ध्यान दे। कुछ लोग होते है। जिन्हें इन बदनसीब बच्चों से  हमदर्दी होती है जब किसी बच्चे को चाय की दुकान पर काम करते देखते है। तो बुरा लगता है, जब किसी बच्चे को ढ़ाबे पर बर्तन साफ करते देखते है तो खुद को देश का जिम्मेदार नागरिक कहते हुए भी शर्म आती है, और जब खुद की जिम्मेदारी का अहसास होता है तो हमदर्दी केवल खयालों में ही सिमटी कर रह जाती है, और हम अपना मन मसोस कर ही रह जातें हैं।

ये नन्हें बच्चे खेलकूद और मौजमस्ती की इस उम्र में किस्मत की मार के साथ जिल्लत भरी जिंदगी गुजारते हैं। इनहें हर तरह के जुलमों का सामना करना पडता है, खाली हाथ और भूखे पेट जब ये अपने घर से निकलते हैं तो हर तरह के लोगों की नजर इन पर पडती है। कुछ तो ऐसे माफिया होते हैं जो  इन बच्चों का अपहरण करके इनसे भीख तक मंगावते हैं, हालात इससे भी बत्तर है विशेष तौर पर छोटी-छोटी लडकियों को जबरन वैश्यावृती के दलदल में धकेल दिया जाता है।

बाल मजदूर की इस स्थिति में सुधार के लिए सरकार ने तो सन्र 1986 में चाइल्ड लेबर एक्ट बनाया। जिसके तहत बाल मजदूरी को एक अपराध माना गया साथ ही रोजगार पाने की न्यूनतम आयु 14 वर्ष कर दी गई। सरकार ने नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोजेक्ट में बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिए कदम बढ़ा चुकी है। इस प्रोजेक्ट का उद्धेश्य बच्चों को इस संकट से बचाना है। जनवरी 2005 में नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोजेक्ट स्कीम को 21 विभिन्न भारतीय प्रदेशों के 250 जिलों तक बढ़ाया गया। लेकिन इससे कुछ ज्यादा फायदा नहीं हुआ आज भारत में लगभग 158.79 मिलियन बच्चों की संख्या है जिसमें 12.6 मिलियन बच्चा बाल मजदूरी कर रहा है।

सरकार प्रायमरी स्कूल में बच्चों को मिडडे मील देती है, आठवीं तक की शिक्षा को अनिवार्य और निशुल्क भी किया गया है, लेकिन लोगों की गरीबी और बेबसी के आगे यह योजनाऐं भी निष्फल साबित होती दिखाई दे रही है। आज हम छोटे-छोटे मासूम बच्चों को मजदूरी करते देखते है...... जहां एक तरफ सरकार बाल मजदूरी को कम करने का दावा करती है तो वहीं दूसरी और तस्वीर कुछ और ही बयान करती है। सरकार को जरुरत है की वो जमीनी हकीकत से जुडे और आंकडों को छोडकर वस्तुनिष्ठता पर जोर दे और उन बच्चों के भविष्य के बारे में विचार करे ताकी एक सुभारत का निर्माण किया जा सके।


उगते सूरज की किरणें इनकी बेबेस आंखों में कुछ चमक तो लाती है पर इनकी आंखें की वो चमक और आगे बढ़ने की उम्मीदें तो डूबते सूरज के साथ ही अस्त हो जाती हैं, आसमान में उड़ते बेपरवाह पंछी को देखकर मन में  इच्छा तो होती होगी की काश हमारे भी पंख होते तो इस तरह गुलामी की जंजीर में यू बंधे ना होते हम भी बेबाक अंदाज में बेपरवाह उड़ान भरते। शायद इनके ये सपने पूरे हो और हमारे समाज से बाल मजदूरी नामक दंश का विनास हो।
Posted by Gautam singh Posted on 04:48 | No comments

तोमर चाचा

                       

कल शाम को में अपने रुम पर बैठा था। तभी नीचें से जोर-जोर की आवाजे आने लगी। जब मैं नीचें पहुंचा तो देखा की पड़ोस में रहने वाले तोमर चाचा और चाची किसी बात को ले कर आपस में झगड़ रहे है। मैने लड़ाई शांत कराने की तमाम कोशिश की पर सफल हो सका चाचा और चाची की लड़ाई बढ़ती ही जा रही थी। की तभी चाची बोल पडी मैे मायके जा रही हूं।
ये बात सुनते ही मुझे एका-एक बाॅबी फिल्म का वह गाना याद गया जिसमें झुठ बोले कौआ काटे नामक लोकगीत में नायिका करीब-करीब सातों वचनों को निभाने पर जोर देते हुए कहती है। कि वह मायके चली जाएगी और नायक देखता रह जाएगा।
पर मैं आज तक यह समझ नहीं पाया हुं कि भारतीय पत्नियां अपने पति से जरा-जरा सा मतभेद होने पर मायके जाने की क्यों बात करती है। वह हर बात पर धमकी देती है कि वह मायके चली जाएगी। पर मैनें फिल्मों से लेकर समाज में जो देखा और समझा है। उसमें मैने पाया है, की भले ही पति पत्नि के बीच कितनी भी लड़ाई क्यों हो जाए पति उसे कितना भी क्यों पिटे पर वह मायके जाने कि बात नहीं करती। वह पति को उल्टे बोलती है कि पालकी में आई हूं और अर्थी पर ही जाउगीं।

लेकिन आज की पत्नियां ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। उनके सौंपिग के लिए पैसे कम नहीं होना चाहिए। बगल वाले शर्मा जी के घर में कौन सी टीवी कौन सा फ्रीज आया है। इन्हें भी वहीं चाहिए। आप भले ही दिन रात चूले में जल कर काम क्यों करे। उनसे उनको कोई मतलब नहीं, उनका तो बस फरमाईस पूरा होना चाहिए। नहीं तो बात-बात पर मायके जाने को तैयार हो जाती है। दरअसल वह चाहती है। की जब वह मायके जाने की बात अपने पति के सामने करेगी तो उसका पति उसे रोकने का हर तरीब अपनाएगा, और मनाएगा।
पर अफसोस आज के पति अपने पत्नियों से ऐसा कोई हमदर्दी नहीं रखना चाहते अगर पत्नि कहती हैकी मैं मायके चली जाउगी तो पति कहता है। तुम कब जा रही हो अभी रिजर्वेशन करा दूं। ताकि मैं चैन से जी पाऊ।
                      


Monday 19 August 2013

मेरठ।  स्वाधीनता की चेतना भारतीय समाज में अरसे से जन्म ले रही थी। भारत के महान सपूतों के  बलिदान और अथक संघर्ष की कमाई है  आजादी।  असंख्य-असंख्य जिजीविषाओं का  महोत्सव । स्वतंत्रता के मूल्यों  और जन सरोकारों को आत्मसात करें। नागरिक कर्तव्यों एवं अधिकारों का सजग होकर पालन करें।
उक्त बातें भारतीय स्वतंत्रता दिवस के 67वें  उत्सव पर अभिव्यक्त हुए।  स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय के तत्वावधान में स्वतंत्रता दिवस हर्षोल्लास से मनाया गया ।  उल्लास , उमंग और जोश -जज्बे के साथ विश्वविद्यालय परिवार ने पूर्वजों के बलिदान और अथक संघर्ष तथा जिजीविषा  को नमन किया । विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कॉलेज प्रांगण में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के पूर्व निदेशक, वरिष्ठ विद्वान डॉ0 महावीर शरण जैन ने कहा कि जिन्हें आजादी नहीं हासिल है, वही आजादी के मोल समझ सकता है क्योंकि 'पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं।’  जब वाणी की स्वतंत्रता छिन जाए तो मन कितना व्यथित होता है, इसका अंदाजा वहीं लगा सकता है  जो अपने मन-प्राण को अभिव्यक्त नहीं कर सकता !
 वस्तुतः आज जिन शहीदों के कारण हम आजाद हैं, उन सभी के त्याग, समर्पण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिवस है। आज सामाजिक एकजुटता एवं समरसता का समय है । जिन शहीदों ने अपने प्राणोत्सर्ग कर दिया,  उनकी कृतज्ञता शब्दों से नहीं व्यक्त की जा सकती। 


                  मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के पूर्व निदेशक डॉ0 महावीर शरण जैन
                  ध्वजारोहण करते हुए ….


    डॉ जैन ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्मरण करते हुए कहा कि वह जो कहते थे,  उस पर पहले स्वयं अमल करते थे। उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं था। यही कारण था कि उनके बारे में कहा जाता था- चल पडे जिधर दो डग मग में, चल पडे कोटि पग उसी ओर। उन्होंने कहा कि स्वामी जी तथा गांधी जी एक दूसरे के पूरक हैं। यह संस्थान स्वामी विवेकानंद  के नाम पर है और उन्होंने धर्म और अध्यात्म को सामाजिकता प्रदान की। स्वामी जी ने मानव सेवा को धर्म का प्रतिमान बना दिया। उन्होंने कहा था- जो व्यक्ति भूख से तडप रहा हो, उसके सामने धर्म परोसना, उनका अपमान है और गांधी जी ने कहा था- जो तमाम मानव में विद्यमान है,  मैं उसी ईश्वर की पूजा करता हूं,  जो कि सत्य है।
 अपने संबोधन में उन्होंने उन बच्चों द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमों की प्रशंसा की जो सुभारती में काम कर रहे श्रमिकों के हैं। उन्होंने इस पर प्रसन्नता व्यक्त की कि सुभारती उनके बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करके सामाजिक सरोकार से भी जुडा है। हमें संपूर्ण समाज के हित के लिए काम करना होगा। संवैधानिक मूल्यों समता, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता का पालन करना होगा। आज राजनेताओं को आत्ममंथन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि नेता जनता का प्रतिनिधि होता है। आज हो रहे घोटालों पर उन्होंने दुख व्यक्त किया और कहा कि इससे बचने के लिए पारदर्शिता जरूरी है। जब नेता ईमानदार और पारदर्शी होंगे तो देश की प्रगति होगी। आज कुछ विदेशी ताकतें हमें बांटने की कोशिश कर रही हैं, उन्हें निष्प्रभावी करना होगा। प्रो. जैन ने कहा कि भारत के पास मेधा है, प्रतिभा है, ताकत है,  उसे आगे बढाना होगा। नारी शक्ति पर हो रहे अत्याचार को भी रोकने के लिए उन्होंने संवेदनशील होकर कार्य करने की बात कही। सुभारती के माध्यम से उन्होंने ऐसी शिक्षा की व्यवस्था करने की बात की जो पूरे विश्व को ज्ञान दे सके।


                सुभारती केकेबी चैरिटेबल  ट्रस्ट की अध्यक्षा डा. शल्या राज संबोधित करते हुए------



सुभारती केकेबी चैरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्षा डा. शल्या राज ने अपने सुचिंतित संबोधन में सभी से अपने नागरिक कर्तव्यों का पालन करने का आहवान किया। देश और समाज के प्रति जिम्मेवारी महसूसना होगा । उन्होंने कहा कि साफ-सफाई, संसाधनों के दुरुपयोग की ओर युवाओं को सजग रहने की जरूरत है। युवाओं को खुद को देखना होगा। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर ऐसा क्यों और कैसे है कि हम बाहर जाते हैं तो वहाँ के नियमों और शिष्टाचार का बखूबी पालन करते हैं लेकिन अपने घर यानि देश और समाज में नहीं करते हैं। हमारे उच्च प्रतिमानों और मूल्यों के साथ व्यावहारिक संगति नहीं है। इस पर सभी को चिंतन-मनन करना चाहिए। आज हमारे लिए महान अवसर है। इस मौके को जाने न दें। आज़ादी के इस उत्सव को , स्वाधीन चेतना की विजय गाथा को एक बड़े अवसर के रूप में लेना चाहिए ताकि हम आत्मावलोकन कर सकें । 




                          

                       विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मंजूर अहमद संबोधित करते हुए-----




विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मंजूर अहमद ने कहा कि लम्बे संघर्ष के बाद हमें आजादी मिली। मेरठ की धरती ने आजादी के संघर्ष में महान योगदान दिया। सभी लोगो ने कंधे से कंधे मिलाकर आजादी की अलख जगाई। देश से मोहब्बत रखने वालों ने कुर्बानियां दीं।  आज उनके जज्बे को याद रखने की जरूरत है। उसे धुंधला न होने दे।
उन्होंने कहा कि यह आज़ादी ऐसे ही नहीं मिली ।  ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को उधृत करते हुए उन्होंने कहा कि 1940 -1944 तक कोई  उम्मीद नहीं थी कि हम कभी आज़ाद भी होंगे !

प्रो. मंजूर ने कहा कि सुभारती ने कोशिश की है कि यहां पूरे देश के बच्चे शिक्षा के लिए आएं। आज पूरब -पश्चिम , उत्तर --दक्षिण हर जगह के बच्चे सुभारती में लघु भारत का आभास कराते हैं। हमारी कोशिश है कि हम पूरे भारत को एक करें।  राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए सुभारती हमेशा तत्पर है … ।
उन्होंने आगे कहा कि हमें अपनी संस्कृति, अपनी भाषा पर गर्व करना होगा। हमारे युवा अपनी ही भाषा से कटते हैं। अपनी संस्कृति और अपनी भाषा अपनाएं। हम सब एक साथ चलें तो कोई भी कार्य मुश्किल नहीं है। स्वतंत्रता के उत्सव को बड़े अर्थ में ग्रहण करना चाहिए और देश को निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर करना चाहिए।
 इस पुनीत अवसर पर आयोजित समारोह में रंगारंग देशभक्ति पूर्ण प्रस्तुतियों, समूहगान, नृत्य आदि से सुभारती विवि के छात्र-छात्राओं ने मन मोह लिया। अनेक भावपूर्ण प्रस्तुतियां वातावरण में  गूंजती  रहीं।
छात्र-छात्राओं के अलावा महिला गार्ड रूबी खान ने ...ये सुभारती समाज हमारा----- सुनाकर खूब तालियां बटोरी। सफाई कर्मचारी नरेन्द्र की जोश-जज्बे से रचित भावपूर्ण कविता को सभी ने सराहा। छा़त्र मौ. गुलहसन ने-है प्रीत जहां की रीत, मैं गीत उसी के गाता हूं, गीत प्रस्तुत किया । पत्रकारिता एवं जनसंचार के वरिष्ठ शिक्षक पी के पांडे ने 'बडी होती बेटी' (पत्रकार एवं वरिष्ठ कवि ) शीर्षक कविता का पाठ किया। इसके अलावा कोमल सिंह, ऋचा, नीरज ढाका, डा. किरन गर्ग एवं छोटे बच्चों ने आकर्षक प्रस्तुति दी। योगा कालिज की बी0एन0वाई0एस की छात्राओं ने म्यूजिकल योग के माध्यम से भारत माता की अनूठी वंदना की। इंजीनियरिंग के छात्र मानव सिंह एवं शिवम भारद्वाज ने सत्यमेव जयते -----का सराहनीय संगीतमय गायन किया। नर्सिंग छात्रा शरण्या ने है ईश्वर या अल्लाह प्रस्तुत किया। साथ ही कोमल, अंशु, एना सिसौदिया ने भाषण दिया। सुभारती इंजीनियरिंग कॉलेज की ओर से आजादी और देशभक्ति से जुडी कुछ लघु फिल्में दिखाई गई।
इसके पूर्व अल्लसुबह विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों के छात्रों-शिक्षकों आदि ने प्रभातफेरी निकाली । वंदे मातरम , भारत माता की जय के नारे से वातावरण गुंजयमान हो उठा ।
 इस अवसर पर प्रति कुलपति प्रो. एके खरे, कुलसचिव पीके गर्ग, डा. जीएस भटनागर, मेडिकल कालिज के प्राचार्य डा. एके अस्थाना, ट्रस्टी डॉ एसडी खान आदि सहित विभिन्न संकायों -संस्थानों के प्राचार्य एवं डीन मौजूद रहे। समारोह का संचालन सुभारती मेडिकल कॉलिज के कम्युनिटी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डा. राहुल बंसल ने तथा स्वागत एवं संयोजन इंजीनियरिंग कॉलेज के डा. जयंत शेखर ने किया।

Tuesday 16 July 2013

Posted by Gautam singh Posted on 03:41 | No comments

प्रभाष जोशी की याद

       


                                   

             

स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय में मीडिया  छात्रों के ' संवेदना'  के बैनर तले हिन्दी पत्रकारिता के श्लाका पुरुष  प्रभाष जोशी की जयंती पर उन्हें याद किया । प्रभाष जी को याद करते हुए मीडिया छात्रों ने उनके विचारों और जीवन पर प्रकाश डाला ।  खरी-खरी कहने और बोलने वाले प्रभाष जोशी को आज की जरूरत बताया गया ।
        
संस्थान के निदेशक नीरज शर्मा ने कहा कि प्रभाष जोशी हिन्दी पत्रकारिता के श्लाका पुरूष थे उन्होंने एक साहसी सरोकारी पत्रकार और सम्पादक के रूप में हिन्दी पत्रकारिता को अमूल्य योगदान दिया।  वरिष्ठ पत्रकार सुनील छइयां ने कहा कि प्रभाष जोशी ऐसे सम्पादक और पत्रकार थे जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को आम आदमी तक पहुँचाने  का काम किया। प्रभाष जोशी ने हर क्षेत्र के समाचारों को नये आयाम दिये। क्रिकेट के खेल पर उनके आलेख आज भी चर्चाओं में रहते हैं।  संकाय के एचओडी एवं एसोसिएट प्रो. पीके पाण्डेय ने कहा कि उनकी निर्भयता, जनपक्षधरता और सरोकारों को जिन्दा रखा जाए। प्रभाष जी की जयंती पर याद करने का यह बडा अर्थ है । उन्होंने  हमें सिखाया कि खबर देना ही नहीं , खबर लेना भी पत्रकारिता का काम हैं। इस मौके पर शिक्षकगण सुमन मिश्रा, शिखा धामा, दीपा पारछा, शिप्रा त्रिपाठी, शशांक शर्मा के साथ संकाय के  छात्र-छात्राओं गौतम,  अमित, विपिन, निष्टी, श्मिता, अबरार, राहुल ने भी अपने विचार रखें और उनके जीवन और सन्देश को प्रकाश स्तम्भ बताया ।                                                
                                       



                                                                 
   

                                                                                                       
Posted by Gautam singh Posted on 02:34 | No comments

क्या थी मेरी खता

          
एक बच्ची जिसने अभी ठीक से चलना भी नहीं सीखा था, जो बिल्कुल अबोध थी, जिसने अभी ठीक से दुनिया भी नही देखी थी, जिसकी उम्र लगभग डेढ माह की हुयी थी। तब मां ने उसको नहर में डाल दिया। तब लडकी के मन में ये सवाल तो जरूर आयें होंगे कि मां तुम तो मेरी जननी हो, तुमने मुझे दुनिया में उतारा हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया जो तुम मुझे मिटाना चाहती हो। मां मुझे मत मारो, मैं तुम्हारा सहारा बनूगीं, मैं कभी भी किसी चीज के लिए जिद नही करूगी,जो तू मुझे देगी में वो ही खा लूंगी, मां मुझे मत मार, मुझे जीने दे। मां आखिर मेरा गुनाह क्या है ? क्या मेरा गुनाह यह है कि मैं बेटी हूॅ। इसलिए तुम मुझे जिन्दगी के बदले मौत देना चाहती हो।



 माता तुम तो ममता की मूर्त हो, फिर तुम दिल पर क्यों पत्थर रख रही हो। आपके सामने ऐसी क्या परेशानी आ गयी जो तुम मुझे खत्म करना चाहती हो। दूध पिलाने की उम्र में तुम मुझे नहर का पानी पिलाकर मौत के मुंह में धकेल रही हो। मां मैं आधी रोटी खा लूंगी, कपडे भी दीदी के पहन लूंगी, मुझे मत फैको। जिस मॉ ने उसको सीने से लगाकर रखा। मां ने जब उसे अपने से अलग किया होगा क्या तब उसके दिल से कोइ आवाज नही आयी। आखिर क्यों उसने अपने कलेजे के टुकडे को, अपने अंश को ही खुद से अलग कर दिया। कैसी मां थी वो ? परेशानी कुछ भी हो लेकिन मां के इस कृत्य ने ममता को कलंकित तो कर दिया। जिस मां ने 9 महीने तक बच्चें को पेट में रखा, पैदा होते ही ऐसी क्या परेशानी आ गयी कि उसे खत्म करने की ठान ली। क्या वह परेशानी बेटी तो नही ?                                     

Sunday 30 June 2013

मेरठ,  2 7 जून । सुरेन्द्र प्रताप सिंह पत्रकारिता के एक  ऐसे महानायक थे जिनके द्वारा बोला गया एक वाक्य----' तो ये थी खबरें आज तक, इन्तजार कीजिए कल तक' आज भी लोगों के जहन में जस का तस बना हुआ है। एसपी यानी सुरेन्द्र प्रताप सिंह पत्रकारिता के एक ऐसे सुपर स्टार थे  जिन्होंने  एक पूरी  पीढ़ी का निर्माण किया। वे ऐसे संपादक थे, जिन्होनें संपादकीय गरिमा  का बखूबी  निर्बहन  तो किया ही,  साथ ही साथ प्रबंधन को सत्साहस के साथ अहसास कराया कि  असली पोडक्ट खबर है। पत्रकारिता के सभी  दिग्गज   और हमारे शिक्षकगण यह  हैं कि दूरदर्शन पर सरकारी सैंसरशिप के बावजूद एसपी ने जनसरोकारों और खबर की हद तक खूबसूरती से लोगों तक पहुंचाते रहे।
प्रख्यात पत्रकार सुरेंद्र प्रताप सिंह यानि एसपी सिंह की पुण्य तिथि के अवसर पर स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के सुभारती इंस्टीट्यूट ऑफ  जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन में मीडिया छात्रों ने 'संवेदना' के बैनर तले 'आज की टीवी पत्रकारिता और एसपी सिंह’ पर चर्चा कर उन्हें याद किया गया। उनके योगदानों को याद किया गया ।




                                                     चर्चा  के दौरान उपस्थित छात्र/छात्राएं एवं शिक्षकगण


वरिष्ठ पत्रकार एवं  रचनाकार तहसीन मुनव्वर ने कहा कि ‘‘आज हिंदी पत्रकारिता जिस मुकाम पर है उसमें एसपी सिंह के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। लेकिन अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हिंदी पत्रकारिता अपना अस्तित्व खोते जा रही है। आज की हिंदी पत्रकारिता को पहले से ज्यादा एसपी की जरूरत है।’’
 टीवी पत्रकार प्रभात शुंगलू ने कहा कि ’’एसपी सिंह ने ढाई दशक की पत्रकारिता में हिंदी पत्रकारिता को नए तेवर, नए आयाम दिए साथ ही हिंदी पत्रकारिता की दिशा और दशा   बदल दी। अब न तो वैसे पत्रकार बचें हैं और न ही वैसी पत्रकारिता।’’
वरिष्ठ पत्रकार सुनील छइयां ने कहा कि ’’ राजनीतिक, सामाजिक हलचलों के असर का सटीक अंदाजा लगाना और सरल भाषा में उसका खुलासा कर देना उनका स्टाईल था। ''


 चर्चा में आए वरिष्ठ पत्रकार  तहसीन मुनव्वर (दायें से दुसरे ), टीवी पत्रकार प्रभात शुंगलू (बाएँ से तीसरे ) के साथ  निदेशक नीरज शर्मा(बीच में ), विभागाध्यक्ष पीके पांडेय, प्रवक्ता शिप्रा त्रिपाठी, दीपा पार्चा, शशांक शर्मा................!



सुभारती मास कम्युनिकेशन के निदेशक नीरज शर्मा ने कहा कि ’’एसपी सिंह ने 'आज तक' नाम से एक कार्यक्रम की शुरूआत की जो दूरदर्शन पर आया करता था। एसपी सिंह दूरदर्शिता, सृजनात्मकता की नींव पर रखा यह कार्यक्रम समय बदलने के साथ-साथ केवल एक कार्यक्रम न रहकर पूरा न्यूज चैनल बन गया जिसे हम आज तक के नाम से जानते हैं। यदि एसपी सिंह को आज तक का पर्याय कहा जाए तो गलत नहीं।
 मास कम्युनिकेशन के एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष पीके पांडेय ने कहा कि ’’एसपी सिंह ने कम समय में ही विजन, नेतृत्व क्षमता और सरोकारों  के बल पर स्टारडम हासिल किया।  वे हमारे गुरुर थे। 'रविवार' और 'दिनमान' में उनकी दृष्टि की झलक पत्रकारिता के छात्रों और हम सभी के लिए आज भी मार्गदर्शक है। उन्होंने  खोजी पत्रकारिता और स्पॉट  रिपोर्टिग से हिन्दी पत्रकारिता को नया धार , स्वर  और विस्तार दिया।’’ इस मौके पर मास कम्युनिकेशन की  प्रवक्ता शिप्रा त्रिपाठी, दीपा पार्चा, शशांक शर्मा के साथ संकाय के सभी छात्र/छात्राएं उपस्थित रहे।     

Tuesday 25 June 2013



 मेरठ। सुभारती का अर्थ है सुंदर भारती। भारतीयता के मर्म की सुंदर कल्पना ! संकल्पना -- एक ऐसे स्वप्नदर्शी व्यक्तित्व की जो सामाजिकता, सरोकारों और राष्ट्रीयता को जीवन ध्येय बनाकर चला। किशोर वय में ही आंखों में एक चमकदार, सुनहरे मानवीय सपने लिए (डा.) अतुल कृष्ण ने सुभारती आंदोलन की नींव रखी। कुछ नया रचने की चाहत ..! समाज के दुःख-दर्द में हमेशा भागीदारी और मददगार हाथ लिए ... अनेक शैक्षिक, सांस्कृतिक सपनों को उन्होंने जीवन मर्म बना लिया। एक चिकित्सक ,  कुशल सर्जन --समाज की चिंता में ...जीवन को बेहतर और सुन्दर बनाने में समर्पित हो गया ! सामाजिकता और जीवन  के प्रति अथाह सरोकार उनकी स्वप्नदर्शिता है ।
भारतीयता की सुन्दर कल्पना है सुभारती ।


                                            डॉ अतुल कृष्ण , संस्थापक , सुभारती आन्दोलन


शहर की अशांति में दुखियारों के लिए अपनी टीम के साथ विद्यार्थी जीवन में ही बिना किसी परवाह के जूझ पड़ने वाले डॉ अतुल ने हमेशा समाज की जरूरत में यथासंभव मदद के लिए आगे बढ़कर कार्य किया । यह सिलसिला करीब तीन -चार दशकों से जारी है ....।
इसी कड़ी में केदारनाथ में प्रकृति की भीषण चुनौती और आपदा में भी सुभारती परिवार आगे बढ़कर आया। सुभारती विश्वविद्यालय के गुरु तेगबहादुर सभागार में आयोजित एक आपात सभा में आपदा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की गई तथा भीषण आपदा में फंसे लोगों की सहायता और बीमारों की चिकित्सा के लिए भी सुभारती की ओर से समुचित व्यवस्था की पहल की गई।  प्रभावित लोगों की मदद के लिए सुभारती परिवार के समस्त स्टाफ ने एक दिन का वेतन उत्तराखंड 'मुख्यमंत्री राहत कोष' में देने की घोषणा की, जिसमें 12 लाख का चेक सुभारती के.के.बी. चैरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्षा डा. शल्या राज को इस वास्ते सौंपा गया कि वे उसे मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड को पहुँचा सके । सभा में वक्ताओं ने उत्तराखंड की आपदा को अत्यंत भीषण और दुखदायी बताते हुए कहा कि आज उन्हें हर स्तर पर मदद की जरूरत है जिसमें हम सभी अपने स्तर से हाथ बंटा सकते हैं।
            सुभारती के के बी चैरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्षा डा0 शल्या राज ने इस आपदा से प्रभावित लोगों की हर संभव मदद की घोषणा करते हुए कहा कि सुभारती की ओर से चिकित्सकों की एक टीम तत्काल उत्तराखंड जाएगी और जो लोग बीमार हैं , असहाय हैं उनको समुचित चिकित्सा प्रदान करेगी। सुभारती इस विपदा की घड़ी में लोगों के साथ है । 
                               डॉ शल्या राज,  अध्यक्षा , सुभारती केकेबी चैरिटेबल ट्रस्ट

 वहीं सुभारती आन्दोलन के संस्थापक डा. अतुल कृष्ण ने सुभारती परिवार के सभी सदस्यों से एक दिन का वेतन राहत कोष में देने का प्रस्ताव रखा जिसका विश्वविद्यालय परिवार ने समर्थन किया। सभा में ही उन्होंने 15 डाक्टरों की टीम भेजने, पोस्टमार्टम के लिए सुप्रशिक्षित डाक्टरों की टीम भेजने तथा आपदा में प्रभावित बीमार लोगों के इलाज के लिए सुभारती अस्पताल में निःशुल्क इलाज करने और पार्थिव शरीर को सुरक्षित रखने का प्रस्ताव रखा। जिसे सुभारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मंजूर अहमद एवं सुभारती मेडिकल काWलिज के प्राचार्य डा00के0 अस्थाना ने स्वीकार कर लिया। डा0 अतुल ने उत्तराखंड से मिली जानकारियों के आधार पर बताया कि वास्तव में वहां के हालात बहुत खराब हैं जिसमें मदद अति आवश्यक है और इसमें हर किसी को हाथ बंटाना चाहिए। राष्ट्र के हर नागरिक को विपति की इस वेला में हर संभव मदद की कोशिश करनी चाहिए । 
           वित्त सलाहकार राजेश मिश्र एवं प्रबंधक रश्मिकांत डॉ शल्या को चेक सौपते हुए ..।

स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मंजूर अहमद ने अपने संबोधन में कहा कि उत्तराखंड में आई दैवीय आपदा सच में अत्यंत विस्मयकारी और कष्टदायक है। आज इस आपदा से प्रभावित लोगों को मदद की जरूरत है और यह हम सभी देशवासियों का कर्तव्य  है कि इस नाजुक मौके पर हम उनकी सहायता के लिए आगे आएं। 

                                          कुलपति, प्रोफेसर मंजूर अहमद     
                                           


सुभारती इंस्टीट्यूसंस की संस्थापक डा0 मुक्ति भटनागर ने कहा कि यह दैवीय आपदा प्रकृति की ओर से हम सभी को चेतावनी है कि अब वक्त आ गया  है कि हम प्रकृति के साथ खिलवाड न करें। पृथ्वी और सृष्टि पर सभी जीवों का उतना ही अधिकार है जितना हम सभी का है । ...कौन जाने पृथ्वी के बारे में हमसे कही अधिक चिंतित रहती हों चीटियाँ ...। उन्होंने कहा कि वक्त आ गया कि अंधाधुंध विकास के बारे में हम पुनर्विचार करें ।

                                      सुभारती प्रतिष्ठानों की संस्थापक डॉ मुक्ति भटनागर 





                         सभागार का एक दृश्य



सभा के अंत में डेढ मिनट का मौन रखा गया तथा शांति पाठ करके मृतात्माओं की शांति की प्रार्थना की गई। सभा में सुभारती विश्वविद्यालय के समस्त कालेजों के प्राचार्यडीन , निदेशक , विभागाध्यक्षों ने भाग लिया। सभा का संचालन संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डा देशराज ने किया । 

             ---प्रमोद कुमार , साथ में गौतम सिंह

Thursday 6 June 2013

                        

मेरठ ,३0 मई , स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के वेलू नाचियार सुभारती पत्रकारिता एवं जन संचार संकाय’  में हिंदी पत्रकारिता दिवस (30 मई) पर हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव एवं विका तथा चुनौतियों एवं सरोकारों पर व्यापक विमर्श हुआ। ज्ञातव्य हो कि 30 मई , 1826 को कानपुर निवासी पं0 युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से उद्न्त मार्तण्डनिकालकर भारतीयों को आधुनिकता से परिचित कराने तथा उनमें राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करने में महान योगदान दिया। उदंत मार्तंड के 79 अंक निकले । 4 दिसंबर, 1927 को यह बंद हो गया । कहें तो सूर्यास्त हो गया ।  स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कालेज के मदन मोहन मालवीय प्रेक्षागृह में हिंदी पत्रकारिता की पुण्य स्मृति के अवसर पर  हिन्दी पत्रकारिताः चुनौतियां एवं सरोकारविषयक संगोष्ठी आयोजित की गई।
अनेक वरिष्ठ पत्रकारों, मीडिया समालोचकोंअध्येताओं तथा मीडिया छात्र-छात्राओं की मजबूत उपस्थिति में पत्रकारिता की चुनौतियों एवं सरोकारों पर प्रकाश डाला गया। बहस-तलब चर्चा की गई । संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए दैनिक प्रभात, मेरठ  के संपादक सुनील छईंया ने कहा कि पत्रकारिता एक जल की तरह है जिसमें भी जाता है उसी आकार में ढल जाता है। पत्रकारों को सरोकारों को लेकर ही आगे रास्ता अख्तियार करना होगा। 
वहीं मुख्य वक्ता के रूप में आए जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार अनिल बंसल ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमें यह खुद तय करना होगा कि हमारी असली जबाबदेही जनता के प्रति है,  नेताओं के प्रति नहीं। हमें अपने उपर प्रतिशोध की भावना हावी नहीं होने देना चाहिए। विश्वसनीयता हमारी सबसे बडी संपति है , कसौटी है ।
 दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार पारस अमरोही ने कहा कि हमें लोभी नहीं होना चाहिए । कयोंकि  जहां लोभ होगा , वहां सरोकार नहीं होगा । पत्रकारिता के सामने तब सवाल आते हैंजब पत्रकारिता सवाल करना बंद कर देती है । पत्रकारिता में हम दोस्त जनता के है,  न की किसी सत्ता वालों की । 
 मुख्य अतिथि दिल्ली से पधारे वरिष्ठ पत्रकार तहसीन मुनव्वर ने बताया कि आज बाजार का दौर है, और पत्रकार बाजार का सताया हुआ है । आज सोशल मीडिया के कारण हम हर उस खबरों को आम जनता तक पहुंचा देते हैं जो हम बाजार के कारण नहीं पहुँचा पाते हैं । पत्रकारिता का स्वरूप विस्तारित हुआ है। चेहरा बदला है। ऐसे मंे पत्रकारों और पत्रकारिता को समाज और संस्कृति को दिशा देनी होगी।
पत्रकारिता संकाय के विभागाध्यक्ष पी.के.पांडेय ने कहा कि हिंदी समाचार पत्रों को अपूर्णता से मुक्त होना होगा। अच्छी पत्रकारिता भी बिक सकती है , बिकती है । हिंदी पत्रकारिता को हिंदी भाषी क्षेत्रों के बौद्धिक पिछडेपन को दूर करना चाहिए । बौद्धिक-सांस्कृतिक पर्यावरण को उन्नत करने का प्रयास करना चाहिए । उन्होंने कहा कि भारतेंदु , महावीर प्रसाद द्विेदी , राजेंद्र माथुर , प्रभाष जोशी को न सुनना चाहें तो न सुनिए लेकिन अपने आदर्शमर्डोक को तो सुन लीजिए जिनके बारे में कहा जाता है कि एक दशक पहले तक भारतीय मीडिया मालिक उनके पीए तक ही पहुंच पाए थे ! तो ऐसे घनघोर प्रोफेशनल , मुनाफावाले  मीडिया अधिपति रूपर्ट मर्डोक भी कहते हैं कि जब तक हम जनसेवा के सिद्धांत पर वापस न लौटें , तो हम चैथा खंभा कहलाने का अधिकार खो देंगे ।
पत्रकारिता के छात्र गौतम कुमार सिंह ने कहा कि 186 साल पहले उदन्त मार्तण्ड यानि कि समाचार सूर्य निकालकर कठिन साधनहीनता के दौर में शुक्ल जी ने हमारी चेतना को जागृत किया और बौद्धिक विस्तार दिया। छात्र अमित कुमार ने कहा कि हमें हिंदी पत्रकारिता की महान विरासत और गौरवमयी परंपरा को आत्मसात करना होगा।
कार्यक्रम के अध्यक्ष स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मंजूर अहमद ने अपने वक्तव्य में कहा कि पत्रकार और पत्रकारिता आज-कल मुसीबत में है। बाजार और मुनाफा एक बड़ा मसला है।  उन्होंने कहा कि लखनऊ से हिन्दी में 2300 अखबार पंजीकृत हैं पर बाजार में मुश्किल से आठ-दस अखबार ही छपते हैं । बाकी सरकारी’  अखबार हैं जो सिर्फ सरकार से विज्ञापन लेने के लिए छपते हैं ! सरोकार ही पत्रकारिता को बचाएगा ।
 कार्यक्रम में आए मुख्य अतिथि तहसीन मुनव्वर,   मुख्य वक्ता अनिल बंसल,  पारस अमरोही तथा अध्यक्ष प्रो. मंजूर अहमद को पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय के निदेशक नीरज शर्मा ने पुष्प-गुच्छ भेंट कर स्वागत किया तथा विषय की प्रस्तावना रखी । उन्होंने कहा कि सच  और विश्वसनीयता की जमीन पर दृढ़ रहकर ही हिंदी पत्रकारिता वर्तमान चुनौतियों से पार पा सकती है।
 कार्यक्रम का कुशल संचालन बीजेएमसी प्रथम वर्ष के छात्र अनम खान शरवानी तथा आभार प्रकाश नीरज शर्मा ने किया। संकाय के  सुमन मिश्रा,  शिखा धामा,   दीपा पार्चा, शशांक शर्मा आदि मौजूद रहे

                                              
                                                           और कैमरे में ....


                                        तहसीन मुनव्वर बोलते हुए ....
 
तहसीन मुनव्वर का स्वागत करते नीरज शर्मा
                                       
                                         सभागार का एक दृश्य

                                                            -


                                   
                                                                                        
                                            
                            



                                                                                  
                  





Wednesday 10 April 2013

Posted by Gautam singh Posted on 23:38 | No comments



जनसंपर्क एवं कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन पर सेमिनार

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परफेक्ट रिलेशन के सहसंस्थापक एवं समूह सीईओ प्रदीप (बॉबी ) केवलरमानी को पेंटिंग भेट
करते हुए सुभारती मास काम के प्राचार्य प्रोफेसर आरपी सिंह एवं सुभारती फाइन आर्ट्स के प्राचार्य
प्रोफेसर पिंटू मिश्रा



                


                                       

 बॉबी केवलरमानी सेमिनार को संबोधित करते हुए ...
Posted by Gautam singh Posted on 23:02 | No comments

कुछ तस्वीरें ....



नुक्कड़ नाटक
सुभारती मास काम के छात्रों ने शहर -दर -शहर और परिसरों में प्रदर्शित किया ...





                                      


                                       

Monday 1 April 2013

Posted by Gautam singh Posted on 04:31 | No comments

यहाँ से देखो ....

दोस्तों ,  दुश्मन-दोस्तों ...!

ब्लोगिंग की दुनिया में हम भी हाजिर हैं । एक विजन और अभिव्यक्ति के साथ ।

 मास काम के हम हैं प्रशिक्षु ! अपनी पूरी संवेदनाओं और खालीपन के साथ ।