Saturday 1 April 2017


प्रिय तान्या

पुरे आठ साल ग़ुज़र गई है तुम्हारी ख़ामोशी पढ़ते हुए। ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो, लेकिन एक आहट जानी-पहचानी सी लगती है तान्या। तुम जानती हो सच्चाई तो बस खामोशी में है। शब्द तो मैं लोगों के अनुसार बदल लेता हूं। जुबां न भी बोले तो मुश्किल नहीं होता है प्रिय, लेकिन फिक्र तब होती है जब, खामोशी भी बोलना छोड़ दे। इश्क के चर्चे भले ही सारी दुनिया में होते होंगे पर दिल तो खामोशी से ही टूटते है न। तुमने कभी महसूस किया है खामोशी कितना कुछ कहती है। कान लगाकर नहीं कभी दिल लगा कर सुनों यह कितना शोर मचाती है। ये हाथ की लकीरें भी कितनी अजीब होती हैं न। होते तो हैं हाथ के अंदर पर काबू से बाहर। एक तेरी खामोशी ही जला देती है इस पागल दिल को… बाकी सब बाते अच्छी है तेरी तस्वीर में… मुझे कभी-कभी लगता है हमारी मोहब्बत जरूर अधूरी रह गयी होगी पिछले जन्म मे, वरना इस जन्म की तेरी ख़ामोशी मुझे इतना बेचैन न करती....

तुम जानती हो तान्या तुम्हारी खामोशी की भी एक जुबान है। ये खामोशी जिस से पल भर में सन्नाटा हो जाता है उसी ख़ामोशी का शोर कई बार अकेले में तड़पाने लगता है। यह खामोशी अब बर्दाश्त के बाहर होने लगी है प्रिय। कभी सावन के शोर ने मदहोश किया था मौसम, अब ऐसा लगता है पतझड़ में हर दरख़्त खामोश खड़ा है। तुम जानती हो तुमने जो वह सुफेद कलर का पैंट और ब्लू शर्ट दिया था न उपहार में... उसको मैंने अभी तक रखा है संभाल कर... जिस दिन तुम गई थी न उस दिन ही मैंने उस पैंट और शर्ट को रख दिया था। अटैची में प्लास्टिक के कवर में डाल कर उस वक्त उस पैंट पर कोई दाग नहीं था प्रिय। पर आज जब उस अटैची को खोला तो देखा उस पैंट पर दाग उभर गए है। यह पैंट और शर्ट ही तो था इकलौता गवाह हमारे मोहब्बत का... पर अब वह भी दगा दे गया है तुम्हारी तरह....शायद दगा इसलिए दे गया कि वह तुम्हारा ही दिया था अब जब तुम नहीं हो मेरे साथ तो वह कैसे रह पाता।

 जैसे तुम चली गई बिना कुछ बोले वैसे ही पैंट भी चला गया बिना कुछ कहें खामोशी से... मैंने रोकना भी चाहा था तुमको पर तुम नहीं रुकी... शायद जाना तुम्हारा शौक था...वो शौक तुम पूरा कर गई मेरी हसरते तोड़ कर...अब हर जज़्बात को कोरे कागज पर उतार देता हूं इसलिए की वह खामोश भी रहता है और किसी से कुछ कहता भी नहीं। तुम जानती हो तान्या मोहब्बत के जिस राहों में कभी दिल शोर मचाया करता था, आज वह गलियों से खामोश निकला करता है। यह जरूरी भी नहीं हर बात लफ्जों की गुलाम हो खामोशी भी तो खुद की जुबान होती है न शायद वो जुबां जिसे हम समझते हैं। तुम जानती हो प्रिय यह खामोशी ही मेरी कमजोरी बन गई है। जिस खामोशी से मुझे लगाव था आज वह शोर मचा रही है। कानो के पर्दे फाड़ देने वाले....तुम्हें कह न पाए कभी दिल के जज़्बात और इस तरह से तुम से दूरी बन गयी प्रिय।

तुम जानती हो तन्या मैं लिखता इसलिए हूं कि शब्द चाहे जितने हो मेरे पास, जो तुम तक न पहुंचे, तो सब व्यर्थ हैं...! प्रिय मैं हर शब्द तुम तक पहुचाना चाहता हूं तुम्हारे कानों को खामोशी से बनी नज्म सुनाना चाहता हूं। शायद इसलिए लिखता हूं और अब इसे ऐसे ही रहने दो प्रिय जो समंदर जैसे खामोश हैं और उसे खामोश ही रहने दो.. अगर ज़रा भी मचल गया तो सारा शहर ले डूबेगा। तुम जानती हो मैं सोचता हूं काश कुछ लम्हों को हम अपनी गिरफ्त में रख पाते, तो आज अपने सर पे तेरे हाथ की न कमी पाते। जिन्दगी की रहगुजर में कोई कमी सी रह गई, मिले तो थे कई सौगातें बस तेरी कमी रह गई। वो ख़्वाब जो दिन रात हम खुली आंखों से देखा करते थे, उन ख़्वाब को बस, शब भर जीने की तम्मना रह गई। तुम जानती हो न तान्या अश्कों के बह जाने की रवायत का मैं कायल नहीं था, फिर न जाने पलकों पे क्यों यह नमी सी आ जाती है। तुम तो चली गई हो पर गुफ्तगूं की तरह मेरी खामोशियां भी बोलती हैं। हर लफ्ज़ गुफ्तगू करता है.. हर लफ्ज़ तुम्हारा ही तो है। बार-बार टूटता है। हज़ार बार टूटता है और टूट कर तुम्हारी कल्पनाओं में खो जाता है। अब ना खुशियों की रौनक ना गमों का कोई शोर आहिस्ता-आहिस्ता ही सही जो तेरी यादों में कट जायेगा ये सफ़र....

तुम्हारा
 मैं...
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