Tuesday 18 September 2018

Posted by Gautam singh Posted on 03:02 | No comments

भगवा महज एक रंग नहीं

दुनिया में कई रंग है और यह दुनिया रंग बिरंगी है। किसी को लाल तो किसी को पीला रंग पसंद है। किसी को हरा तो किसी को नीला रंग पसंद है। रंग चाहे जो हो सबको कोई ना कोई रंग जरूर पसंद है। हिन्दू धर्म में प्रत्येक रंग का अपना अलग महत्व है। भगवा रंग सिर्फ हिंदू धर्म में ही आस्था का प्रतीक नहीं है। इस रंग को कई अन्य धर्मों में भी पवित्र माना जाता है।

केसरिया या भगवा रंग त्याग, बलिदान, ज्ञान, शुद्धता एवं सेवा का प्रतीक है। कहा जाता है कि शिवाजी की सेना का ध्वज, राम, कृष्ण और अर्जुन के रथों के ध्वज का रंग केसरिया ही था। भगवा रंग शौर्य, बलिदान और वीरता का प्रतीक भी है। भगवा या केसरिया सूर्योदय और सूर्यास्त का रंग भी है, मतलब हिन्दू की चिरंतन, सनातनी, पुनर्जन्म की धारणाओं को बताने वाला रंग है यह। जैसे हम सभी को पता है कि हिन्दू धर्म में सूर्य और अग्नि दोनों को पूजा जाता है। रौशनी और अग्नि बुराइयों को दूर करती है। केसरिया या पीला रंग सूर्य और अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है।

अग्नि में आपको लाल, पीला और केसरिया रंग ही अधिक दिखाई देगा। हिन्दू धर्म में अग्नि का बहुत महत्व है। यज्ञ, दीपक और दाह-संस्कार अग्नि के ही कार्य हैं। अग्नि का संबंध पवित्र यज्ञों से भी है इसलिए भी केसरिया, पीला या नारंगी रंग हिन्दू परंपरा में बेहद शुभ माना गया है। कहा जाता है कि पुराने ज़माने में साधु संत जब मोक्ष की प्राप्ति के लिए निकला करते थे तब अपने साथ अग्नि को भी लेकर निकलते थे। यह अग्नि उनकी पवित्रता की निशानी बन जाती थी। पर हर समय अग्नि रखना कठिन था इसलिए अग्नि की जगह भगवा रंग के ध्वज को साधु संत लेकर चलने लगे फिर धीरे धीरे साधू संत केसरिया या कहें भगवा रंग के वस्त्र भी पहनने लगे।

भगवा रंग का इस्तेमाल हिंदू के साथ ही बौद्ध धर्म और सिख धर्म में भी होता है। बौद्ध भिक्षु हमेशा भगवा कपड़ों में ही रहते हैं। सिख धर्म के अनुयायी भगवा पगड़ी को महत्व देते हैं, गुरु ग्रंथ साहेब को भी भगवा वस्त्र में रखा जाता है। सिख धर्म की ध्वजा निशान साहेब भी भगवा रंग की है। पूरे झंडे को भगवा कपड़ों में ही लपेटकर रखा जाता है। भगवा रंग का हिंदू धर्म या कहें कि सनातन धर्म का हिस्सा बनने की कहानी भी बहुत पुरानी है। भगवा वास्तव में ऊर्जा का प्रतीक है। जीवन और मोक्ष को भगवा के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह शब्द भगवान से निकला है। यानी भगवान को मानने वालों का भगवा रंग प्रतीक बन गया।

Wednesday 12 September 2018

मुझे अब भी याद है उस दिन बारिश होने लगी थी जोर-जोर से बिजली भी कड़की। लोग भाग रहे थे, कोई अपने सर पर बैग रखकर... तो कोई रेन कोट पहन कर... तो कोई छाता फैलाकर सब भागने में मशगूल थे और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे सारी दिल्ली भाग रही हो, बस उस लम्हें हम दोनों अकेले रह गए थे। जहां तक की पहले खड़े होते ही जमाना अपने सारे काम छोड़ कर हम दोनों को हेय नजरों की जंरीरो से जकड़ लेता था। फिलहाल आज हम दोनों उस बारिश में वही खड़े रह गए थे और पहली बार हम दोनों ने जमाने को पास से इतना दूर भागते देखा। अभी कुछ वक्त पहले ही आग उगलती धूप थी वहीं बादलों ने शाम डलने का अनुभव कराया अब अंधेरा सा लग रहा था जैसे सूरज ढल चुका हो। तुम्हें याद जैसे ही बीजली कड़की थी तुम डर के मारे मेरी बाहों में सीमट गई थी। 

यहीं पहला मौका था जब तुम मेरे इतना करीब आई थी। सोचो वो कड़क कितनी हसीन थी जिसने तुम्हे मुझसे लिपटने पर मजबूर कर दिया। तब मैंने पहली बार तुम्हारे कमर पर हाथ रखा था। मैंने जैसे ही तुम्हारे कमर से हाथ हटाना चाहा था तुमने कहा छोड़ना भी मत ऐसे ही पकड़े रहना मुझे ना जाने क्यों बहुत डर लग रहा है। यह कहते हुए तुम्हारी आंखें नम हो गई। मैंने पहली बार तुम्हारे आंखों में आंसु देखा। पता है मैं उस दिन कितना परेशान हो गया था अपने प्यार में तुम्हारे आंसु देखकर... उस दिन ही तुमने कहा था मैं खुद को टूटते हुए देखना चाहती हूं तुम्हारी बाहों में.... याद करो बारिश बहुत देर तक हुई थी जब बारिश थमी, तो भी तुम बहुत देर तक मेरे सीने में मुंह छुपाये थी। उस दिन तुम एक सपने की तरह मेरे आंखों में पहली दफा उतरी वह सपना जिसमें मैंने अपने हिस्से की जिन्दगी अपने हिसाब से जी ली...उस सपने को मैंने एक किरदार के रूप में जिया। 

जिसे एक कहानिकार अपने उपन्यास में नायक के रूप में गढ़ता है। जिसकी मैं शायद कल्पना ही कर रहा था। उस कल्पना लोक के भ्रमण में... मैं अभी खोया ही था कि तुमने कहा अब हमें चलना चाहिए बारिश थम चुकी है। हमें घर जाना था हमदोनों अलग-अलग दिशा में चल दिये मन में कई सवाल और कई उमंगे लिये। जिसका जवाब उस समय न तो मेरे पास था और ना ही तुम्हारे पास...  वक्त गुजरते देर नहीं लगा कब हमदोनों कॉलेज की गलियों से गुजरते हुए जॉब के ऑफिस में जा पहुंचे। यहां सबकुछ अपने हिसाब से नहीं होता यहां प्रोफेशनल दिखने का झोल-झाल है। ऑफिसयली करेक्ट होने का चीख-पुकार है। हम दोनों इस झोल-झाल और चीख-पुकार में ऐसे खोते चले गए की पता ही नहीं चला कब इतना दूर निकल गए। अब तो तुम इतना दूर हो गई हो कि अपने जेठ और सार के लड़के का गुलाम बन गई हो और वहां बंदिशे तो इतना है की जैसे तुम्हारें यादों पर भी पहरा लगा हो। पर तुम्हें कैसे बताऊं गुजरे एक साल में तुम मुझसे होकर कितनी बार गुजरी हो। मैं न जाने कितनी बार जी उठा हूं और न जाने कितनी बार मर कर बचा हूं।

मैं अब रोज अपने आप को समझाता हूं। जिन्दगी के सफर में धूप-छांव होती है। पर दिल कैसे जानेगा की धूप भी तुम ही थी और छांव भी... तुम्हारे जाने के बाद मेरे दिल की सरहदें जाने कितनी बार आबाद हुई है। न जाने कितनी भार उजड़ी है... मैं बस रिफ्यूजी भर रह गया हूं, तुम तो जानती हो सरहदों से मेरी कभी बनी ही नहीं... आज इस खामोंशी के चारों ओर अंधेरा सा छाया रहता है। आंखों में आंखे डाले नजरे एक दूसरे को खोजते रहती है और मैं वहां खड़ा बेसहारा सबकुछ देखता रहता हूं.... जानता हूं तुम नहीं हो और यह भी जानता हूं तुम कभी हो भी नहीं सकती पर फिर भी तुम्हारे होने का सपना देखना कितना सच लगता है। आज भी बारिश हो रही है पर तुम जो होती तो बात कुछ और थी अबकी बारिश तो सिर्फ पानी है। मैं इसे ताकते हुए बस यही सोचता हूं कि तुम मेरे दिल से खेल रही हो और सोचता हूं यह प्यार बिछुड़ा नहीं है। जब विश्वास ना हो तो कभी अपने दिल से पूछ लेना.. आज फिर तेज बाऱिश हुई उतना ही तेज जितना शायद उस दिन हुई थी। बारिश रूक चुकी थी, लेकिन ठंडी हवा के साथ एक ठंडी झन्न ने तुम्हारी याद को जाता कर दिया।