Wednesday 12 September 2018

मुझे अब भी याद है उस दिन बारिश होने लगी थी जोर-जोर से बिजली भी कड़की। लोग भाग रहे थे, कोई अपने सर पर बैग रखकर... तो कोई रेन कोट पहन कर... तो कोई छाता फैलाकर सब भागने में मशगूल थे और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे सारी दिल्ली भाग रही हो, बस उस लम्हें हम दोनों अकेले रह गए थे। जहां तक की पहले खड़े होते ही जमाना अपने सारे काम छोड़ कर हम दोनों को हेय नजरों की जंरीरो से जकड़ लेता था। फिलहाल आज हम दोनों उस बारिश में वही खड़े रह गए थे और पहली बार हम दोनों ने जमाने को पास से इतना दूर भागते देखा। अभी कुछ वक्त पहले ही आग उगलती धूप थी वहीं बादलों ने शाम डलने का अनुभव कराया अब अंधेरा सा लग रहा था जैसे सूरज ढल चुका हो। तुम्हें याद जैसे ही बीजली कड़की थी तुम डर के मारे मेरी बाहों में सीमट गई थी। 

यहीं पहला मौका था जब तुम मेरे इतना करीब आई थी। सोचो वो कड़क कितनी हसीन थी जिसने तुम्हे मुझसे लिपटने पर मजबूर कर दिया। तब मैंने पहली बार तुम्हारे कमर पर हाथ रखा था। मैंने जैसे ही तुम्हारे कमर से हाथ हटाना चाहा था तुमने कहा छोड़ना भी मत ऐसे ही पकड़े रहना मुझे ना जाने क्यों बहुत डर लग रहा है। यह कहते हुए तुम्हारी आंखें नम हो गई। मैंने पहली बार तुम्हारे आंखों में आंसु देखा। पता है मैं उस दिन कितना परेशान हो गया था अपने प्यार में तुम्हारे आंसु देखकर... उस दिन ही तुमने कहा था मैं खुद को टूटते हुए देखना चाहती हूं तुम्हारी बाहों में.... याद करो बारिश बहुत देर तक हुई थी जब बारिश थमी, तो भी तुम बहुत देर तक मेरे सीने में मुंह छुपाये थी। उस दिन तुम एक सपने की तरह मेरे आंखों में पहली दफा उतरी वह सपना जिसमें मैंने अपने हिस्से की जिन्दगी अपने हिसाब से जी ली...उस सपने को मैंने एक किरदार के रूप में जिया। 

जिसे एक कहानिकार अपने उपन्यास में नायक के रूप में गढ़ता है। जिसकी मैं शायद कल्पना ही कर रहा था। उस कल्पना लोक के भ्रमण में... मैं अभी खोया ही था कि तुमने कहा अब हमें चलना चाहिए बारिश थम चुकी है। हमें घर जाना था हमदोनों अलग-अलग दिशा में चल दिये मन में कई सवाल और कई उमंगे लिये। जिसका जवाब उस समय न तो मेरे पास था और ना ही तुम्हारे पास...  वक्त गुजरते देर नहीं लगा कब हमदोनों कॉलेज की गलियों से गुजरते हुए जॉब के ऑफिस में जा पहुंचे। यहां सबकुछ अपने हिसाब से नहीं होता यहां प्रोफेशनल दिखने का झोल-झाल है। ऑफिसयली करेक्ट होने का चीख-पुकार है। हम दोनों इस झोल-झाल और चीख-पुकार में ऐसे खोते चले गए की पता ही नहीं चला कब इतना दूर निकल गए। अब तो तुम इतना दूर हो गई हो कि अपने जेठ और सार के लड़के का गुलाम बन गई हो और वहां बंदिशे तो इतना है की जैसे तुम्हारें यादों पर भी पहरा लगा हो। पर तुम्हें कैसे बताऊं गुजरे एक साल में तुम मुझसे होकर कितनी बार गुजरी हो। मैं न जाने कितनी बार जी उठा हूं और न जाने कितनी बार मर कर बचा हूं।

मैं अब रोज अपने आप को समझाता हूं। जिन्दगी के सफर में धूप-छांव होती है। पर दिल कैसे जानेगा की धूप भी तुम ही थी और छांव भी... तुम्हारे जाने के बाद मेरे दिल की सरहदें जाने कितनी बार आबाद हुई है। न जाने कितनी भार उजड़ी है... मैं बस रिफ्यूजी भर रह गया हूं, तुम तो जानती हो सरहदों से मेरी कभी बनी ही नहीं... आज इस खामोंशी के चारों ओर अंधेरा सा छाया रहता है। आंखों में आंखे डाले नजरे एक दूसरे को खोजते रहती है और मैं वहां खड़ा बेसहारा सबकुछ देखता रहता हूं.... जानता हूं तुम नहीं हो और यह भी जानता हूं तुम कभी हो भी नहीं सकती पर फिर भी तुम्हारे होने का सपना देखना कितना सच लगता है। आज भी बारिश हो रही है पर तुम जो होती तो बात कुछ और थी अबकी बारिश तो सिर्फ पानी है। मैं इसे ताकते हुए बस यही सोचता हूं कि तुम मेरे दिल से खेल रही हो और सोचता हूं यह प्यार बिछुड़ा नहीं है। जब विश्वास ना हो तो कभी अपने दिल से पूछ लेना.. आज फिर तेज बाऱिश हुई उतना ही तेज जितना शायद उस दिन हुई थी। बारिश रूक चुकी थी, लेकिन ठंडी हवा के साथ एक ठंडी झन्न ने तुम्हारी याद को जाता कर दिया।


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