Sunday 17 August 2014

कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना, ज़िंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मुक़ाम, चिंगारी कोई भड़के,  पिया तू अब तो आजा, आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा.., ओ हसीना जुल्फों वाली, चुरा लिया है तुमने जो दिल को'। और ओ मेरे सोना रे सोना.. जैसे सुपरहिट मधुर संगीत से श्रोताओं का दिल जीतने वाले संगीत के जादूगर पंचम दा के नाम से मशहूर आर डी बर्मन (राहुल देव बर्मन) हिंदी फिल्म संगीत की दुनिया में सर्वाधिक प्रयोगवादी एवं प्रतिभाशाली संगीतकार के रूप में आज  याद किए जाते है। जिन्हें भारतीय फिल्म जगत के हर संगीतकार अपना गुरु मानते है। संगीत के साथ प्रयोग करने में माहिर आरडी बर्मन पूरब और पश्चिम के संगीत का मिश्रण करके नई धुन तैयार करते थे। उनके पिता सचिन देव बर्मन को पूरब और पश्चिम के संगीत का मिश्रण रास नहीं आता था।

आरडी बर्मन का जन्म 27 जून, 1939 को कोलकाता में हुआ था। इनके पिता सचिन देव बर्मन जो जाने माने फिल्मी संगीतकार थे। उन्होंने बचपन से ही आर डी वर्मन को संगीत की दांव-पेंच सिखाना शुरु कर दिया था। महज नौ बरस की उम्र में उन्होंने अपना पहला संगीत ”ऐ मेरी टोपी पलट के" को दिया, जिसे फिल्म “फ़ंटूश” में उनके पिता ने इस्तेमाल किया। छोटी सी उम्र में पंचम दा ने “सर जो तेरा चकराये.. की धुन तैयार कर लिया जिसे गुरुदत्त की फ़िल्म “प्यासा” में ले लिया गया। राहुल देव बर्मन ने शुरुआती दौर की शिक्षा बालीगुंगे सरकारी हाई स्कूल, कोलकाता से प्राप्त की। अपने सिने करियर की शुरूआत आरडी बर्मन ने अपने पिता के साथ बतौर सहायक संगीतकार के रूप में की। फिल्म जगत में पंचम दा के नाम से विखयात आरडी बर्मन ने अपने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने करियर में लगग ३०० हिंदी फिल्मों के लिए संगीत दिया। इसके अलावा बंगला, तेलूगु, तमिल, उड़िया और मराठी फिल्मों में भी अपने संगीत के जादू से उन्होंने श्रोताओं को मदहोश किया।


बतौर संगीतकार महमूद की फ़िल्म आर डी बर्मन की पहली फिल्म छोटे नवाब 1961 आई लेकिन इस फिल्म के जरिए वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाए। इस बीच पिता के साथ बतौर  सहायक संगीतकार उन्होंने बंदिनी 1963, तीन देवियां 1965, और गाइड जैसी फिल्मों के लिए भी संगीत दिया। उनकी पहली सफल फिल्म 1966 में प्रदर्शित निर्माता निर्देशक नासिर हुसैन की फिल्म तीसरी मंजिल के सुपरहिट गाने आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा.. और ओ हसीना जुल्फों वाली.. जैसे सदाबहार गानों के जरिए वह बतौर संगीतकार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे।  लेकिन आर डी बर्मन ने इसका श्रेय गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को दिया।


सत्तर के दशक के आरंभ में आर डी बर्मन भारतीय फिल्म जगत के एक लोकप्रिय संगीतकार बन गए. उन्होंने लता मंगेशकर, आशा भोसले , मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे बड़े फनकारों से अपने फिल्मों में गाने गवाए। 1972 पंचम दा के सिने करियर के लिए अहम साबित हुआ। इस वर्ष उनकी सीता और गीता, मेरे जीवन साथी, बांबे टू गोवा परिचय और जवानी दीवानी जैसी कई फिल्मों में उनका संगीत छाया रहा। 1975 में सुपरहिट फिल्म शोले के गाने महबूबा महबूबा.. गाकर पंचम दा ने अपना एक अलग समां बांधा। यादों की बारात, हीरा पन्ना, अनामिका आदि जैसे बड़े फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया। आर डी वर्मन की बतौर संगीतकार अंतिम फिल्म 1942 लव स्टोरी रही। बॉलीवुड में अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले महान संगीतकार आरडी बर्मन जनवरी, 1994 को इस दुनियां को अलविदा कह गए।


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