Saturday 16 August 2014

हिन्दुस्तान सूफी संगीतों का केन्द्र रहा है। यहां पर दरगाहों से लेकर फिल्म इंडस्ट्री और पांच सितारा होटलों तक सूफी संगीत की मघुर धूने सुनने को मिलती है। वैसे तो सूफी संगीत अंदर से महसूस करने की चीज होती है। लेकिन वर्तमान परिद्वश्य में दिखने और बिकने की चीज बन गई है। सूफी लिवास, सूफी आवाज, सूफीयाना चेहरे, सूफी गीत, सूफी संगीत और न जाने क्या-क्या ? ये हिन्दुस्तानी सूफी गायक वो पाकिस्तानी सूफी गायक। लेकिन सच्चाई तो यह है, कि इस सूफी शब्द ने एक नए किस्म की सांस्कृतिक भ्रम के मोड़ पर ला कर सबको खड़ा कर दिया है। हमारे यहां के लोग सूफी संगीत को ज्यादा पसंद करते है। वहीं हमारे देश के ज्यादातर लोगों में यह भ्रम है, कि यह सूफी संगीत की धारा पाकिस्तान से चलकर हिन्दुस्तान को आती है। पर लोगों को यह पता नहीं कि अजमेर शरीफ और दिल्ली की निजामुद्दीन दरगाह जहां से ही दुनियां भर के लोगों के बीच सूफी संगीत को भिगोती जाती रही है। शायद लोगों को यह भी पता नहीं कि सूफी संगीत की असली जड़े और उनकी नींव हिन्दुस्तान से ही जुड़ी है। भले ही आज पाकिस्तान में नजाकत अली खान, नुसरत फतेह अली खान, सलामत अली खान और आबिदा परविन जैसे नामी गिरामी सूफी गायक मौहजूद हो, लेकिन सच तो यह है, कि ये सारे लोग हिन्दुस्तान के थे। जो विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए थे।

 वैसे तो सूफी को गाने और समझने वालों के लिए कोई सरहद, मजहब या देश की सीमा नहीं होती । लेकिन वत्तमान समय में हिन्दुस्तान में ही हिन्दुस्तानी सूफी गायक बेगाने हो गए है। आज यहां की आलम यह है कि पाकिस्तान से गायक आकर गा रहे है, और अपने ही देश के सूफी गायक बेगाने हो कर भटक रहे है। फिल्म इंडस्ट्री से लेकर पांच सितारा होटल या फिर किसी दरगाहों पर गाने के लिए  पाकिस्तान से गायकों को बुलाया जाता रहा है, और अपने ही देश के सूफी गायकों को नजर-अंदाज कर दिया जाता रहा है। वहीं अगर हम आकडे देखे तो पाकिस्तान में सबसे ज्यादा हिन्दुस्तानी सूफी गायकों को बुलाया जाता रहा है। इसके पीछे का कारण यह रहा है, कि बाहर की चीजें हमेशा ही सब को लुभाती है। सच्चाई तो यह है, कि आज हमारे देश में व्यावसायिकता ज्यादा हावी होती जा रही है। लेकिन अगर आज भी यहां की मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री सूफी कलाकारों को प्रमोट करे तो यहां भी बरकत सिद्वु वडाली ब्रदर्स जैसे गायक आज भी देश में है जो बेहतरीन सूफी कलाम गाते है। फिल्म इंडिस्ट्री हो या पांच सितारा होटल उन सबों को चाहिए की हिन्दुस्तानी सूफी गायकों की हौसला अफजाई करे न की नजर अंदाज करे। कहते है 'न  दरिया देखे मगर समंदर नहीं देखा पर तुने कभी झाककर अपने अंदर नहीं देखा।



यह लेख मशहूर सूफी गायक हंस राज हंस के सक्षात्कार को सुनने के बाद लिखा गया है।
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