Saturday 16 August 2014

Posted by Gautam singh Posted on 06:19 | No comments

वो एक ख्वाब थी

वो एक ख्वाब थी, एहसास थी, हुस्न का इतिहास थी, जिसकी आंखों में कशिश थी।  होठों पर कंपन था, जुल्फों में हरकत थी। एक नया रंग एक नया रूप जिसे कोई छु न सके। अपनी दिलकश अदाओं से रूपहले पर्दे को रोशन करने वाली महान अदाकारा मधुबाला जिनका जन्म दिल्ली शहर के मध्य वर्गीय मुस्लिम परिवार में 14 फरवरी 1933 को हुआ था। इनका असली नाम मुमताज बेगम देहलवी था। इनके पिता अताउल्ला खान दिल्ली में एक कोचमेंन के रूप में कार्य करते थे। मधुबाला के जन्म के कुछ दिनों बाद उनका पूरा परिवार दिल्ली से मुंम्बई आ गया। मधुबाला बचपन के दिनों से ही अभिनेत्री बनने का सपने देखा करती थी। यही कारण रहा कि, 1942 में मधुबाला को बतौर बाल कलाकार बेबी मुमताज के नाम से फिल्म ‘बसंत‘ में काम करने का मौका मिला।

निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा की 1947 में आई फिल्म नीलकमल से मधुबाला ने बतौर अभिनेत्री के रूप में अभिनय शरू किया। लेकिन उनको पहचान 1949 में बाँम्बे टाकीज के बैनर तले बनी फिल्म महल से मिली। इस फिल्म में फिल्माया गया गीत ‘आऐगा आने वाला........‘जिसे सिने दर्शक आज तक नहीं भुल पाये है। 1950 से 1957 तक का वक्त मधुवाला के सिने कैरियर के लिये बुरा साबित हुआ। इस दौरान उनकी कई फिल्में बाँक्स आँफिस पर असफल रही, लेकिन 1958 में उनकी प्रदर्शित फिल्म फागुन, हावडा ब्रिज, कालापानी और चलती का नाम गाड़ी की सफलता ने एक बार फिर मधुबाला को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। जहां एक ओर फिल्म हावड़ाब्रिज में क्लब डांसर की भूमिका अदा कर दर्षकों का मन मौहा। तो वहीं दूसरी ओर फिल्म चलती का नाम गाड़ी में हास्य से भरे अभिनय से दर्शकों को हंसाते-हंसाते लोटपोट कर दिया।

पचास के दशक में ही मधुबाला को यह अहसास हुआ की वह हृदय की बीमारी से ग्रसित हो चुकी है। इस दौरान उनकी कई फिल्में निर्माण के दौर से गुजर रहीं थी। जिसके कारन मधुबाला को लगा यदि उनकी बिमारी के बारे में फिल्म जगत को पता चल जाएगा तो इससे फिल्म निर्माता को नुकसान होगा। इसलिये उन्होंने यह बात किसी से नहीं बताई। के आँसिफ की फिल्म मुगले आजम के निर्माण में लगभग दस साल लगे। इस दौरान मधुबाला की तबीयत भी काफी खराब रहने लगा, इसके वाबजूद भी फिल्म की शूटिंग जारी रखी क्योंकी मधुबाला का मानना था कि अनारकली के किरदार को निभाने का मौका बार बार नहीं मिलता। जब 1960 में मुगले आजम प्रदर्शित हुयी तो फिल्म में मधुबाला के अभिनय को देख दर्शक मन मुग्घ हो गए। लेकिन बदकिस्तमती से इस फिल्म के लिये मधुबाला को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरूस्कार नहीं मिला लेकिन सिने दर्शकों का आज भी मानना है की मधुबाला को उस फिल्म के लिये फिल्म फेयर आवार्ड मिलना चाहिये था।


मधुबाला के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी  अभिनेता दिलीप कुमार के साथ काफी पसंद की गई। बी. आर. चोपडा की फिल्म नया दौर में पहले दिलीप कुमार के साथ नायिका की भूमिका में मधुबाला का चयन किया गया और इस फिल्म की शूटिंग मुंबई में की जानी थी । बाद में निर्माता को लगा फिल्म की शूटिंग भोपाल में भी करनी जरूरी है। लेकिन मधुबाला के पिता ने मधुवाला को मुंबई से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी। उन्हें लगा की मुंबई से बाहर जाने पर मधुबाला और दिलीप कुमार के बीच का प्यार और परवान चढ़ेगा और वे इसके लिये राजी नही थे। बाद में बी. आर. चोपडा को इस फिल्म में मधुबाला की जगह पर वैयजंतीमाला को लेना पड़ा। मधुबाला के पिता अताउल्ला खान बाद में इस मामले को अदालत ले गये और इसके बाद उन्होंने मधुबाला को दिलीप कुमार के साथ काम करने पर रोक लगा दी। और फिर दिलीप कुमार और मधुबाला की जोड़ी अलग हो गई।

चलती का नाम गाड़ी और झुमरू के निर्माण के दौरान ही मधुबाला किशोर कुमार के काफी करीब आ गयी थी। साठ के दशक में मधुबाला की तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी जिसके कारन उन्होंने फिल्मों में काम करना काफी कम कर दिया था। जब मधुबाला लंदन इलाज कराने के लिये जाने वाली थी तो मधुबाला के पिता ने किशोर कुमार को सुचित किया कि शादी लंदन से आने के बाद ही हो पाएगी, लेकिन मधुबाला को यह लग रहा था, कि शायद लंदन में होने वाली आपरेशन के बाद जिंदा न बचे, यह बात उन्होंने किशोर कुमार को बताइ इसके बाद किशोर कुमार ने मधुबाला की इच्छा को पूरा करने के लिये शादी कर लिया। शादी के बाद मधुबाला की तबीयत और ज्यादा खराब रहने लगी हालांकि इस बीच ‘पासपोर्ट, झुमरू, व्बाँय फ्रेंड, हाफ टिकट और शराबी जैसे कुछ फिल्में प्रदर्शित हुई। अपनी दिलकष अदाओं से लगभग दो दषक सिने प्रेमियों को मदहोश करने वाली महान अभिनेत्री मधुबाला 23 फरवरी 1969 को इस दुनियां को अलविदा कह गई।


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