Wednesday 2 October 2019

Posted by Gautam singh Posted on 10:46 | No comments

सुनो प्रिय

आज मैं तुम्हे कुछ बताना चाहता हूं हो सकता है मेरी यह बाते तुम्हे शायद बुरा लगे या जरूरत न हो जानने की फिर भी मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ,,, तुम तो जानती हो न प्रिय हर सिक्के के दो पहलू होते है ठीक वैसे ही मेरे भी दो पहलू है,,, एक जो तुम्हारे सामने हंसते बोलते लड़ते-झगड़ते बड़ी-बड़ी आँखे दिखा कर छोटी-छोटी बातो पर बहस करते, तुमसे दूर जाने की सोच से ही डरते तुम्हारे बिन खुद की कल्पना करने मात्र से सिहर उठते,, मैं वह सब कुछ करता जो एक लड़का प्यार में करता है पर एक दूसरा पहलू ठीक इसके विपरीत है जब मैं खुद में रहता हूँ तो एकदम शांत गुमसुम किसी दुनियां दारी से कोई मतलब नहीं होता। 

मैं कई-कई दिनों तक अपने कमरे से बाहर भी नहीं निकता मेरे लिए वह कमरा ही सब कुछ है उस कमरे में पड़ी कुछ किताबें और उन किताबों के बीच मैं मेरे अंदर तुम्हारी यादे। सच कहुँ तो मैं उस यादों में ही अपने आप में मस्त रहता हूं। किसी के होने या होने का कोई मलाल नहीं होता। देखने में बिल्कुल शांत नदीं की मादिक पर जिस तरह नदियां अपने आप में अशंख्य भवर खुद में सम्माहित किये होती है बिल्कुल वैसे ही मैं भी न जाने कितने भवर ले कर जीता हूँ,, बहना चाहता तो बह जाता इस छोर से कहीं दूर पर वेदनाओं के वेग बहुत तेज होते है न प्रिय न जाने कितना कुछ बहा ले जाये इसलिए शांत हूँ। पर जैसे महादेव ने गंगा को समेट रखा है अपने जटाओं में...अगर तुम भी सम्भाल लो मुझे खुद में कहीं, तो मैं सभी बांधे तोड़ तुम तक आ जाऊँ पर शायद ये सम्भव नहीं है। तुमने कभी देखा है नदियों में उफान उठते हुए हाँ बिल्कुल वैसे ही मुझमें भी एक उफान उठता है जो सिर्फ मुझको ही तबाह करता है,,, प्रिय तुमने कभी सुना है रात में नदियों की कलकलाहट,, रात के पहर बहुत कुछ कहना चाहती है ये नदियां पर उस वक़्त सब उसे छोड़ कर जा चुके होते है,, हाँ तुम आती हो कभी-कभी किनारे तक मुझे जानने के लिए... 

पर तुमने कभी कोशिश नहीं किया मेरे गहरायी तक आने की... न कभी मैंने कोशिश की तुम्हे खुद में सम्माहित करने की... खैर तुम्हारे जाने के बाद कुछ किस्से इस चाँद को भी सुनाता पर वो भी न ठहरता बादलों में छुप जाता और सोचता एक दाग ले कर वो निरन्तर एक समान न रहता फिर ये नदी सबके पापों को ले कर कैसे बहती एक समान,, सच बताऊँ प्रिय जिम्मेदारियों और विश्वासघात के हवनकुंड में जल कर मेरी इच्छायें भी सती हो गयी है मैं भी चाहता तो महादेव की तरह समाधि ले लेता पर कुछ शेष है जो जला नहीं अभी जो रोके हुए है मुझे,, और ये शेष तब जागृत हुआ जब तुम आये,,, कभी उतर आओ इस नदीं में और देखो मेरे हृदय पर लगे आघात को या फिर जाने दो मुझे भी उस समाधि की और जहाँ कोई मोह न हो यकीन मानो मैं वहाँ भी जी सकता हूँ पर एक दर्द के साथ जो जब तक जीवन रहे तब तक रहे, अब तुम पर है तुम चाहो तो रोक लो या मिट जाने दो मुझे !!

तुम्हे चाय ही क्यों पसन्द है, कुछ और भी तो पी सकते हो
जैसे तुम्हें कॉफी के अलावे कुछ और पसन्द नहीं है
हस सवाल का जवाब, सवाल नहीं होता मिस्टर
बिल्कुल सवाल का जवाब, सवाल नहीं होता पर कुछ सवाल ऐसे भी होते है जिसका जवाब ही सवाल होता है...
अच्छा बताओं भी तो तुम्हे चाय ही क्यों पसंद है...

क्यों का जवाब नहीं है मेरे पास... हां बस मुझे चाय ही पसन्द है और वैसे भी मैं कभी क्यों का जवाब नहीं तलाशता...कई बार कोशिश भी करता हूं क्यों का जवाब तलाशने का पर जैसे ही तलाशने बैठता हूं कई डर मेरे अंदर समाहित हो जाते है। मुझे लगने गलता है की कभी तुम यह न पूछ बैठो की तुम मुझे क्यों पसन्द हो... बस इस डर से मैं नहीं तलाशता क्योंकि मुझे पता है यह भी मैं चाय की तरह नहीं बता सकता बस तुम पसंद हो...
अच्छा बाबा मैं तुम्हारे फिलॉसफी मैं नहीं पड़ती और अब मैं यह भी नहीं पुछूंगी की तुम्हे चाय ही क्यों पसंद है... 
ठीक है चलो चाय पीते है किसी कॉफी शॉप पर....  
अरे कितना झुठ बोलती हो तुम 
वो कैसे
मेरे साथ खुश रहती हो और तुम कहती हो मुझे मुझ से मोहब्बत नहीं
खुश रहने का मतलब ये तो नहीं है न की तुमसे प्यार करती हूं 
तो फिर तुम मुझसे हमेशा क्यों बात करती हो 
बस ऐसे ही क्यों मैं तुमसे बात नहीं कर सकती 
बिल्कुल कर सकती हो, पर रात में तीन-तीन बजे तक भला कौन लड़की ऐसे किसी से लड़के से बात करती है
क्यों बात नहीं कर सकती कोई लड़की बात और यह किसने कहा है कि कोई लड़की रात में किसी लड़के से बात नहीं कर सकती और अगर करती है तो वह उससे प्यार ही करती है। यह अधिकार किसने दिया और यह कौन सी पंचवर्षीय योजना के तहत आया था, जरा बताओंगे ...

कौन सी पंचवर्षीय योजना के तहत आया था ये तो मैं नहीं जानता और ना ही जानना चाहता हूं मैं बस यह जानना चाहता हूं की तुम मुझसे प्यार करती हो या नहीं...
नहीं करती और यह प्यार-व्यार की चक्कर में मैं पड़ना भी नहीं चाहती 
तो फिर तुम इतना बात मुझसे क्यों करती हो
क्यों एक दोस्त दूसरे दोस्त से बात नहीं कर सकता क्या, वैसे भी मैं तुमसे बात इसलिए करती हूं क्योंकि हमदोनों की सोच मिलता है इस लिए और मुझे तुमसे बात करना अच्छा लगता है। 
वैसे तुम्हे ये तो पता होगा की किसी ने लिखा है की एक लड़का और एक लड़की ज्यादा वक्त तक दोस्त नहीं रह सकता...
अच्छा तुम्हे तो बहुत पता है, अगर यह किसी ने लिखा है तो फिर सही ही लिखा होगा...