Friday 14 November 2014

जिनका बाल दिवस होता, कैसे बच्चे होते हैं ? खाने के ढाबे पर अब भी, बरतन बच्चे धोते हैं। भूख, गरीबी, लाचारी में, जीवन इनका बीत रहा। जाने कितने नौनिहाल बस पेट पकड़कर सोते हैं। खेलकूद, शैतानी, जिद रकना तो भूल गया। इनको पता चलेगा कैसे, अक्षर कैसे होते हैं ? महाशक्ति बनकर उभरेगा, कैसे  कोई देश भला। भूख, अशिक्षा, बीमारी में जिसके बच्चे होते हैं।

अजय कुमार की ये लाइने आज के बाल दिवस को दर्शाता है। उच्चकोटी के विचारक तथा लोकतांत्रिक समाजवाद के समर्थक जवाहरलाल नेहरु महान मानवतावादी थे। बच्चों के प्रिय चाचा नेहरु अपने देश में ही नही वरन सम्पूर्ण विश्व में सम्मानित और प्रशंशनीय राजनेता थे। लेकिन आज देश के बच्चों के  लिए जो भी किया जाय कम है, क्योंकि असली बाल वह है, जो अपने अनिश्चित भविष्य से जूझ रहा है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन यानी 14 नवम्बर को पूरा देश बाल दिवस के रूप में मनाते है। बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू को बच्चों से बेहद प्यार था। इसलिए आज के दिन को बाल दिबस के रूप में मनाया जाता है। पं. नेहरू ने बच्चों को देश का भविष्य कहा था और उनके लिए एक सपना देखा था, लेकिन आज का वो सपना अधुरा ही है। आजीविका चलाने के नाम पर आज देश में न जाने कितने बच्चे बाल मजदूरी करने पर विवश है।
अगर माँ बाप भीख मांग रहे हैं तो बच्चे भी मांग रहे हैं। क्या ये बाल दिवस का अर्थ जानते हैं या कभी ये कोशिश की गयी कि इन भीख माँगने वाले बच्चों के लिए सरकार कुछ करेगी। कोई कूड़ा इल लिए बीन रहा हैं क्योंकि घर को चलने के लिए उनको पैसे की जरूरत है। कहीं बाप का साया नहीं है, कहीं बाप है तो शराबी जुआरी है, माँ बीमार है, छोटे। छोटे भाई बहन भूख से बिलख रहे हैं। कभी उनकी मजबूरी को जाने बिना हम कैसे कह सकते हैं कि माँ बाप बच्चों को पढ़ने नहीं भेजते हैं। अगर सरकार उनके पेट भरने की व्यवस्था करे तो वे पढ़ें लेकिन ये तो कभी हो नहीं सकता है। फिर इन बाल दिवस से अनभिज्ञ बच्चों का बचपन क्या इसी तरह चलता रहेगा?

आज भी चाचा नेहरू के इस देश में लगभग 1.01 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। जो चाय की दुकानों पर नौकरों के रूप में, फैक्ट्रियों में मजदूरों के रूप में या फिर सड़कों पर भटकते भिखारी के रूप में नज़र आ ही जाते हैं। इनमें से कुछेक ही बच्चे ऐसे हैं, जिनका उदाहरण देकर हमारी सरकार सीना ठोककर देश की प्रगति के दावे को सच होता बताती है। तो वहीं दूसरी और तस्वीर कुछ और ही बयान करती है। सरकार को जरुरत है की वो जमीनी हकीकत से जुडे और आंकडों को छोडकर वस्तुनिष्ठता पर जोर दे और उन बच्चों के भविष्य के बारे में विचार करे ताकी एक सुभारत का निर्माण किया जा सके और हमारे समाज से बाल मजदूरी नामक दंश का विनास हो।







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