Saturday 29 November 2014

भारत में ही नहीं पूरे दुनिया में लगभग हर जगह पर शादी को धर्म से जोड़कर देखने का रिवाज रहा है, और हर जगह के लोग अपने बच्चों की शादी अपने ही धर्म में कराना चाहते है। पर क्या किसी के साथ जीवन व्यतीत करने के लिए एक ही धर्म का होना जरूरी है ? भले ही दोनों में आपसी ताल-मेल ना हो पर शादी अपने ही धर्म में होना चाहियें। लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से लव-जिहाद सामने आया है उस से हम यह भी नहीं कह सकते है कि लव से किया गया शादी सफल ही हो। क्योंकि लव-जिहाद जैसे मामले सांप्रदायिक माहौल भी बिगाड़ते है, और ज्यादातर सांप्रदायिक झड़पों की वजह भी लव ही होता है।


लव जिहाद जैसे मामले सिर्फ भारत में ही नहीं विश्व के और देशों में भी हो रहा है। अभी-अभी ऐसे ही कुछ मिस्र में हो रहा है। परंपराओं के दीवार टूट रही है तो विरोध के स्वर भी उठ रहे है। विरोध में उठी आवाजें हिंसक भी हो रही हैं। और इन्हीं सब चीजों के बीच नई पीढ़ी के लोगों में एक तरह का डर तो है, लेकिन उम्मीद की किरण भी दिखाई देती है। भारत या मिस्र ही नहीं पूरे दुनीयां में मजहब एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। धार्मिक नेताएं अंतरधार्मिक विवाहों को दूसरे धर्म के लोगों की भर्ती के तौर पर देखते है। ऐसे में लव से किया गया शादी कितना सही है ? 
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