Monday 16 April 2018

Posted by Gautam singh Posted on 05:40 | No comments

कलंक पर बेशर्म बातें

यू तो भले ही सुशासन का दावा ठोक कर सत्ता के लिए लालायित सरकारे जब बातों की दाव पेच और पेचिदगी का समांजस्य बैठा कर कुर्सी पा जाती है। तो उन पर जब समाजिक गरीमा और मानवीय मरियादा की हत्या हो जाती हो, तो सवाल करना लाजमी और मजबूरी भी है। आपने तो अपने निधारित वसूलों से बचने के लिए अपनी असफलता या संलिप्तता को छुपाने के लिए दूसरी सरकारों में घटित हुए वाक्यों का उदाहरण थोपने लगते है। आपसे सवाल यह है कि आप सत्ता में उनके जैसा काम करने के लिए आये थे या उनसे बेहतर लंबे-चौड़े विकास का चकाचौंध छप्पन इंची सीना दिखाकर सुशान का वादा करके आये थे।

आप उस समय 56 इंची सीने पर 100 इंची चटपची जुबान बाखूबी चला रहे थे और आज जब आपके मौसेरे पर कथित आरोपों की झड़ी लग जाती है। तो आप उदाहरण के तौर पर अपना ठिकरा विपक्ष की सरकार पर क्यों थोप देते है। इससे तो आप स्वयं ही यह सिद्ध करते है कि उनसे ज्यादा बेहतर काम करने का वादा कर मात्र सत्ता हथियाने आये थे। आपने सिद्ध यह कर दिया कि आपसे बेहतर प्रतिपक्ष की सरकार थी। उसने भी गुड़िया का दंश झेला लोग सड़को पर आये। लेकिन किसी भी सरकार का उदाहरण दिये बैगेर, बिना किसी लाग-लपेट के दोषियों को सलाखों के पिछे तत्काल प्रभाव से ठूस दिया। यह उस समय की सरकार की बहादुरी थी। यहां तो साहब एक हप्ते हो गए हैं। कार्यवाही के नाम पर ठेंगा दिखाते हुए अपनी मूल जिम्मेदारी से बचते हुए विपक्ष के राज में हुई निर्मम घटना से तुलना करने से जरा सा भी नहीं चुके और अपने सत्ता के सहचर संघर्षी पर जरा सा भी जांच की आंच न आने दिया। भले ही विपक्षी सरकार के दर्जनों उदाहरण गिना दिया हो अब न्याय कौन करें... आप या विपक्ष?...

Tuesday 3 April 2018

Posted by Gautam singh Posted on 23:06 | No comments

आप अभी भी शोषित है


देखिये बात बिल्कुल स्पष्ट है। आपको आरक्षण देना है दिजीए। क्योंकि वह गरीब, पिछड़ा सवर्णों के अत्याचार का मारा पैदा हुआ था, हुआ है और शायद जबतक आरक्षण व्यवस्था रहेगा। तब तक वह अत्याचार का मारा ही पैदा होता रहेगा। जरा सोचिये रामविलास पासवान, रामदास आठवले, जीतन राम मांझी, शिबू सोरेन, बाबूलाल मरांडी, अर्जून मुण्डा, मधु कोडा। सरीखे नेता के संतान क्या सवर्णों के अत्याचार का मारा ही पैदा हुआ है? अगर हुआ ही है तो हां इन्हें आरक्षण मिलना चाहिए।

आरक्षण के लिए आप किसी के अधिकार की मलाई चाटने के लिए मुह फैलाए की आप उससे पहले अपने बाजुओं में बल करके अत्याचार से लड़ने के खिलाफ खड़े हो जाए। आप तो इतने चालाक और सातीर बाजीगर है कि थप्पड़ भी आप ही मार रहे है और मुझे चिल्लाने के बजाय खुद ही चिल्ला रहे है। मार भी रहे है और रोने भी नहीं दे रहे है। फिर वही बात अपने राग का विधवा रागन अलाप रहे है। करोड़ो की सम्मपति आप लोगों के पास है लेकिन आप अभी भी गरीब है। देश आप लोग चला रहे है। लेकिन आप अभी शोषित है। आपका भले ही इलाके में दादागिरी चलता हो लेकिन आप अभी भी सवर्णों के अत्याचार के मारे हुए है। आपके बच्चे भले ही देश और विदेश के बड़े-बड़े शहरों में पढ़ रहे हो लेकिन वह फिर भी गरीब और पिछड़ा हुआ ही है। आपके दादा जुल्म के मारे थे, बाप जुल्म के मारे है और पोता भले ही मर्सडीज, ओडी और जैगवार में चल रहे हो लेकिन वह भी जुल्म के मारे हुए ही है।