Thursday 15 December 2016

Posted by Gautam singh Posted on 02:59 | No comments

बाल विवाह एक अभिशाप

बचपन इंसान के जिंदगी का सबसे हसीन और खूबसूरत पल होता है न कोई चिंता न कोई फिकर मां की गोद और पापा के कंधे न पैसे की चिंता न फ्यूचर की सोच। बस हर पल अपनी मस्तियों में खोए रहना, खेलना कुदना और पढ़ना। बगैर किसी तनाव के, लेकिन प्रत्येक बच्चा इतना खुशनसीब नहीं होता। हमारे समाज में कई बुराइयां है, जिनमें से एक है बाल विवाह। जो बच्चों से उसका बचपन छीन लेता है। बचपन एक फूल की भांति होता है। जिसमें मासूमियत के अलावा और कुछ नहीं होता। वो जीवन स्वार्थ से परे होता है, लेकिन हमारे समाज में कुछ स्वार्थी लोग अपने स्वार्थ के लिए बच्चों की मासूमियत छीन लेते हैं।

जहाँ आज की भागती-दौड़ती जिंदगी में युवा पीढ़ी शादी से घबराती है तो वहीं इन छोटे-छोटे बच्चों को जीवन के इस बंधन में बांध देते हैं। जिस उम्र में इन बच्चों को खेलना-कुदना, पढ़ना-लिखना चाहिए, उन्हें शादी जैसे ताउम्र साथ निभाने वाले बंधन में बांध दिया जाता है। हमलोग बचपन से ही किताबों में पढ़ते आए हैं कि 'एक सफल जीवन के लिये खुशहाल बचपन बहुत जरूरी है', लेकिन ऐसे में खूशहाल जीवन कैसे होगा? जिसका बचपन ही विवाह जैसे भारी-भरकम रिश्तों से बांध दिया जाता हो।


विवाह एक ऐसा रिश्ता है जिसके लिए लड़का और लड़की दोनों को मानसिक और शाररिक रूप से तैयार होना बहुत जरूरी होता है। पर जिस उम्र में इन बच्चों का विवाह कराया जाता है, उस उम्र में यह पता ही नहीं होता कि शादी आखिर होती क्या है? जिसके कारण आने वाले पीढ़ी से लेकर खुद जच्चा और बच्चा दोनों की जान खतरे में बनी रहती है। 2007 में जारी यूनीसेफ की एक रिर्पोट के अनुसार भारत में औसतन 46 फ़ीसदी महिलाओं का विवाह 18 वर्ष होने से पहले ही कर दिया जाता है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह औसत 55 फ़ीसदी है। हालांकि पिछले 20 वर्षों में देश में विवाह की औसत उम्र धीरे-धीरे बढ़ रही है, लेकिन बाल विवाह की कुप्रथा अब भी बड़े पैमाने पर प्रचलित है, जिसका मूल कारण हैं लिंग भेद और शिक्षा की अव्यवस्था।

2001 जनगणना के मुताबिक़ राजस्थान देश के उन सभी राज्यों में सबसे ऊपर है, जिनमें बाल विवाह की यह कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। राज्य की 5.6 फ़ीसदी नाबालिग आबाद विवाहित है। इसके बाद मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, गोवा, हिमाचल प्रदेश और केरल आते हैं। यहां इतनी छोटी उम्र में विवाह जैसे पवित्र रिश्ते से बांध दिए जाते है जिसे अभी चलना तक भी नहीं आता। आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी हमारे देश की स्थति ज्यों की त्यों बनी हुए है। एक तरफ जहां हम चांद और मंगल पर पहुंच रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बाल विवाह जैसी कुप्रथा को हम खत्म नहीं कर पाए हैं।

बाल विवाह को रोकने के लिये अंग्रेजी हुकुमत ने 1928 में शारदा एक्ट बनाया जिसके अन्तर्गत नाबालिक लड़के और लड़कियों का विवाह करने और कराने पर जुर्माना और कैद रखा, लेकिन इसके वाबजूद बाल विवाह हमारे समाज में खुए आम होते रहे। इसको रोकने के लिए सन्र 1978 में संसद द्वारा बाल विवाह निवारण कानून में संसोधन कर इसे पारित किया गया। जिसमे विवाह की आयु लड़कियों के लिये 18 साल औए लड़को के लिये 21 साल निर्धारित की गई। इसके बाद सरकार द्वारा बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 पारित किया गया। ये अधिनियम बाल विवाह को आंशिक रुप से सीमित करने के स्थान पर इसे सख्ती से प्रतिबंधित करता है। लेकिन हमारे देश की यह विडंबना ही है की जिस देश में महिलाओं को देवी माना जाता हो जिस देश की महिलाएं राष्ट्रपति जैसे पद पर आसीन रही हो वहां बाल विवाह जैसी कुप्रथा के चलते बालिकाएं अपने अधिकारों से वंचित रह जाती है। बाल विवाह एक सामाजिक समस्या है। इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही संभव है। आज युवा वर्ग और हर वर्ग को आगे आकर इसके विरुद्ध आवाज उठानी होगी। तब जा कर देश से बाल विवाह जैसे दंश का विनास होगा।


मेरी तलाश अभी जारी हैं ....मुझे मेरे सफर का अभी अंजाम नहीं मिला
जिस्मों की भीड़ हैं हर तरह .... मुझे एक भी जिन्दा इंसान नहीं मिला
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