Wednesday 15 August 2018

 
खुले में शौच की परंपरा सृष्टिचक्र के आविर्भाव से ही शुरु हुई। जिसे आज पशुवत शौच का प्रारूप दे दिया गया। खुले में शौच की संस्कृति पहले पूरे विश्व में समाई थी। भले ही आज पूरे भारत के रग-रग में समाई हो। हम सभी ने अबोध अवस्था में ही त्रिकोणा मुह बना कर बड़े हर्ष से उनमुक्त होकर उदर को भार वीहिन किया। चटोली की आड़ में शुरु हुई यह सभ्यता बस एक साल में ही... मां के पैरों द्वारा बनाए गए चूल्हों पर स्थापित की गई। जो हल्का करने के लिए छी... छी... छी... नामक स्वर की ताल ध्वनी से खुद के लिए सजाई गई लोरी गीत थी। तो हमें यह न सिखाया जाय कि हमें शौच घर के कमौड पर बैठने का तरीका नहीं है। हमने बचपन में ही कमौड पर बैठने का अभ्यास किया है। बखूबी याद होगा।
 
 हल्का होने के दौरान जब मां पैरों के चूल्हें पर बिठा कर दाये हाथ से पूरा बदन थामते हुए बायें हाथ से बह रही नाक को पोछ देती थी और हम चिल्लाते हुए शकून का अनुभव करते थे। 'क्या यह गलत है' "मित्रों क्या मैं झूट बोल रहा हूं" हम में से किसने खुले में शौच नहीं किया है। आज भले ही त्रिकोनी लंगोटी का इतिहास बदलकर हगीज युग के नवीन परिवर्तन में बदल गया है। हगीज का भाव बड़-चड़ कर दुनिया की प्रचारमय संस्कृत का अहम हिस्सा है। मित्रों क्या आप सभी को वह त्रिकोणी लंगोटी याद है। खुले में शौच का ग्रामीण इतिहास बहुत पुराना एवं बेहद अनूठा है। नित्य सामुहिक शौच का आयोजन सुबह-शाम गांव की गलियों से खेतों की पगडंडियों तक होते आ रहे हैं। इन राहों पर गांवों की औरतों की लोटा-यात्रा में समाई उनकी वाद-विवाद प्रतियोगिता एवं हंसी की खनक व एक दूसरे की ठीठोंली और कभी-कभी लोक गीतों की गूंज से पूरा परिवेश गुंजार उठता है। नदी किनारे बसे गांवों में शौच काल में लोटे का प्रयोग सर्वदा निंदनीय ही रहा।
 
विकास काल के दौरान रेल मंत्रालय ने शौच के इतिहास में अद्भुत क्रांति कर दी, देश को सबसे बड़ा छत-द्वार विमुक्त शौचालय रेल मंत्रालय ने ही उपलब्ध करा कर अपना नया इतिहास रचा। कालांतर में यही शौचालय रेल लेन के नाम से बुहत प्रसिद्ध हुआ। जिसके समर्थन में पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बुलेट ट्रेन के विरोध में कहा... यह देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है। क्योंकि देश की ग्रामीण आवादी सुबह रेल की पटरी पर हल्का होने के लिए जाता है। बड़े-बड़े खेतों में सामूहिक शौच की परंपरा ने भाई-चारे को भी मजबूती प्रदान की।
 
 इतिहास साक्षी है कि इस खुली शौच की परंपरा ने ही कई प्रेमी युगलों को आपस में मिलाया और उनके मिलन का साक्षी, दोनों के हाथों में सधा वो लोटा ही रहा। दूसरी तरफ लंबे घूंघट में गमन करता बहुओं का समूह सासु-निंदा की किलोल में अद्भुत सुख की अनुभूति का परम आनंद था। गोल घेरे में बैठ कर फारिग होना और सास-ननद का रोना-धोना सामूहिक शौच के उत्सवी किस्से थे। कभी-कभी ज्यादा हड़बड़ी में भागे लोग अपने किये पर ही धर देते थे। जिस पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था। इतिहास के कुछ पन्नों में नाड़े दार कच्छे और पाजामे भी दर्ज है। ऐसे पजामे, जिनके नकचढ़े नाड़ों ने ऐन मौके पर खुलने से इंकार करते हुए अपनी कुर्बानियां देना ही स्वीकार किया। खुले में शौच एक परंपरा ही नहीं बल्कि एक संस्कार रहा। कभी-कभी हल्का होने के दौरान लोटे के पानी का आंसुओं की तरह बह जाना।
 
पत्ते, डिल्ले की सरन में जाने के लिए मजबूर करता था। कलांतर में जिसके हजारों रोचक किस्से हैं। सावन की बारिश में हरी-भरी घास जब खेतों में आपकी बैठक का विरोध करती है और तब आप प्रतिकार के रुप में उस पर खेप डाल कर आप लम्बी सांस छोड़ कर अलौकिक सुख का अनुभव करते हैं। संक्षेप में कहें तो जिस व्यक्ति ने खुले में शौच का आनंद नहीं लिया उसका मानव जीवन में जीना ही व्यर्थ है। 200 आदमियों की बारात के बीच दस-बारह लोटे बार-बार खेत से सगुन की तरह जनवासे तक दौड़ कर कन्या दान के प्रति अपना दायित्व निभाते हैं।  इस समकालिन युग में प्लास्टिक की बोतलों और डिब्बों ने लोटे के साथ सिर्फ कंधा मिलाकर ही साथ नहीं दिया बल्कि अपने पित्र पुरुष लोटा महाराज को चैन ओर शुकून के साथ घर के अंदर आराम भी दिया। आज गाड़ी-ड्रायवरों और हाइवे के ढाबा-संचालकों की ये बोतलें बड़ी सेवा कर रही है। आपातकालीन खुल्लम-खुल्ला शौच में अखबारी कागज, पत्ते, मिट्टी के ढ़ेलो या पत्थरों का भी अविस्मरणीय योगदान रहा है।
 
जिसे इतनी आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। इस संस्कारिक परंपरा को बंद कर शौच काल के इतिहास को दफन करने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि सरकारों को समझना चाहिए की इस परंपरा से वे ही नहीं बल्कि उनके पूर्वज भी गुजरे है ये सदियों की परंपरा जो हमें विरासत में मिली इसे छीन्न करना समस्त मानव जाती के जन्मसिद्ध अधिकारों की हत्या करना है। भाईयों बहनों इस परंपरा को जारी रखें। वरना आने वाली पीढ़ी इस परम सुख से वंचित रहेगी और हमरी परंपरागत सभ्यता नष्ट हो जायेंगी।
 
आभार
गुमनाम लोग
 
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