Sunday 5 August 2018

Posted by Gautam singh Posted on 03:43 | No comments

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

वो दीपीका पर मरती था, मैं प्रियंका का दिवाना था। दीपीका उसकी हो चुकी थी। पर अभी भी प्रियंका मेरी तलाश थी। उसे फुर्सत से तैयार होना पसंद था। मैं किसी जोकर की तरह तुरंत तैयार हो जाता था। मैं अच्छे कपड़े भी लंगूर की तरह पहनता था। वो सज-धजकर मानो किसी परी का मूर्त रूप ले लेती थी। इसके बावजूद भी मैं कितना भी सज-धजकर लिपा-पुता छछूंदर ही नजर आता था। उसे दर्जनों तरह के हेयरस्टाइल्ट बनाने आते थे। मुझे अपनी ही आंखों में डॉप भी डालना नहीं आता था। वो 5.5 फीट, मैं बहुत मुश्किल से 5.7 फीट वह बड़े आसानी से मेरे कानों के उपरी हिस्से की सीमा रेखा को पार कर जाती थी। उसे हील बहुत पसंद थे। जो की मैं उसे कभी नहीं पहनने देता।
 
 
क्योंकि वो हील पहनकर मुझसे ज्यादा बड़ी हो जाती थी। वह आईएस बनना चाहती थी लेकिन इंजीनियर बनकर जॉब कर रही है। मुझे जर्नलिस्ट बनना था और मैंने सबकुछ छोड़ कर जर्नलिज़्म चुना। उसके पास सपने थे, मेरे पास उम्मीदें थीं। फिर भी मैंने अपनी इन उम्मिदों को पुरी प्रान चेतना के साथ उसके सपनों को जीतने में सफल रहा, यह मेरे जर्नलिज्म की पहली खास उपलब्धि थी। वह बहुत पैसा कमाना चाहती थी और मैं उसके सपनों को आज़ाद करना चाहता था, जिसमें मेरी भी सबसे बड़ी आजादी थी। हमलोगों को मिलते काफी वक्त हो चुका था। अब भागदौड़ भरी जिन्दगी में महीनों बाद बातें होती है। पर कुछ भी बदला सा नहीं लगता। मैं उसे कहता पढ़ाई पर ध्यान दो गेट हर हाल में क्वालिफाई करना है।
 
 
वह कहती आईएस बनना है। बेशक वह खूब पढ़ती है पर मैं भी आलसी नहीं हूं और न ही कामचोर हूं लेकिन मैं अपने सिलेबस को छोड़कर सबकुछ पढ़ना पसंद करता। वो सिलेबस को चालीसा की तरह पढ़ती। उसने गेट में भी अच्छा किया उसे आईआईटी मिल गया। अब भी हमारी बाते होती हैं कुछ यादे लिये हुए कुछ सपने आंझे हुए। लेकिन जो सोचा था ये अदावत जिस बुलंदी पर जायेगी उसका मुकम्मल होना अधुरा ही रह गया। पर अब पहले जैसा नहीं मैं जब भी फोन करता था। वह हाफती हुई लंबी सांस खिचते हुए लपककर अल्लो बोला करती थी। अब ये जरूर कुछ बदल गया है। फिर भी अपने प्रथम मिलन की तरह अपनी जल भरी आंखों में सजल उत्तेजना लिए हर बार मिलने के लिए आतुर रहती।
 
 
ये उसकी मेरे प्रति उदारता है पर मैं इसे बख्सीस ही समझता हूं। फिर भी कभी-कभी फोन कॉल अटेंड नहीं हो पाती पर मुझमें इतना धैर्य नहीं की मैं इसे बर्दास्त कर सकू। अब हम दोनों बहुत अलग हैं। फिर भी मुझे उसके सपनों के ख्वाब बुनना पसंद है। हमदोनों ने एक दूसरे के जज्बातों को जिंदा ही नहीं रखा बल्कि दिन प्रति दिन उसे बड़े सलीके से सजाया... मैंने एक लर्गफ्रेड़ नहीं बल्कि फ्रेंड बनाया और वह चाहती है कि जब भी उसका कोई ब्वायफ्रेंड बने तो उसके लिए उसके कार्ड पर सबकुझ मैं लिखूं। काफी वक्त हो गया है हम दोनों को मिले लेकिन सबकुछ पहले जैसा ही है। जिन्दगी में दोस्तों का झुंड तो नहीं मिला पर कुछ मुट्टी भर अच्छे दोस्त जरूर मिले है। मैं यही चाहता हूं हर कोई अपने दोस्त के लिए एक कहानी संजोये और वह भावना जब धक से लगे तो कह दे। हैप्पी फ्रेंडशिप डे ....
 
 
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