Sunday 12 October 2014

आम जनमानस के दिमाग में अक्सर यह सवाल उठता है। जब वह सरकारी प्रणाली की मार खाते है। तब बुदबुदाते है, अकेला चना क्या भाड़ फोड सकता है। देश में संपूर्ण क्रांती की अखल जगाने वाले लोकनायक जयप्रकाश नरायण ऐसे ही एक चना है जिन्होंने अकेले ही शिक्षा में क्रान्ति, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी, को दूर करने के लिए घडे रूपी सरकार को तोड़ दिया। लोकनायक एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने अपनी जिन्दगी देश के नाम कर दी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिन में तारे दिखला दिए।

देश को आजाद कराने की लड़ाई से लेकर 1977 तक तमाम आंदोलनों की मसाल थामने वाले लोकनायक जयप्रकाश नरायण का नाम देश के ऐसे शख्स के रूप में उभरता है जिन्होंन अपने विचारों, दर्शन तथा अपने व्यक्तित्व से देश की दिशा तय करने वाले महान गांधीवादी नेता जयप्रकाश नरायण का जन्म 11 अक्तूबर 1902 को बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र में आने वाले 'लाला का टोला' में हुआ था। पटना से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद वह शिक्षा के लिए अमेरिका भी गए हालांकि उनके मन में भारत को आजाद देखने की लौ जल रही थी। यही वजह रही कि वह स्वदेश लौटे और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हुए। जब वह अमेरिका से स्वदेश लौटे तो उस वक्त वह मार्क्सवादी हुआ करते थे। वह सशस्त्र क्रांति के जरिए अंग्रेजी सत्ता को भारत से बेदखल करना चाहते थे, लेकिन बाद में बापू और नेहरू से मिलने एवं आजादी की लड़ाई में भाग लेने पर उनके इस दृष्टिकोण में बदलाव आया। नेहरू के कहने पर जेपी कांग्रेस के साथ जुड़े हालांकि आजादी के बाद वह आचार्य विनोभा भावे से प्रभावित हुए और उनके सर्वोदय आंदोलन से जुड़े। उन्होंने लंबे वक्त के लिए ग्रामीण भारत में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। उन्होंने आचार्य भावे के भूदान के आह्वान का पूरा समर्थन किया।

वे इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के विरुद्ध थे। 5 जून 1975 को अपने भाषण में कहा था "भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति- 'सम्पूर्ण क्रान्ति आवश्यक' है।" 5 जून, 1975 की विशाल सभा में जे. पी. ने पहली बार 'सम्पूर्ण क्रान्ति' के दो शब्दों का उच्चारण किया। उनका साफ कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा। यह क्रान्ति बिहार और भारत में फैले भ्रष्टाचार की वजह से शुरू की। बिहार में लगी चिंगारी कब पूरे देश में फैल गई पता ही नहीं चला।

गिरते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने बिहार में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया। उनके नेतृत्व में पीपुल्स फ्रंट ने गुजरात राज्य का चुनाव जीता। 1975 में इंदिरा गांधी ने आपात्काल की घोषणा की जिसके अंतर्गत जेपी सहित 600 से भी अधिक विरोधी नेताओं को बंदी बनाया गया और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। जेल मे जेपी की तबीयत और भी खराब हुई। 7 महिने बाद उनको मुक्त कर दिया गया। 1977 जेपी के प्रयासों से एकजुट विरोध पक्ष ने इंदिरा गांधी को चुनाव में हरा दिया।

  
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