एक बच्ची जिसने अभी ठीक से चलना भी नहीं सीखा था, जो बिल्कुल अबोध थी, जिसने अभी ठीक से दुनिया भी नही देखी थी, जिसकी उम्र लगभग डेढ माह की हुयी थी। तब मां ने उसको नहर में डाल दिया। तब लडकी के मन में ये सवाल तो जरूर आयें होंगे कि मां तुम तो मेरी जननी हो, तुमने मुझे दुनिया में उतारा हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया जो तुम मुझे मिटाना चाहती हो। मां मुझे मत मारो, मैं तुम्हारा सहारा बनूगीं, मैं कभी भी किसी चीज के लिए जिद नही करूगी,जो तू मुझे देगी में वो ही खा लूंगी, मां मुझे मत मार, मुझे जीने दे। मां आखिर मेरा गुनाह क्या है ? क्या मेरा गुनाह यह है कि मैं बेटी हूॅ। इसलिए तुम मुझे जिन्दगी के बदले मौत देना चाहती हो।
माता तुम तो ममता की मूर्त हो, फिर तुम दिल पर क्यों पत्थर रख रही हो। आपके सामने ऐसी क्या परेशानी आ गयी जो तुम मुझे खत्म करना चाहती हो। दूध पिलाने की उम्र में तुम मुझे नहर का पानी पिलाकर मौत के मुंह में धकेल रही हो। मां मैं आधी रोटी खा लूंगी, कपडे भी दीदी के पहन लूंगी, मुझे मत फैको। जिस मॉ ने उसको सीने से लगाकर रखा। मां ने जब उसे अपने से अलग किया होगा क्या तब उसके दिल से कोइ आवाज नही आयी। आखिर क्यों उसने अपने कलेजे के टुकडे को, अपने अंश को ही खुद से अलग कर दिया। कैसी मां थी वो ? परेशानी कुछ भी हो लेकिन मां के इस कृत्य ने ममता को कलंकित तो कर दिया। जिस मां ने 9 महीने तक बच्चें को पेट में रखा, पैदा होते ही ऐसी क्या परेशानी आ गयी कि उसे खत्म करने की ठान ली। क्या वह परेशानी बेटी तो नही ?
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