Friday 28 August 2015



सावन के रिमझिम मौसम के साथ ही भारत में त्योहारों की रंग-बिरंगी श्रृंखला आरंभ हो जाती है। श्रावण मास की पूर्णिमा को भाई-बहन के खूबसूरत रिश्ते की झलक देने वाला रक्षाबंधन का त्यौहार, हिन्दू धर्म के मुख्य पर्वों में से एक है। यह त्योहार रिश्तों की खूबसूरती को बनाए रखने का बहाना होता हैं। यू तो हर रिश्ते की महकती पहचान होती है, लेकिन भाई-बहन का रिश्ता भावभीना अहसास जगाता है। यह सुरक्षा और विश्वास के वादे का पर्व है। यह रेशमी रिश्ते की पवित्रता का प्रतीक है।

भाई और बहन का रिश्ता मिश्री की तरह मीठा और मखमल की तरह मुलायम होता है। इस रिश्ते में विविध उतार-चढ़ांव बहुत गहरे अहसास के साथ हमेशा ताजातरीन और जीवंत बना होता है मन की किसी कच्चे कोने में बचपन से लेकर जवानी तक की, स्कूल से लेकर बहन के विदा होने तक की, और एक दूजे से लड़ने से लेकर एक दूजे के लिए लड़ने तक की यादे परत दर परत रखी होती है। बीते हुए बचपन की झूमती हुई यादे भाई-बहन की आंखों के सामने नाचने लगती है। सचमुच रक्षाबंधन का त्योहार हर भाई को बहन के प्रति अपने कर्तव्य की याद दिलात है। रक्षाबंधन भाई बहन के प्यार का त्यौहार है भारत में यदि आज भी संवेदना, अनुभूति, अत्मीयता, आस्था और अनुराग बरकरार है तो इसकी पृष्ठभूमि में इन त्योहारों का बहुत बड़ा योगदान है। यह भाई बहन को स्नेह की डोर से बांधने वाला त्योहार है। रक्षाबंधन पर्व बहन द्वारा भाई की कलाई में राखी बांधने का त्यौहार भर नहीं है, यह एक कोख से उत्पन्न होने वाले भाई की मंगलकामना करते हुए बहन द्वारा रक्षा सूत्र बांधकर उसके सतत् स्नेह और प्यार की निर्बाध आकांक्षा भी है।

इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत 6 हजार साल पहले माना जाता है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। कहा जाता है कि कृष्ण भगवान ने जब राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। उस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी। कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का बन्धन है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है।

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