Tuesday 9 May 2017

महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे। सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे, जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे। अकबर और महाराणा प्रताप में किसे महान कहना चाहिए। यह सवाल लोगों को सैकड़ो सालों से परेशान करते रहा है। बुद्धि जीवियों और इतिहासकारों में इस सवाल को लेकर अलग-अलग राय है। दोनों अपनी जगह महान थे। दोनों से हम आज बहुत कुछ सीख सकते हैं, बशर्ते हमें मालूम हो कि हुआ क्या था।

कहा जाता है कि राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित हल्दीघाटी युद्ध मुगल शासक अकबर ने नहीं बल्कि महाराणा प्रताप ने जीता था। हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था। अकबर और राणा के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था। साल 1576 में हुए इस भीषण युद्ध में अकबर को नाको चने चबाने पड़े और आखिर जीत महाराणा प्रताप की हुई। यह दावा राजस्थान सरकार की ओर से किया गया है।

महाराणा प्रताप सिंह (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदानुसार- 9 मई, 1540 ई. से 29 जनवरी, 1597 ई तक) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर हुआ था।


कहा जाता है कि अकबर हमलावर था। मेवाड़ पर हमला करके उस पर अधिकार जमाना चाह रहा था। राणा प्रताप मेवाड़ के लोकप्रिय शासक थे। यह उन दिनों की बात है जब अकबर भारत पर अपना शासन फैलाने में लगा हुआ था। वह अपने बाप-दादा के समय की परंपरा को तोड़कर अपने आप को बादशाह घोषित कर दिया था। जहां बाबार और हुमायूं सुल्तान थे, तो वहीं अकबर बादशाह था। बादशाह यानि सर्वोपरि एक ऐसा राजा जो किसी खलीफा के अधिन नहीं।

अकबर पश्चिम एशिया से अपना संबंध खत्म कर भारत में अपनी जड़े जमा ली थी और वह पूरे भारत पर साशन करना चाहता था पर मेवाड़ के राणा, प्रताप सिंह को अकबर की अधीनता स्वीकार न थी। प्रताप के पहले भी कभी मेवाड़ के किसी शासक ने किसी का आधिपत्य नहीं माना था को महाराणा कैसे मान लेते।

पर अकबर की निगाहें मेवाड़ पर था। अकबर ने कई बार दूत भेजकर मेवाड़ को अपने खेमे में मिलाने की कोशिश की। लेकिन महाराणा को ऐसी दोस्ती जरा भी पसंद नहीं था जिसमें अकबर को बादशाह मानना पड़े, यह प्रताप को नागवार था। सो हर बार मुग़ल दूत अपना सा मुंह लेकर वापस लौटा। अंतत: अकबर ने आमेर के राजा मानसिंह के नेतृत्व में फ़ौज भेजकर मेवाड़ पर कब्ज़ा करने की ठानी। 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में 20,000 राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80,000 की सेना का सामना किया।

हमारे इतिहास में जितनी महाराणा प्रताप की बहादुरी की चर्चे होते है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े चेतक को भी मिली। कहा जाता है कि चेतक कई फीट उंचे हाथी के मस्तक तक उछल सकता था। हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक, अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक की ऊंचाई तक बाज की तरह उछल गया था। फिर महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर वार किया। जब मुग़ल सेना महाराणा के पीछे लगी थी, तब चेतक उन्हें अपनी पीठ पर लादकर 26 फीट लंबे नाले को लांघ गया, जिसे मुग़ल फौज का कोई घुड़सवार पार न कर सका। प्रताप के साथ युद्ध में घायल चेतक को वीरगति मिली थी।

कहा जाता है कि अगर आप भारत को एक सूत्र में बांधने के काम को महान मानते हैं तो अकबर ने इसके लिए काफ़ी कोशिश की। अगर आप वीरता से आक्रमणकारी को पीछे धकेलने को महान काम मानते हैं तो प्रताप का कोई सानी न था।
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