Thursday 18 September 2014


कहा जाता है कि बॅालिवुड में सौंदर्य और हुस्न का होना बहुत जरूरी है। जो इन सब साचे में फिट है वहीं हीट है। पर शबाना आजमी बॅालिवुड के उन अभिनेत्रियों में शुमार हैं। जिनके पास न तो हुस्न है और न ही सौंदर्य लेकिन अपनी दिलकश अदाओं से रूपहले पर्दे को उलते पुलटते हुए सौंदर्य का एक नया परिभाषा लिखी एक नया रंग एक नया रूप जिसे कोई छु न सके।  बॅालिवुड में शबाना का आगमन एक नई परंपरा की शुरूआत थी जो आज चार दशक बाद भी उस परंपरा की इकलौती हकदार है।  


18 सितंबर 1950 को मशहूर शायर और गीतकार कैफी आजमी के घर जन्मी शबाना भारतीय सिनेमा की एक अनूठी उपलब्धि हैं।  शबाना शुरू से ही प्रोग्रेसिव विचारों की थी.... लेकिन परम्परों और मर्यादाओं में उनकी गहरी आस्था थी... यही वजह है कि अभिनय उनकी प्राथमिकता में नहीं था लेकिन फिल्म 'सुमन' में जया बच्चन की अभिनय को देख कर शबाना आजमी इतनी प्रभावित हुई की पूने में टेलिविज़न इंस्टीट्युट ऑफ़ इंडिया में दाखिला ले लिया और 1973 में जब वह लौटी तो सिनेमा-सृजन और सरोकारों को समर्पित  बन कर। एक गंभीर अभिनेत्री के रूप में उन्होंने हिन्दी सिनेमा को एक नया आयाम प्रदान की अपनी कुशल अभिनय से समानांतर सिनेमा हो या फिर कमर्शियल फिल्में उन्होंने हमेशा अपने को साबित किया।   
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