Thursday 11 September 2014

समय आ गया एक और हिन्दी दिवस मनाने का, आज के दिन हिन्दी के नाम पर कई दावे किए जाएगें। कई पुरस्कारों का ऐलान भी किया जाएगा। कई सारे पाखंड भी होंगे, अलग-अलग जगहो पर हिन्दी की दुर्दशा पर विभिन्न प्रकार के सम्मेलन भी किए जाएंगे। इस दिन सब हिन्दी में ही काम करने की प्रण भी लेंगे और न जाने क्या- क्या लेकिन अगले ही दिन सब भूल कर अपने-अपने काम में लग जाएंगे और हिन्दी फिर वही अपने जगह पर रेंगती और सिसकती रह जाती है। यह सिलसिला 14 सितंबर 1949 से लगातार जारी है और न जाने कब तक जारी रहे। हम लगभग पिछले छह दशकों से हिन्दी दिवस का आयोजन करते आ रहे हैं। 


आधुनिकरण के इस दौर में या वैश्वीकरण के नाम पर जितनी अनदेखी और दुर्गति हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं की हुई है उतनी शायद हीं कहीं भी किसी और देश में हुई हो। लेकिन वैश्वीकरण के इस युग में क्या हिन्दी वाकई आगे बढ़ पा रही है। क्या यही है हिन्दी दिवस की सार्थकता? एक दिन मना कर हम सब राजभाषा हिन्दी को भूला दें। कुछ लोगों का कहना है कि शुद्ध हिन्दी बोलना कठिन है, सरल तो केवल अंग्रेजी बोली जा सकती है। क्यों हमारे यहां सिर्फ अंग्रेज़ी को ही महत्व दिया जाता है। जिस देश में पचास करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते हो उस देश में हिन्दी साहित्य को मात्र पांच सौ से हजार पाठक ही मिल पाते हैं, ऐसा क्यों होता है? 


आज भारत में कहा जाता है, अच्छे स्कूलों में दाखिला लेने और बेहतर नौकरी पाने के लिए अंग्रेज़ी जानना ही होगा, आज के युग में अंग्रेज़ी का ज्ञान ज़रूरी है, कई सारे देश अपनी युवा पीढ़ी को अंग्रेज़ी सिखा रहे हैं पर इसका मतलब ये नहीं है कि उन देशों में वहाँ की भाषाओं को ताक पर रख दिया गया है और ऐसा भी नहीं है कि अंग्रेज़ी का ज्ञान हमको दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में ले आया है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी कहते थे- 'हिंदी न जानने से गूँगा रहना ज्यादा बेहतर है। आज पूरे देश में हिन्दी की क्या दशा है किसी से छुपी नहीं है। अगर हम विश्व पर नजर डाले तो केवल दस देश ही ऐसे हैं, जहां पर अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई होती है, और बाकी के देश अपनी भाषा में पढ़ाई करते है। आज विश्व के बडे-बडे विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ाई जाती है पर अपने ही देश के विश्वविद्यालय में हिन्दी की जगह अंग्रेजी ने ले ली है। दिल्ली के विश्वविद्यालय में सिर्फ अँग्रेजी भाषा में व्याख्यान और अंग्रेजी पुस्तकों का राज चल रहा है। अंग्रेजी ने यहां ऐसा वर्चस्व जमाया है कि वह पटरानी और हिंदी नौकरानी बन गई है। 



जहां तक अंग्रेजी की बात है तो ये पूरे विश्व में सिर्फ अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और आधे कनाडा में बोली जाती है। वैसे अगर हम दिवस मनाए जाने की बात करें तो आज दुनिया भर में न जाने कितने डे मनाए जाते हैं, मदर्स डे, फादर्स डे, और न जाने क्या-क्या ? लेकिन हमारे देश में हर मां-बाप अपने बच्चे को जबरदस्ती अंग्रेजी पढ़ाने-सिखाने के लिये उसे मारते-पिटते हैं। लेकिन क्या हमलोगों ने कभी किसी अंग्रेजों को अपने बच्चे को हिंदी पढ़ाने या सीखाने के लिये मारते-डाठते हुए सुना है। आज “हिन्दी दिवस” जैसा दिन मात्र एक औपचारिकता बन कर रह गया है। हम हर साल 14 सितम्बर के दिन ऊब और अवसाद में डूब कर हिंदी की बरसी ही तो मनकते है। वरना क्या कभी आपने चीनी दिवस या फ्रेंच दिवस या अंग्रेजी दिवस के बारे में सुना है। हिन्दी दिवस मनाने का अर्थ ही है हिन्दी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करना। 
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