Friday 5 September 2014

"गुरु ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।"

जिसे देता ये जहाँ सम्मान, जो करता है देशों का निर्माण, जो बनाता है इंसान को इंसान, जिसे करते है सभी प्रणाम, जिकसी छाया में मिलता ज्ञान, जो कराये सही दिशा की पहचान, वो है हमारे गुरु; मेरे गुरु को शत-शत प्रणाम।

गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।
कबीरदास द्वारा लिखी गई उक्त पंक्तियाँ जीवन में गुरु के महत्त्व को वर्णित करने के लिए काफी हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है। गुरु, शिक्षक, आचार्य, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को व्याख्यातित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करता है। शिक्षक ही वह धुरी होता है, जो विद्यार्थी को सही-गलत व अच्छे-बुरे की पहचान करवाते हुए बच्चों की अंतर्निहित शक्तियों का विकसित करने की पृष्ठभूमि तैयार करता है। वह प्रेरणा की फुहारों से बालक रूपी मन को सींचकर उनकी नींव को मजबूत करता है। उन्हें जीने की वजह समझाता है। संत कबीर के शब्दों से भारतीय संस्कृति में गुरु के उच्च स्थान की झलक मिलती है। भारतीय बच्चे प्राचीन काल से ही आचार्य देवो भवः का बोध-वाक्य सुनकर ही बड़े होते हैं। इन्हीं शिक्षकों को मान-सम्मान, आदर तथा धन्यवाद देने के लिए एक दिन निर्धारित की गई है।

5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस। यह दिन हमें उस महान व्यक्तित्व की याद दिलाता है जो एक महान शिक्षक के साथ-साथ राजनीतिज्ञ एवं दार्शनिक भी थे। डॅा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपना जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि भौतिकता की आंधी में शिक्षक दिवस तब्दील होकर "टीचर्स डे" हो जाएगा। 'शिक्षक दिवस' कहने-सुनने में तो बहुत अच्छा प्रतीत होता है, लेकिन क्या हम इसके महत्त्व को समझते हैं। शिक्षक दिवस का मतलब साल में एक दिन अपने शिक्षक को भेंट में दिया गया एक गुलाब का फूल या कोई भी उपहार नहीं हो सकता। हमें शिक्षक दिवस का सही महत्त्व समझना होगा। 
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