अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए जिसमें इंसान
को इंसान बनाया जाए... मेरे दुख दर्द का हो तुझपे कुछ असर ऐसा जब मैं भूखा रहूं तो
तुझसे भी न खाया जाए... भले दो जिस्म हैं पर एक जान हों अपने... मेरी आंखों का
आंसू तेरी पलकों से उठाया जाए... आपकी रग रग में प्रेम को स्पन्दित कर देने वाली
ये रचनाएं कवि सम्मेलनों और मुशायरों के कोलम्बस कहे जाने वाले, कविकुल के मणिमौर,
हिन्दी साहित्य के पित्रपुरूष, कलम के सच्चे सेनानी, तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड समेत
पद्मभूषण से सुशोभित गोपाल दास सक्सेना उर्फ नीरज जी के हैं... नीरज जी की
लोकप्रियता का अंदाजा बस इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे अपने शब्दों में अमृत
कलश लेकर चलते थे...
जो भी एक बार रसपान कर लेता था वह उनके रंग में रंग जाया करता
था...... लोगों के जेहन में उनकी कविताएं इस कदर घर कर गईं थी... कि उनकी कविताओं
के अनुवाद गुजराती मराठी, बंगाली, पंजाबी और रूसी भाषाओं में कराए गए...
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर उन्हें हिंदी की वीणा मानते थे... और अन्य कवि
उन्हें संत कवि कहते थे... कहा जाता है कि गोपाल दास नीरज वे शख्स थे जिनकी
कविताओं में शराब से ज्यादा नशा था... जो उतरने का नाम नहीं लेता.. क्योंकि काव्य प्रेमियों को पता है... उनके साथ शराब का जिक्र न हो तो शायद
किस्सा अधूरा रह जाएगा... नीरज जी ने लिखा भी, कि... साकी तू अब भी यहां किसके
लिये बैठा है... अब न वो मय, न वो जाम, न वो पैमाने हैं... न तो पीने का सलीका.. न
पिलाने का शऊर.. अब तो वे लोग चले आए हैं मैखाने में...
बाद के दिनों में नीरज जी
को पत्रकारों से बात करने का कोई मोह नहीं रहा... वे फालतू सवालों पर झिड़क भी
देते थे... लेकिन जब कोई उन्हें दिलचस्प श्रोता मिल जाता और उनके दिल को छू लेने
वाली कोई बात कह देता.... तो उससे वे घण्टों बात कर लिया करते थे... नीरज से जब बीबीसी के पत्रकार कुलदीम मिश्रा ने
पूंछा कि नए लिखने वालों में उन्हें कौन पसंद है.... तो उन्होने कहा कि ज्यादा सुन
नहीं पाता हूं... लेकिन गुलजार अच्छा लिख रहे हैं... आम लड़कों की तरह जवानी के
दिनों में नीरज जी को भी प्रेम हुआ... जब उनकी प्रियतमा की डोली उठी तो नीरज जी
बहुत व्याकुल हुए... तब उन्होने मात्र 23 साल की उम्र में जो गीत लिखा कि
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
ये गीत अगले 23 हजार साल तक हर प्रेमी प्रेमिका
के बिछुड़न पर एक दूजे की अन्तरात्मा की छुअन के लिये गाया जाता रहेगा... नीरज जी
कहते थे कि मेरी प्रेम की भाषा है... वे कहते थे गुस्से में कभी अपना चेहरा देखना और जब
प्रेम करते हों, तब
देखना... वे कृष्ण, ओशो और जीवन मृत्यु के विषयों पर बहुत रूचि रखते थे.. लेकिन वे
धार्मिक रूढ़िवाद में कभी नहीं फंसते थे... एक बार उन्होने कहाथा कि मेरा धर्म में
विश्वास नहीं धार्मिकता में है... ईश्वर के नाम पर चार हजार धर्म बने इन धर्मों ने
क्या किया... खून बहाया फिर कृष्ण आया जीवन को उत्सव बना दिया साहब उस आदमी ने... नीरज
जी स्पष्टवादिता के बहुत धनी थे वे कहते थे कि आपलोग चिट्ठी में नीचे लिखते हैं...
आपका अपना.... वो झूठ है जानता हूं कि मेरी सांस तक मेरी नहीं.. यकीन मानिये मैने
शब्दों की रोटी खाई है... जिंदगी भर... इसलिए मैं आपका नहीं सप्रेम लिखता हूं... गोपाल
दास नीरज का फिल्मी सफर कुल पांच सालों का रहा...
इस बीच नीरज को तीन बार फिल्फेयर
अवार्ड मिले... इस दौरान नीरज की रचनाओं में लिखे जो खत तुझे... शोखियों में घोला
जाए फूलों का शवाब.. रंगीला रे.... फूलों के रंग से दिल की कलम से... दर्द दिया है... आसावरी... कारवां गुजर गया गुबार
देखते रहे... गीत जो गाए नहीं... ओ मेरी शर्मीली आओ न... जिंदगी है चीज क्या नहीं
जान पाएगा... आजमदहोश हुआ जाए रे मेरा मन... दिल आज शायर है गम आज नगमा है... ए
भाई जरा देख के चलो... मंचों पर आखिरी
दिनों में जब उनका मन नहीं होता था... तो हजारों की भीड़ में भी संचालक को बोलकर
शुरू में ही कविता पढ़कर होटल चले जाते थे... और मन होता तो घण्टों काव्यपाठ किया
करते थे... नीरज का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था...
नीरज जीवन पर्यन्त कविताएं लिखते रहे.... समय के प्रत्येकक्षण को उन्होने भोगा
बचपन गरीबी में बीता... तमाम संघर्षों के बाद नीरज साहित्य जगत के कोहिनूर बने....
19 जुलाई साल दो हजार अट्ठारह को 93 साल की उम्र में दिल्ली के एम्स अस्पताल में
उनकी जिंदगी का कारवां गुजर गया नीरज जी नहीं रहे.... पर वह अपने रंगों में हम
सबको रंगकर चले गए....