Sunday 25 July 2021

आज कहानी अर्थशास्त्र के उस महानायक की जिसने नेहरू और इंदिरा गांधी की औद्योगिक नीतियों को सिरे से पलटकर नई रूपरेखा दी... जिसने अर्थ व्यवस्था को उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण की राह पर दौडाने का ऐलान किया... ये उपलब्धि उसी महानायक के नाम जाती है... जिसकी वजह से आज देश खजाना विदेशी मुद्रा भंडार से भरा हुआ है... इसका नतीजा ये रहा कि  साल 1991 में 5.80 अरब डॉलर से विदेशी मुद्रा भण्डार का कारवां तीन जुलाई साल दो हजार इक्कीस को 611 अरब डॉलर तक पहुंच गया... ये कहानी गारत में जा रही भारतीय अर्थव्यवस्था के गेम चेंजर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की है...  जिनके गियर बदलते ही देश की अर्थव्यवस्था बुलेट ट्रेन की तरह दौड़ पड़ी... आज के तीस साल पहले दिनांक चौबीस जुलाई साल उन्नीस सौ इक्यानवे को आज का ही दिन था जब मनमोहन सिंह ने देश का वित्तीय बजट पेश किया.... उस समय देश के विदेशी मुद्राभण्डार कि हैसियत मात्र इतनी थी कि सिर्फ दो हफ्तों तक ही दूसरे देशों से आयात किया जा सकता था... अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह सबसे भयावह दौर था... और इतना ही नहीं साल 1991 में भारत का भुगतान संतुलन इतना बिगड़ गया कि देश का सोना गिरवी रखना पड़ा..  लेकिन इस लड़ाई के महानायक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आर्थिकी के भयावह दौर से निपटने के लिये अपने बजट में भारतीय बाजार को विदेशी कंपनियों के लिये खोल दिया... उनके इस कदम से केंद्र् सरकार को महज चन्द महीनों में ही इकोनॉमी के मोर्चे पर बड़ी सफलता मिली... और उसी साल दिसम्बर 1991 में सरकार ने विदेशों में गिरवीं रखे देश के सोने को छुड़वा लिया... वो दौर जब भारत अर्थव्यवस्था की बदहाली से जूझ रहा था... 



उससे उबारने के लिये मनमोहन सिंह को कभी भुलाया नहीं जा सकता... तब सोने की भी चांदी हुई... तब सोना 3466 रूपए प्रति तोला था.. आज सोना भी लगभग पचास हजार रूपए प्रति तोला बिक रहा है... इतना ही नहीं तब देश में प्रतिव्यक्ति आय पांच सौ अड़तीस रूपए थी आज बढ़कर 12140 रूपए होगई है... इस लिहाज से देखें तो प्रतिव्यक्ति आय में लगभग साढ़े बाईस फीसदी तक बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है... मनमोहन सिंह के उदारीकरण की इस पहल को शेयर बाजार ने भी सलाम किया है... उदारीकरण से पहले साल उन्नीस सौ नब्बे में सेंसेक्स महज एक हजार अंक पर था... जिसे साल उन्नीस सौ इक्यानबे में मनमोहन सिंह की वित्तीय नीतियों ने पंख दिये और दिसम्बर उन्नीस सौ इक्यानबे में सेंसेक्स उन्नीस सौ आठ अंक तक पहुंच गया... इस तरह से महज एक साल के भीतर सेंसेक्स आठसौ इकासी अंक बढ़ा... और आज नतीजा यह रहा कि सेंसेक्स तिरपन हजार के आसपास है...  आज दुनियाभर के देशों की नजरें भारतीय बाजार पर हैं... हर विकसित देश भारत का खुला बाजार देख कर निवेश करने के लिये उत्सुक दिखाई दे रहा है... कोरोना की वजह से जीडीपी में पिछले वित्तीय वर्ष में ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली... लेकिन पिछले तीन दशक में हिन्दुस्थान की इकॉनामी 33 गुना बढ़ी है... और साल (2020-2021) को देश का वित्तीय बजट 191.81 लाख करोड़ रूपए पर पहुंच गया... इसके अलावा पिछले तीस वर्षों में बैंकिंग सेक्टर में सुधार के लिये कई कदम उठे गए... अब कहानी मनमोहन सिंह बजट के उस नाजुक मोड़ की जब उन्हें अपनी ही पार्टी के अन्तर्कलह से जूझना पड़ा... जब मनमोहन सिंह अपना बजट भाषण देने के लिये खड़े हुए तो पूरे देश की निगाहें उनपर थी... उस वक्त देश के चोटी के आर्थिक पत्रकार मोंटेक सिंह अहलुवालिया, ईशेर अहलूवालिया, बिमल जालान समेत कई पत्रकार घात लगाए बैठे थे... 



क्योंकि इनकी समीक्षा से अर्थशास्त्र के दिग्गत थर्राते थे... भाषण के दौरान मनमोहन सिंह ने शुरू में ही कहा कि वो इस समय बहुत अकेलापन महसूस कर रहे हैं... क्योंकि उनके सामने राजीव गांधी का सुन्दर मुस्काता हुआ चेहरा नहीं है.. और वे गांधी परवार का बार बार जिक्र करते जा रहे थे... क्योंकि वे उनकी नितियों को सिरे से खारिज कर रहे थे... मनमोहन सिंह की उपलब्धियों में इससे पहले सत्तर के दशक में कम से कम सात बजटों को तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही... लेकिन साल उन्नीस सौ इक्यानबे का वह पहला बजट था जिसको उन्होने अंतिम रूप दिया था... मनमोहन सिंह ने इस बजट का बहुत बड़ा हिस्सा अपने हाथों खुद लिखा था... इससे पहले एक वाकया बहुत फेमस है... जुलाई के मध्य मनमोहन सिंह एक टॉप सीक्रेट मसौदा लेकर पीएम नरसिंहाराव के पास गए....और जब नरसिम्हाराव ने बजट का साराश बड़े ध्यान से पढ़ा... फिर मनमोहन सिंह से कहा अगर मैं यही बजट चाहता तो मैने आपको ही क्यों चुना होता... मनमोहन सिंह के इस बजट से वित्तमंत्रालय के दो चोटी के अधिकारी एसपी शुक्ला और दीपक नैयर सहमत नहीं थे... लेकिन मतलब साफ था कि नरसिंह राव ने मनमोहन सिंह को और दिलेर होने का मौका दिया... मनमोहन सिंह के भाषण की सबसे खास बात ये थी कि वे सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी को करीब 8.4 फीसदी से घटाकर पांच दशमलव नौ फीसदी पर ले गए... इससे बजटीय घाटे में करीब ढ़ाई फीसदी की कमी आई... उनका खास मकसद था सरकारी खर्चों में बेइंतहां कमी करना...  मनमोहन सिह के इस बजट का आम लोगों ने तो स्वागत किया लेकिन कुछ कांग्रेसी और वामपंथी इस बजट से खुश नहीं थे... 



जिसका नतीजा ये रहा कि कांग्रेस के ही अखबार नेशनल हेरल्ड ने राव सरकाल कि चुटकी लेते हुए लिखा कि इस बजट ने माध्यम वर्ग को करारे कॉर्न फ्लेक्स और झाग वाले ड्रिंग्स जरूर उपलब्ध कराए हैं लेकिन हमारे देश के संस्थापकों की ये प्राथमिकता कभी नहीं रही... बजट को लेकर कांग्रेस सांसदों में इतना रोष था कि अक अगस्त उन्नीस सौ इक्यानबे को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक बुलाई गई जिसमें वित्तमंत्री ने अपने बजट का बचाव किया... राव इस बैठक से दूर रहे... और उन्होने मनमोहन सिंह को अपने बल पर सांसदों के गुस्से को झेलने दिया.. उसके बाद दो और तीन अगस्त को कांग्रेस सांसदों की बैठकें हुईं... जिसमें प्रधानमंत्री राव खुद मौजूद रहे... कांग्रेस संसदीय दल की उन दिनों हो रही बैठकों में मनमोहन सिंह बिल्कुल अलग थलग पड़े हुए थे... आलम ये था कि सिर्फ दो सांसद तमिलनाडु से चुनकर आए मणिशंकर अय्यर और राजस्थान के वरिष्ठ कांग्रेस नेता नाथूराम मिर्धा ही खुलकर मनमोहन सिंह के समर्थन में खुलकर आए.... वहीं विरोध करने वालों की इस कड़ी में कृषि मंत्री बलराम जाखड़, संचार मंत्री राजेश पायलट और रसायन और खाद राज्य मंत्री चिंतामोहन थे जो अपनी ही सरकार के प्रस्तावों की खुलेआम आलोचना कर रहे थे... 




इतना ही नहीं बल्कि पचास कांग्रेस सांसदों ने कृषि संसदीय मंच के झंडे तले वित्त मंत्री को पत्र लिखा जिसमें बजट प्रस्तावों की खुलेआम आलोचना की गई... इसमें दिलचस्प बात ये थी कि इस मंच के अध्यक्ष महाराष्ट्र के वरिष्ठ सांसद प्रतापराव भोंसले थे जिन्हें राव का करीबी माना जाता था.... नजारा ये था कि इस पत्र पर दक्षिण मुंबई के सांसद मुरली देवड़ा ने भी दस्तख़त किए थे जो उद्योगपतियों के करीबी माने जाते थे. लेकिन राव इस राजनीतिक दबाव के आगे नहीं झुके.. करीब 15 दिन बाद सुदीप चक्रवर्ती और आर जगन्नाथन ने इंडिया टुडे के अंक में लिखा, "राव ने वो किया जो प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गाँधी करना भूल गए. उन्होंने भारत को 21वीं सदी में ले जाने की बात ज़रूर की लेकिन वो वर्तमान सदी के बाहर नहीं निकल पाए राव और मनमोहन ने जहाँ एक तरफ़ नेहरू के समाजवाद के क़सीदे पढ़े लेकिन दूसरी तरफ़ देश का गिरेबान पकड़ कर कहा आगे बढ़ो वर्ना हम सब मर जाएंगे.... बाद में इस बजट के बारे में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने लिखा कि यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी... कि नेहरू के समय को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस संसदीय दल इतना कभी सक्रिय नहीं रहा...

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