चमन मिश्रा का उपन्यास 'तान्या' नई वाली हिन्दी में लिखा गया है। यह सत्य और कल्पना दोनों का सहारा लेकर व्यापक सामाजिक जीवन की झाँकी प्रस्तुत करता है। चमन मिश्रा का यह उपन्यास हिंदी साहित्य के इस बासी से हो रहे माहौल में भी कुछ नया व ताज़ा करने की कोशिश पूरी तरह से मरी नहीं है को दर्शाता है। यह किताब आम बोल चाल के भाषा में लिखा गया है। इस किताब की यही सबसे प्रमुख नयापन है। यूं तो इस उपन्यास का प्रत्येक अध्याय अपने आप में स्वतंत्र है, लेकिन जरा गहराई से अगर गौर करें तो यह स्पष्ट होता है कि स्वतंत्र से दिखने वाले यह उपन्यास कहीं न कहीं आपको बांध देता है। इसी क्रम में किताब के कुछ प्रमुख अध्यायों पर एक संक्षिप्त नज़र डालें, तो इसका पहला अध्याय ‘बिछड़न, इश्क और बनियागिरी’ किताब की वास्तविक भूमिका है। इसमें जीवन की आपा-धापी से कुछ समय मिलने पर लेखक ने दो प्यार करने वाले के अन्तःप्रेम को दर्शाया है जो आज के आभासी दुनिया में प्रेम करने के नए ठिकानों को दर्शाता है। तो वहीं दूसरे अध्याय पर नजर डाले तो 'दिल्ली, आशिक़ अर्नब और प्रपोज़ल' में लेखक की डायरी दूसरी तरफ मुड़ती है। दूसरे अध्याय में चीजें फ्लैशबैक में चली जाती हैं। वह स्कूल के दिनों में पहुंच जाते है। जब पहली बार तन्या ने उसे प्रपोज़ल भेजा था। इसी प्रकार प्रत्येक अध्याय एक दूसरे से क्रमवार ढंग से जुड़ते चले जाते है। किताब का एक अध्याय 'स्कॉर्पियो, वेंटिलेटर और अंतिम पत्र' इस उपन्यास की टर्निंग प्वाइंट है। जिसमें नायिका का एक्सीडेंट से लेकर अंतिम पत्र को दर्शया गया है। इस उपन्यास का अंतिम अध्याय 'प्रशांत, तान्या और अधूरा सवाल' में लेखक ने पूरे उपन्यास का निचोड़ दर्शाया है। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक किसीको भी तान्या निराश नहीं करने वाली। किताब भाव, भाषा और विस्तार के मोर्चे पर सौ फीसदी खरी उतरी है। कुछ गुंजाइश भी है। फिर भी वर्तमान हिंदी के दौर का एक शानदार 'उपन्यास' जिसमें प्यार, दुश्मनी, दोस्ती दिखती है। इसका अंत सबसे बेहतरीन जिसपे प्रत्येक पढ़ने वाले कहे रवि और तान्या का अंत ऐसा नहीं हो सकता..! आखिर में, इस सुन्दर रचना के लिए चमन को ढेरों बधाइयां.!
Wednesday, 16 August 2017
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