Monday, 16 January 2017

मैंने कभी सोचा नहीं था कि मुझे इतनी जल्दी अध्यात्म के बारे में पढ़ने या लिखने का मौका मिलेगा और इसेक पीछे का कारण यह भी रहा था की मुझे अध्यात्म से ज्यादा लगाव नहीं रहा क्योंकि उम्र के जिस दहलिज पर मैं खड़ा हूं वहां अध्यातम जैसे भारी-भरकम पहाड़ नुमा लगने वाला यह शब्द मुझे हमेशा डराते रहता। यही कारण भी रहा की अध्यात्म से मैं हमेशा भागता रहा। या फिर उम्र का तकाजा भी हो सकता है क्योंकि उम्र की जिस दहलिज पर मैं खड़ा हूं वहां मेरे जैसे न के बराबर ही बच्चे होंगे जिसका अध्यात्म की ओर रूझान रहा हो क्योंकि अध्यात्म एक दर्शन है, चिंतन धारा है, विधा है, हमारी संस्कृति की परंपरागत विरासत है। ऋषियों, मनीषियों के चिंतन का निचोड़ है, उपनिषदों का दिव्य प्रसाद है। आत्मा, परमात्मा, जीव, माया, जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, सृजन-प्रलय की अबूझ पहेलियों को सुलझाने का प्रयत्न है अध्यात्म।

अब इतने भारी भरकम पहाड़ नुमा शब्दों से हम जैसे युवा जिसका चंचल मन न जाने क्या-क्या सपने बुनते हो और फिर अपने ही बुने सपने में फसकर उलझ जाता हो। वह अध्यात्म को कैसे समझ सकता। जो कॉलेज के कैंन्टीन से बाहर आते-जाते लड़कियों को देखकर नयन सूख की प्राप्ती करता और हर लड़कियों में अपना महबूब तलाशता फेसबूक जैसे बदनाम गलियों के हर चौराहे पर भटकते रहता और अपने महबूब की तलाश में दिल की सारी बाते परत दर परत उस पर लिख देता। जो लड़का हमेशा समाज में समानता की बात करता वह कैसे अध्यात्म से जुड़ सकता जिसका कोई विचार धारा नहीं जो खुद मौका परस्त रहा हो कभी बाबा गांधी को मानता तो कभी बाबा मार्क्स को और जरूरत पड़ने पर हिटलर को भी अपना आदर्श मानने से न हिचकचाता।


लड़कियों को देख कर बाबरा फिरता उसके लिए कहानी या कविता लिखता जिसे कहानी और कविताएं पढ़ना अच्छा लगता उस लड़के के लिए आध्यात्म ठीक वैसे ही जैसे एक डाकू को संत बनाना। मैं अध्यात्म से भागते रहता। जब कोई अध्यात्म की बात करता तो मुझे खुन्नस आती और मुझे लगता है। इस फिरस्त में मैं अकेला लड़का नहीं हूं जिसे अध्यात्म से फुन्नस हो अगर आप देखेंगे तो बहुत सारे लोग मिल जाएगें क्योंकि मैं इन धर्म-संस्कृति को मानने बाले लड़का नहीं रहा हूं। मैं अत्यंत अकाश में सबको उड़ते देखने वाला चाह लिए बड़ा हुआ इस लिए भी अध्य़ात्म मेरे लिए बिल्कुल अगल था, लेकिन जब हम अपने ही बूने जंजाल में फंसते जाते है और जब उस जाल से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाता तब एक रास्ता बाकी रह जाता है अध्यात्म का और यही वह राह है जहां हम हर तरह के बोझ उतारे जा सकते हैं। बोझ मंसूबों के, बोझ मन के, बोझ आत्मा के अध्यात्म ही वह शक्ति है जहां हम अपने आप को पहचानते पाते हैं।
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