Friday 3 April 2015

हरियाणा के बहुचर्चित और विवादास्पद आईएएस अशोक खेमका एक ऐसे अकेले अधिकारी नहीं है, जो अपने ईमानदारी के लिए सुर्खियों में आए हो और जिन्हें अपनी ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ रही हो। इस क्रम में संजीव चतुर्वेदी, प्रदीप कासनी जैसे कई और भी अधिकारी है जिन्हें सरकारे बोझ की तरह मानती है।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण हरियाणा के खट्टर सरकार ने पेस किया कभी सोनिया गांधी के दमाद रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के जमीन सौदे पर सवाल उठाने की वजह से ही अशोक खेमका को, पिछली हुड्डा सरकार ने पुरातत्व और संग्रालय जैसे कम महत्व वाले विभाग में भेज दिया था। हैरत की बात यह है कि कभी इसी मुद्दे को लेकर हुड्डा सरकार को घेरने वाली बीजेपी आज खुद अशोक खेमका जैसे अधिकारी को फिर से पुरातत्व और संग्रालय जैसे कम महत्व वाले विभाग में भेज रही है। 


पुरातत्व जैसे विषय में नेताओं की भी कोई खास दिलचस्पी नहीं होती, क्योंकि उससे न तो वोट, न ही धन जुड़ा है। वहीं परिवहन विभाग प्रभावशाली विभाग माना जाता है, क्योंकि उससे सीधे जनता प्रभावित होती है। परिवहन विभाग अमूमन सबसे ज्यादा भ्रष्ट विभागों में से एक होता है, क्योंकि व्यावसायिक परिवहन में तमाम लाइसेंस, परमिट का कारोबार होता है। खेमका ने परिवहन विभाग में आयुक्त और सचिव रहते हुए अवैध ट्रको और ट्रेलरो के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी थी और ओवरसाइज वाहनों को फिटनेस सर्टिफिकेट देने से इन्कार कर बड़ी ट्रांसपोर्ट लॉबी को नाराज कर दिया था।

अशोक खेमका को नौकरी में 22 वर्ष हो गए और उनके तबादलों का अर्धशतक करीब ही है। यानी हर साल औसतन उनका दो बार तबादला हुआ। जिससे समझा जा सकता है कि सूबे की सरकारों के साथ उनके रिश्ते कैसे रहे हैं। उल्लेखनीय यह है कि उनके खिलाफ कभी भी किसी तरह की गड़बड़ी नहीं पाई गई है, बल्कि उन्होंने नियमों और कायदों को लेकर रसूखदार लोगों से टकराने में कभी हिचक नहीं दिखाई।

जब हरियाणा में कांग्रेस सरकार थी, तब खेमका भाजपा के प्रिय थे, क्योंकि वह रॉबर्ट वाड्रा के कारोबार की गड़बड़ियों को उजागर कर रहे थे। तब कांग्रेस सरकार ने उन्हें प्रताड़ित करने की भरपूर कोशिश की। मगर पिछले दिनों आई सीएजी की रिपोर्ट से यह जाहिर हुआ कि खेमका ने जो आपत्तियां उठाई थीं, वे जायज थीं। हमारे देश में राजनीति व प्रशासन में नियमों के विरुद्ध लोगों को उपकृत करना ही नियम बन गया है, नियमों का पालन करना अपवाद है।


साफ है, परिवहन जैसे विभाग की सफाई कोई एक अफसर नहीं कर सकता, भले ही वह विभाग का सचिव हो। उसे राजनीतिक समर्थन की भी जरूरत गीयह अच्छा है कि हरियाणा सरकार में ही खेमका को समर्थन भी मिल रहा है। वरिष्ठ मंत्री अनिल विज ने उन्हें हटाए जाने का विरोध किया है। वहीं सीएम खट्टर इसे रुटींग तबादला बता रहें हो लेकिन आम जनता सच्चे और ईमानदार लोगों को चाहती है, यह बार-बार साबित हो चुका है। ऐसे में हमारे सत्ताधीशों और आम जनता के बीच इतना बड़ा फर्क क्यों है कि वे ईमानदार सरकारी कर्मचारी को पुरातत्व के लायक ही समझते हैं। 
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