Sunday 17 October 2021

महान स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी चिंतक सत्याग्रह के प्रबल पक्षधर गोवा की लड़ाई के सबसे बड़े महानायक बागी और दिग्गज राजनेता डा. राममनोहर लोहिया की 54वीं पुण्यतिथि है... डॉक्टर लोहिया समाजवाद के ऐसे महापुरूष थे... जिनकी समाजवाद की भरिभाषा तले अतीत से लेकर मौजूदा वक्त की राजनीति फल फूल रही है... लेकिन विचार कभी मरा नहीं करते... भले ही उनकी परिभाषा महज शब्दों तक सीमित हो लेकिन उसका असर लोगों के सामाजिक न्याय के प्रति राजनीतिज्ञों मजबूर करता रहेगा... लोहिया एक ऐसे बागी क्रान्तिकारी पुरूष थे जिन्होने गांधी लोहिया पटेल नेहरू मार्क्स किसी बख्शा नहीं न गांधी को नहीं बख्शा.... 



उन्होने संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर सीधे सीधे सवाल खड़ा किया कि इस देश का साधारण आदमी तीन आने पर गुजारा करता है, और प्रधानमंत्री पच्चीस हजार रूपए क्यों खर्च करता है... उन्होने सामान्य आदमी के खर्चों को प्रधानमंत्री के खर्चों से तुलना करने की कोशिश ही नहीं की बल्कि इसे एक मुद्दा बनाया... जो आज भी लोहिया के तीन पापों में दर्ज किया जाता है... जिसमें पहला पंडित नेहरू के खिलाफ बोलना 2 अंग्रेजी के खिलाफ बोलना और तीसरा सवर्णजाति के वर्चस्व के खिलाफ बुलंद आवाज.... ध्यान रहे कि खुद सवर्ण जाति से ही आते थे बावजूद जातिगत वर्चस्व का विरोध किया... लेकिन इन तीन अपराधों के लिये सवर्ण जाति के अंग्रेजी बोलने वाले बुद्धिजीवियों नें डॉक्टर लोहिया को कभी माफ नहीं किया... लोहिया खुद अमीर घराने से आते थे... बावजूद इसके उन्होने आर्थिक गैरबराबरी से चिढ़ और सामाजिक आर्थिक समानता स्थापित करने की जिद जिंदगी भर पाली... डॉ लोहिया भारतीय नारी के प्रतीक के रूप में सावित्री को नहीं बल्कि द्रोपदी को माना... इन सभी वजहों से आजतक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का असली चेहरा हम सब के बीच नहीं आ पाया...  डॉ लोहिया ऐसे राष्ट्रवाद की कल्पना के महापुरूष थे जो राष्ट्रवाद को अन्तर्राष्ट्रीयता से जोड़ता है... लोहिया की परिभाषा राजनीति अल्पकालिक धर्म है... 



और धर्म दीर्घकालिक राजनीति... लोहिया कहा करते थे कि इस देश में तीन तरह के गांधी वादी हैं... 1 सरकारी गांधी वादी इसमें उनका इशारा पंडित नेहरू पर था.. नंबर 2 मठाधीश गांधीवाधी... इसका इशारा जानेमाने स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और आन्दोलनकारी विनोवा भावे की तरफ था... तीसरा 3 कुजाति गांधी वादी... जिसका मतलब आउट कॉस्ट यानि जिसे जाति से निकाल दिया गया है... कुजाति गांधी वादी का अहम मकसद उनका अपने आप से था... उनका कहना था कि अगर गांधी वाद को कोई बचाएंगा तो वो कुजाति गांधीवादी होगा... बाकी तो सरकारी तो गांधी को मरवा देंगे... लोहिया नास्तिक विचारधारा वाले व्यक्तित्व थे वे किसी की पूजा नहीं करते थे... लोहिया जाति व्यवस्था को गैर बराबरी मानते थे और इसका पुरजोर तरीके से विरोध करते थे... फिर भी उन्होने पिछड़ों के लिये आरक्षण की बात भी कही... लोहिया ने अंग्रेजी को सामंती भाषा करार दिया था... लोहिया अंग्रेजी के खिलाफ नहीं थे बल्कि अंग्रेजी के प्रभुत्व के खिलाफ थे... उनका मानना था कि अंग्रेजी पर पकड़ रखने वाले सवर्ण वर्ग के लोग प्रभुत्व रखते हैं... लोहिया हिन्दी के भी समर्थक नहीं थे... लोहिया का मानना था कि अंग्रेजी को हटाओ बाकी अन्य भारतीय भाषाओं को लाओ  लोहिया हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान के भी पक्षधर नहीं थे.... लोहिया रसूखदारी की तरफ कभी नहीं गए... जब देश आजाद हुआ सभी गांधी वादी गांधी को छोड़कर सरकार और देश चलाने में जुट गए उस वक्त लोहिया ही वो शख्स थे जो गांधी के साथ कदम से कदम मिलाकर उनके साथ चल रहे थे.... लोहिया हमेशा मानते थे कि अमीर और गरीब के बीच एक से दश का अनुपात हो चाहिए इससे ज्यादा कभी नहीं... इससे बात तो साफ है कि लोहिया पूंजीवाद के सख्त खिलाफ थे... उस दौर में लोहिया इतने प्रभावशाली साबित हुए कि उनसे एमएफ हुसैन और स्वामीनाथ जैसे पेन्टर्स प्रभावित हुए... इतना ही नहीं इनसे प्रभावित होकर अनन्तमूर्ति और देवारूड़ु महादेव जैसे उपान्यासकारों ने उपान्यास लिखे... हिन्दी की श्रेष्ठ कविताएं भी लिखी गई.... लोहिया इतने क्रान्तिकारी थे कि उन्होने महज चार साल में भारतीय संसद को अपने मौलिक राजनीतिक विचारों से झकझोर कर रख दिया था... इसमें चाहे नेहरू के प्रतिदिन 25 हजार रूपए खर्च की बात हो... या कांग्रेस को उखाड़ फेंकने का आह्वाहन हो जिसमें उन्होने कहा कि जिंदा कौमें पांच साल तक का इंतजार नहीं करती.. या महीयसी प्रधानमंत्री इंदिरागंधी को गूंगी गुड़िया कहने का साहस हो... लोहिया को मानने वाला शख्स यह जरूर कहता है... जब लोहिया बोलता था... 



तो दिल्ली का तख्ता डोलता है... सन 1962 में लोहिया फूलपुर में नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ने चले गए... जहां उन्होने भाषण में कहा कि मैं पहाड़ से टकराने आया हूं... मैं जूनता हूं कि पहाड़ से पार नहीं पा सकता लेकिन उसमें एक दरार भा कर दी तो चुनाव लड़ना सफल हो जाएगा... नेहरू के खिलाफ भले ही लोहिया चुनाव हार गए... लेकिन 1967 में जब हर तरफ कांग्रेस का जलवा था, तब राम मनोहर लोहिया इकलौते ऐसे शख़्स थे जिन्होंने कहा था कि कांग्रेस के दिन जाने वाले हैं और नए लोगों का जमाना आ रहा है... आलम ये रहा कि उस दौर में नौ राज्यों में कांग्रेस हार गई थी... लोहिया की मौत के बाद उनकी विरासत और उनके नाम के सिक्के यूपी और बिहार की राजनीति में खूब चले... नतीजा ये रहा कि लालू, नितीश मुलायम रामविलास पासवास, और सरीखे नेताओं ने लोहिया की विरासत से अपनी सियासत को खूब चमकाया... लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को अयोध्या जिले के अकबर पुर में हुआ था...  लोहिया ने जर्मनी से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की थी. लेकिन ये कम ही लोग जानते होंगे कि वे अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, मराठी और बांग्ला धड़ल्ले से बोल लेते थे, लेकिन वे हमेशा हिंदी में बोलते थे, ताकि आम लोगों तक उनकी बात ज्यादा से ज्यादा पहुंच सके.... लोहिया अपनी ज़िंदगी में किसी का दख़ल भी बर्दाश्त नहीं करते थे... लेकिन महात्मा गांधी ने उनके निजी जीवन में दख़ल देते हुए उनसे सिगरेट पीना छोड़ देने को कहा था. लोहिया ने बापू को कहा था कि सोच कर बताऊंगा. और तीन महीने के बाद उनसे कहा कि मैंने सिगरेट छोड़ दी.... लोहिया जीवन भर रमा मित्रा के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहे. रमा मित्रा दिल्ली के मिरांडा हाउस में प्रोफेसर थीं. दोनों के एक दूसरे को लिखे पत्रों की किताब भी प्रकाशित हुई. "लोहिया ने अपने संबंध को छिपाकर नहीं रखा... लोग जानते थे, लेकिन उस दौर में निजता का सम्मान किया जाता था. लोहिया जी ने जीवन भर अपने संबंध को निभाया और रमा जी ने उसे आगे तक निभाया... अगर लोहिया के अहम योगदानों में गोवा के भारत में विलय का जिक्र न किया जाए तो शायद यह किस्सा अधूरा रह जाएगा... राममनोहर लोहिया ने 18 जून, 1946 को मडगांव में 451 वर्षो की पुर्तगाली सालाजारशाही औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गोमंतकों में संघर्ष करने का जज्बा पैदा किया... इसकी यही वजह है कि गोवावासी स्वयं को डा. लोहिया का ऋणी मानते हैं, और लोहिया कहा करते थे-मेरा गोवा पर नहीं, बल्कि गोवा का मुझ पर ऋण है... 



डा. लोहिया का मानना था कि गोवा भारत का अभिन्न अंग है और बगैर इसकी स्वतंत्रता के भारत की आजादी अधूरी है। तमाम नागरिक स्वतंत्रता एवं प्रतिबंधों के बावजूद डा. लोहिया गोवा आए और गोवावासियों को अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। कई बार उनकी गिरफ्तारियां हुईं, लेकिन पुर्तगाली निजाम उनके हौसले को पस्त नहीं कर सका। और गोवा मुक्ति संघर्ष में डा. लोहिया की अग्रणी भूमिका होने की वजह से गोवा मुक्ति संघर्ष समूचे भारत की लड़ाई बन गई... देश के चारों दिशाओं से सेनानियों का जत्था गोवा मुक्ति संग्राम में शामिल होने लगा... 18 जून सन 1946 को जलाई गई अलख धीरे-धीरे विशाल आकार लेती चली गई... देश के अनगिनत मुक्ति योद्धा शहीद हुए। अनेकों ने पीड़ादायक यातनाएं सहीं। कई लोगों को जेल में बंदी बनाया गया। इस तरह गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों ने त्याग भावना के साथ अपने खून-पसीने तथा आंसूओं के अघ्र्य से 19 दिसंबर, 1961 को सैकड़ों वर्षो की दासता से गोवा मुक्त हुआ। गोवा के स्वतंत्र होते ही भारत की अधूरी स्वतंत्रता को पूर्णत्व प्रदान हुआ। भारत की स्वतंत्रता के चौदह वर्षो बाद गोवा को 451 वर्षो की पुर्तगाली दासता से मुक्ति मिली.... लोहिया की जिंदगी के अलावा मौत भी कम विवादास्पद नहीं रही उनका प्रोस्टेड ग्लैंड्स बढ़ गया था... जिसके ऑपरेशन के लिये उन्हें सरकारी विलिंग्डन अस्पताल में भर्ती किया गया था... उनकी मौत के बारे में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी ऑटो बायोग्राफी बियांड द लाइन्स में लिखा है...कि "मैं राम मनोहर लोहिया से अस्पताल में मिलने गया था. उन्होंने मुझसे कहा कुलदीप मैं इन डॉक्टरों के चलते मर रहा हूं.... 



कुलदीप आगे लिखते हैं कि लोहिया की बात सच ही निकली क्योंकि डॉक्टरों ने उनकी बीमारी का गलत इलाज कर दिया था. और 12 अक्टूबर सन 1967 को उनकी मौत हो गई.... मौत के बाद सरकार ने दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों के निरीक्षण हेतु एक समिति नियुक्त की... समिति की रिपोर्ट का एक हिस्सा 26 जनवरी, 1968 को टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित हुआ था, इसमें समिति ने दावा किया था, "अगर अस्पताल के अधिकारी आवश्यक और अनिवार्य सावधानी से काम लेते तो लोहिया का दुखद निधन नहीं होता.... उनके सहयोगी रहे शिवानंद तिवारी ने एक बयान दिया था कि लोहिया की मौत एक बड़ा मुद्दा बना था लेकिन बाद में वो बात दबा दी गई. 1977 में केंद्र सरकार में राजनारायण स्वास्थ्य मंत्री बने तो उन्होंने लोहिया की मौत के कारणों की जांच करने के लिए विशेषज्ञों की समिति नियुक्त की थी, लेकिन अस्पताल में तब सारे कागज़ ग़ायब थे.... आज यही अस्पताल राम मनोहर लोहिया अस्पताल के रूप में जाना जाता है.."

  

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