तब जब तुम थी मैं बेचा करता था, तड़प, आह, बेचैनी और हर दर्द की दवा पर आज जब तुम नहीं हो वक्त मुझे अपनी ही दुकान पर ले आया है। कल रात मैंने तुम्हारी सारी बाते कमरे की दीवार पर लिख डाले...तुम इसे एक तमाशा कह सकती हो पर नाम कुछ ऐसे लिख दिये हो तुमने मेरे वजूद पर की मैं भूलना नहीं चाहता... मेरे जुबान तीखे थे जो तुम्हे खंजर से भी गहरा जख्म दिया करता था, लेकिन तुमने उस जख्मों पर हमेशा मरहम भी खुद लगाया।
तुम्हारे चांद नुमा चेहरे को चाहने वाले हजारों आश्कि तुम्हारे दिल के सकरी गलियों में तौलिया लपेटे खड़े थे पर तुमने कभी उनको भाव नहीं दिया। पर मेरे पास तुम्हारे स्वप्नलोक की दुनिया के लिए वक्त नहीं था। अब जब तुम मेरी जिंदगी से जा चुकी हो... खुद को मेरे दिल में ही छोड़ कर, तुझे तो ठीक से बिछड़ना भी नहीं आया...पर तुम्हारे पास इसके अलावे कोई और ऑप्सन नहीं था। तुम्हारे ख्वाब और तुम्हारी दुनिया के लिए मेरे पास वक्त नहीं था किताबों के बीच रहने वाला इंसान ऐसे ही हो जाते है तर्कहीन, भावनाहीन, प्रेमहीन, कल्पनाहीन, संवेदनहीन जो किसी के फिलिंगस, इमोसन को नहीं समझता बिल्कुल दैत्यनुमा जो मैं था और शायद आज भी हूं।
तुम्हारे चांद नुमा चेहरे को चाहने वाले हजारों आश्कि तुम्हारे दिल के सकरी गलियों में तौलिया लपेटे खड़े थे पर तुमने कभी उनको भाव नहीं दिया। पर मेरे पास तुम्हारे स्वप्नलोक की दुनिया के लिए वक्त नहीं था। अब जब तुम मेरी जिंदगी से जा चुकी हो... खुद को मेरे दिल में ही छोड़ कर, तुझे तो ठीक से बिछड़ना भी नहीं आया...पर तुम्हारे पास इसके अलावे कोई और ऑप्सन नहीं था। तुम्हारे ख्वाब और तुम्हारी दुनिया के लिए मेरे पास वक्त नहीं था किताबों के बीच रहने वाला इंसान ऐसे ही हो जाते है तर्कहीन, भावनाहीन, प्रेमहीन, कल्पनाहीन, संवेदनहीन जो किसी के फिलिंगस, इमोसन को नहीं समझता बिल्कुल दैत्यनुमा जो मैं था और शायद आज भी हूं।
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