Friday 24 February 2017

Posted by Gautam singh Posted on 01:53 | No comments

पाती से प्रेम


एक खत ले कर आया हूं कोई तो पढ़ दे जरा....नहीं समझे...अजी खत माफ कीजियेगा जनाब आज के जमाने में खत-लिखना और पढ़ना शायद बहुत मुश्किल हो गया है। पर कहते है न 'मोहब्बते पैगाम से खत यार की आती है, प्यार की हर बात से रू-ब-रू हो जाती है, वह दिदारे हुस्न से इनकार तो नहीं करते...और एक हम है जो बस खत का इंतजार करते है।' खत कह लीजिये या पैगाम या फिर चिटृठी इनकी तो अब महत्व ही खत्म हो गया है... पहले जैसे ही पैगाम की बात आती.. तो लोग झट से कलम कागज ले कर बैठ जाते थे, और अपने दिल का हाल उसमें बयां कर देते थे, लेकिन आजकल इनकी जगह दूरभाष ने ले ली है, अगर मोबाईल के भाषा में कहुं तो एसएमएस या वट्सअप ने चिट्ठी का रूप ही बदल दिया है।... पहले दरवाजे पर टकटकी लगाए आंखे एक अदद चिट्ठी का इंतज़ार करते रहते थे।

पर अब ऐसा नहीं है, लेकिन मन करता है कि साइकिल की घंटी सुनाई पड़े और दौड़कर दरवाजे पर चले आयें, शायद कोई चिट्ठी आई हो, शायद कोई संदेशा आया हो, जिसे किसी अपनों ने भेजा हो जिसमें हाल-ए-दिल बयां की हो लेकिन अब न तो साइकिल की घंटी सुनाई पड़ती है और न ही डाकिया बाबू नजर हाते हैं.....जहां पहले एक कोरा कागज भी दिल का हाल बयां कर देता था..... तो वहीं आज एक Blank SMS पर लड़ाई हो जाती है... मैं ये नहीं कहता कि खत के साथ-साथ प्यार भी खत्म हो गया है... प्यार तो आज भी उन SMS में छुपा है जो दूर बैठे प्रेमियों को पास ले आता है... बच्चों को माता-पिता से जोड़ता है और सरहद पर जवानों को अपने घर वालों से मिला देता है....ऐहसास तो वही है.....पर तरीका नया...


मुझे अभी भी याद आता है वह जमाना जब सरहद पर से हमारे देश के जवानों की चिट्ठी उनके घर पहुंचते थे तो पूरा घर आंसुओं में ढूब जाता था, खत में लिखे हर शब्द में जवान का प्यार और घरवालों की यादें सिमट के रह जाती...और फिर जब जवानों के घर से चिट्ठी आती तो वो अपनी थकान के साथ-साथ अपनी सारे तकलीफे भी भूल जाते थे... अब तकनिकी दुनिया ने उन सुनहरे दिनों को कहीं पीछे छोड़ दिया...जब हफ्तों इंतजार के बाद एक खत आया करता था....दूर देश से आये अपने प्रिय जनों की इस खत में इतना कुछ होता था कि पढ़ते-पढ़ते कभी आंखे नम हो जाती थी, तो कभी सारे जहान की खुशियां एक चिट्ठी में सिमट आती थी...बेशक फोन ने संवाद में दुरियों की खाई पाट दी है, लेकिन रिश्तों की कद्र में कमी और नजदियों में दूरियों का अहसार बढ़ा दिया है। फोन हमें सहुलियत तो देता है, लेकिन प्रेम में जरूरी उत्साह, इंतजार और सपनों से प्रेरित होने वाली उत्सुकता को कहीं न कहीं छीन लेता है।
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